अगले महीने यानि 13 और 20 नवंबर को होने वाले झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी के सह-प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं.
बीजेपी ने झारखंड विधान सभा चुनाव का प्रभारी मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं. लेकिन झारखंड में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पार्टी की रणनीति में ज़्यादा अहम शख्स के रूप में उभरे हैं.
बीजेपी ने झारखंड के आदिवासी इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठ को मुद्दा बनाने का फैसला किया है. इसके साथ ही बीजेपी यह भी कह रही है कि आदिवासी परिवारों की ज़मीन हड़पने के लिए मुसलमान लड़के आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे हैं.
हिमंत बिस्वा सरमा इन मुद्दों पर बिना किसी किंतु-परंतु के बात करते हैं. वे अपने राज्य असम में भी ऐसी बातें और काम करते रहे हैं जिनसे सांप्रदायिक ध्रुविकरण पैदा होता है.
जब बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें छत्तीसगढ़ विधान सभा में प्रभारी बनाया था तो वहां भी उन्होंने आदिवासी वोटों को हिंदू पहचान के इर्द-गिर्द एकजुट करने के लिए एक “बाहरी ख़तरे” का डर पैदा करने के लिए रणनीति अपनाई थी.
छत्तीसगढ़ में जहां 31 प्रतिशत आदिवासी मतदाता हैं… वहां सरमा की कट्टरपंथी बयानबाजी ईसाई धर्म में कथित सामूहिक धर्मांतरण पर केंद्रित थी.
उन्होंने आदिवासी पहचान के साथ-साथ सनातन धर्म और हिंदू संस्कृति के लिए ख़तरा पैदा करने के ईर्द-गिर्द बहस खड़ी की थी.
झारखंड में भी हिमंत बिस्वा सरमा उसी रणनीति पर काम करते हुए नज़र आ रहे हैं. झारखंड में कुल आबादी का करीब 26 प्रतिशत आदिवासी है.
यहां पर सरमा का नैरेटिव बांग्लादेश से अवैध मुस्लिम प्रवासियों के कथित प्रवाह के कारण होने वाले “जनसांख्यिकीय परिवर्तनों” पर केंद्रित है.
ऐसा नहीं है कि बीजेपी के मुख्य झारखंड चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान इस मुद्दे पर बात नहीं करते हैं. लेकिन शिवराज चौहान की शैली में आक्रमकता कम रहती है.
वे भारतीय जनता पार्टी के उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पार्टी का नरम चेहरा पेश करती थी. जबकि हिमंत बिस्वा सरमा नरेन्द्र मोदी और अमित शाह मार्का राजनीति करते हैं.
बीजेपी ऐसा मानती है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भाजपा को अप्रत्याशित जीत दिलाने में सरमा की आक्रमकता ने मदद की थी.
झारखंड में हालत ये है कि यहां पर राज्य के बीजेपी नेताओं के बयानों या भाषणों को कोई तवज्जो नहीं मिल रही है. ऐसा लगता है कि इस राज्य में बीजेपी का मुख्य चेहरा हिमंता ही बन गए हैं.
झारखंड विधान सभा चुनाव में बीजेपी को जीताने के लिए सरमा मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ काम कर रहे हैं.
लेकिन मीडिया और चुनाव प्रचार में हिमंत बिस्वा सरमा ही मुख्य चेहरा बने हुए हैं.
असम के मुख्यमंत्री ने अक्सर बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं पर स्थानीय आदिवासी आबादी को विस्थापित करने और ज़मीन पर कब्ज़ा करने के आरोप लगाए हैं. बीजेपी ने हेमंत सोरेन की पार्टी जेएमएम के गढ़ संथाल परगना क्षेत्र में इस मुद्दे को केंद्र में रखा है.
सरमा ने यहां तक दावा किया है कि झारखंड में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) लागू किया जाएगा ताकि सूची में शामिल न किए गए लोगों की पहचान की जा सके और उन्हें निर्वासित किया जा सके, जिसमें मुख्य रूप से बांग्लादेशियों को लक्षित किया जाएगा.
उन्होंने एक रैली में कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठ संथाल के लिए बड़ा मुद्दा बन चुका है. इस बार झारखंड में हमारी सरकार बनी तो संथाल में एनआरसी लागू होगा. कड़ी सख्ती से बांग्लादेशी घुसपैठ की छानबीन कर उन्हें देश से निकाला जाएगा.
उन्होंने असम के अनुभव का हवाला दिया, जहां NRC प्रक्रिया के दौरान 14 लाख लोगों की पहचान अवैध अप्रवासियों के रूप में की गई थी और कहा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस संख्या को बढ़ाने के लिए दूसरे संशोधन की अनुमति देने का अनुरोध किया है.
झारखंड में सरमा के भाषणों में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और उसके सहयोगी दलों पर “तुष्टिकरण की राजनीति” के लिए “घुसपैठ” के मुद्दे पर चुप रहने का आरोप लगाया गया है.
झारखंड में बीजेपी के मुख्य प्रभारी शिवराज सिंह चौहान के एक बेहद क़रीबी सलाहकार के अनुसार झारखंड में स्थिति ऐसी बन गई है कि अगर पार्टी जीतेगी तो सारा श्रेय हिमंत बिस्वा सरमा को जाएगा.
लेकिन अगर पार्टी नहीं जीत पाती है तो हार का ठीकरा शिवराज सिंह चौहान के सिर पर फोड़ा जा सकता है.
झारखंड में हिमंत बिस्वा सरमा की रणनीति के जवाब में हेमंत सोरेन ने भी कई ऐसे मुद्दे उठाए हैं जिन पर सरमा असहज हो सकते हैं.
सोरेन ने सरमा को पत्र लिखकर असम की चाय जनजातियों के लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने का अनुरोध भी किया. जिसे झारखंड में भाजपा के अभियान के जवाब के रूप में देखा गया.
इस मुद्दे को उजागर करके सोरेन ने सरमा को उनके राज्य में चुनौती देने और झारखंड के जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से ध्यान हटाने की कोशिश की.
वहीं सीएम हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली सरकार ने भारत के चुनाव आयोग को पत्र लिखकर सरमा और शिवराज चौहान, जो अब केंद्रीय कृषि मंत्री हैं… उन पर समुदायों के बीच नफरत फैलाने और राज्य के ब्यूरोक्रेट्स का मनोबल गिराने का आरोप लगाया है.
असम में अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत चाय जनजातियों को बेहद कम मजदूरी और शैक्षिक अवसरों की कमी जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
लेकिन हिमंत बिस्वा सरमा राजनीति में मोटी चमड़ी वाले नेता हैं. यह कहा जा रहा है कि सभी आलोचनाओ के बावजूद सरमा के विभाजनकारी बयानों ने उन्हें भाजपा के शीर्ष चुनावी रणनीतिकारों में मजबूती से शामिल कर दिया है.
झारखंड में लोक सभा चुनाव में सभी आदिवासी सीटों पर बीजेपी हार गई थी. यह एक ऐसी स्थिति थी जिसमें बीजेपी का मनोबल शायद बहुत अच्छा नहीं रहा होगा.
हांलाकि शिवराज चौहान के करीबी सलाहकार कहते हैं कि हिमंत बिस्वा सरमा की बातों का असर शायद ज़मीन पर उतना नहीं है जितना मीडिया में दिखाई देता है.
वे कहते हैं कि हिमंत दरअसल मीडिया के माध्यम से खुद को बीजेपी का संकट मोचक साबित करने में लगे हुए हैं.