HomeElections 2024आदिवासी अधिकारों पर भाजपा के दोहरे मापदंड

आदिवासी अधिकारों पर भाजपा के दोहरे मापदंड

लोकतंत्र बचाओ अभियान के आयोजकों, जिनमें एलिना होरो और रिया तुलिका पिंगुआ शामिल हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भाजपा का चुनाव अभियान यूनिफॉर्म सिविल कोड और एनआरसी जैसे विभाजनकारी मुद्दों पर केंद्रित है.

झारखंड के रांची प्रेस क्लब में कई राज्यों के आदिवासी नेता भाजपा की बयानबाजी और आदिवासी अधिकारों के बारे में वास्तविकता के बीच के अंतर को उजागर करने के लिए इकट्ठे हुए. इन्होंने विशेष रूप से असम में झारखंडी आदिवासियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला.

ऑल आदिवासी स्टूडेंट्स एसोसिएशन के इमैनुएल पुर्टी ने बताया कि असम में झारखंडी आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा और भूमि, जल और जंगलों पर बुनियादी अधिकार नहीं हैं. चाय बागानों में एक महत्वपूर्ण कार्यबल बनाने के बावजूद, वे केवल 150-225 रुपये दैनिक मजदूरी कमाते हैं, जो न्यूनतम दरों से काफी कम है. यह स्थिति असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की झारखंड में आदिवासी अधिकारों की वकालत को पाखंडपूर्ण बनाती है.

वहीं अन्य भाजपा शासित राज्यों के प्रतिनिधियों ने भी इसी तरह की चिंताएँ साझा कीं. मध्य प्रदेश के राधेश्याम काकोडिया ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे भाजपा की “डबल बुलडोजर” सरकार ने आदिवासी संस्कृति और पहचान को खतरे में डाल दिया है.

उन्होंने हाल ही की एक घटना का हवाला दिया जिसमें एक उच्च जाति के व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिसने कथित तौर पर एक आदिवासी पर पेशाब किया था.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने हसदेव अरण्य वन के विनाश पर चर्चा की, जहां निजी निगमों को लाभ पहुँचाने वाली खनन परियोजनाओं के लिए 9 लाख पेड़ों को काटा जाना है.

उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने ग्राम सभा की अनुमति के बिना सुरक्षा बलों को तैनात किया है और विरोध करने वाले आदिवासियों पर माओवादी गतिविधियों का झूठा आरोप लगाया है.

लोकतंत्र बचाओ अभियान के आयोजकों, जिनमें एलिना होरो और रिया तुलिका पिंगुआ शामिल हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भाजपा का चुनाव अभियान यूनिफॉर्म सिविल कोड और एनआरसी जैसे विभाजनकारी मुद्दों पर केंद्रित है.

जबकि सीएनटी-एसपीटी अधिनियम और सरना कोड जैसी महत्वपूर्ण आदिवासी चिंताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है.

उन्होंने हाल ही में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट पर प्रकाश डाला, जिसमें भाजपा के सोशल मीडिया अभियान को उजागर किया गया है, जो सांप्रदायिक कलह फैला रहा है और आदिवासी मुख्यमंत्री का अपमानजनक चित्रण कर रहा है.

अन्य राज्यों के अपने अनुभवों का हवाला देते हुए वक्ताओं ने सर्वसम्मति से झारखंड में “डबल बुलडोजर भाजपा शासन” की अनुमति देने के खिलाफ चेतावनी दी.

उन्होंने ऐसे शासन के खिलाफ प्रतिरोध का आह्वान किया और राज्य में ‘अबुआ राज’ (स्व-शासन) की वकालत की.

मीडिया के सामने आकर आदिवासी समूहों ने दिखाया कि कैसे भाजपा द्वारा आदिवासी अधिकारों की वकालत का दावा उसके नियंत्रण वाले राज्यों में उसके वास्तविक शासन रिकॉर्ड के विपरीत है, खासकर भूमि अधिकारों, सांस्कृतिक संरक्षण और आदिवासी समुदायों के लिए आर्थिक न्याय के मामले में.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments