HomeIdentity & Lifeकश्मीर के गुरेज घाटी में बनाया गया दर्द शीन समुदाय का म्यूज़ियम

कश्मीर के गुरेज घाटी में बनाया गया दर्द शीन समुदाय का म्यूज़ियम

उत्तर कश्मीर के बांदीपुरा जिले में दर्द आदिवासी लोगों के लिए सोमवार को म्यूज़ियम खोला गया था. इन आदिवासियों की संख्या बेहद कम ही बची है क्योंकि इन आदिवासियों के पास रोज़गार के स्थायी साधन नहीं हैं. इसलिए 2019 में इन्होंने सरकार से मांग की थी कि वे इनके गांवो को हेरिटेज गांव बना दें ताकि ज़्यादा से ज़्यादा पर्यटन आकर्षित हो और रोज़गार में भी बढ़ोतरी आ सके.

सोमवार को उत्तर कश्मीर के बांदीपुरा जिले के गुरेज घाटी (Gurez Valley) में दर्द आदिवासी लोगों के लिए म्यूज़ियम खोला गया था. इस म्यूज़ियम को शिनोन मीरास (shinon meeras ) का नाम दिया गया है.

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मानोज सिन्हा ने इस म्यूज़ियम का दौरा किया था. उन्होंने कहा कि यह म्यूजियम दर्द शीन आदिवासियों की संस्कृति और कला को बखूबी दर्शाता है. साथ ही यह देश का ऐसा पहला म्यूज़ियम है जो दर्द समुदाय की संस्कृति, भाषा और जीवन शैली को दर्शाएगा.

कौन है कश्मीर के दर्द आदिवासी
दर्द शब्द संस्कृत के शब्द दारादास से निकला है जिसका मतलब है वो लोग जो पहाड़ो के पास रहते हैं. ये लोग लेह लद्दाख के दहा, हानू, भीमा, दरचीक और गरकोने गांव में रहते हैं और इन सभी गांव को मिलाकर आर्यन वेली कहां जाता है. इन समुदायों को लद्दाख के आर्यन या ब्रोकपास कहां जाता है. इन आदिवासियों का उल्लेख इतिहासकार हिरोडोटस के समय भी किया गाया है. जो पांचवे ग्रीक शताब्दी के इतिहासकार थे.

साथ ही कश्मीर के आखरी मुस्लिम राजा यूसुफ शाह चक भी दर्द समुदाय से थे.रोजगार के लिए ये आदिवासी खेती, भेड़ और बकरी पालन पर निर्भर है. इसके अलावा इन आदिवासी के क्षेत्रों में 12 तरह के अंगूर पाए जाते हैं.

दर्द आदिवासी की समस्या
2019 के आकड़ो की माने तो दर्द समुदाय के केवल 4000 लोग ही बचे है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन क्षेत्रों में रोजगार के बेहद कम साधन हैं. इसलिए इन समुदाय के अधिकतर लोग उन जगहों में जाकर बस गए जहां उन्हें रोजगार मिल सकें.

इस समुदाय के जो लोग बचे हैं उन्होनें तीन साल पहले सरकार से ये आग्रह किया था कि वो इनके गांव को हेरिटेज गांव बना दें. साथ ही यहां पर होस्टल भी बनाए जाए. लेकिन इन तीन सालों में उनकी मांग पूरी नहीं की गई. अब म्यूजियम बनाने से इस समुदाय को शायद पहचान तो मिले लेकिन रोजगार नहीं.

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