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अमित शाह के असम दौरे से पहले कोच-राजबंशी ने ST दर्जा देने की मांग दोहराई

समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांगों की सूची में सबसे ऊपर है. इसके बाद ऐतिहासिक कामतापुर राज्य की पुनर्स्थापना और समुदाय के महान योद्धा के सम्मान में सशस्त्र बलों में चिलाराई रेजिमेंट का निर्माण शामिल है.

14 मार्च, 2025 को गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) असम की तीन दिवसीय यात्रा पर जा रहे हैं. लेकिन इससे पहले कोच-राजबंशी (Koch-Rajbongshis) ने अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) का दर्जा देने की अपनी मांग फिर से उठाई है.

पश्चिमी असम और उत्तरी पश्चिम बंगाल के इलाकों में रहने वाले सबसे बड़े समुदायों में से एक, कोच-राजबंशी उन छह जातीय समूहों में से एक है जो दशकों से एसटी का दर्जा मांग रहे हैं.

अन्य आदिवासी समूह हैं – अहोम, चुटिया, मटक और मोरन.

शनिवार (8 मार्च, 2025) की शाम को कोच-राजबंशी संमिलिता जौथा मंच के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी की असम इकाई के अध्यक्ष दिलीप सैकिया को अपनी मांगों को उजागर करते हुए 15 सूत्री ज्ञापन सौंपा.

समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांगों की सूची में सबसे ऊपर है. इसके बाद ऐतिहासिक कामतापुर राज्य की पुनर्स्थापना और समुदाय के महान योद्धा के सम्मान में सशस्त्र बलों में चिलाराई रेजिमेंट का निर्माण शामिल है.

मंच कोच-राजबंशी समुदाय के 12 संगठनों का एक संयुक्त संगठन है, जो कभी वर्तमान असम, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बड़े हिस्से पर शासन करता था.

मंच के एक प्रवक्ता ने कहा, “हमने भाजपा से 30 अप्रैल, 2025 तक केंद्र और राज्य सरकारों के साथ त्रिपक्षीय बैठक आयोजित करने का आग्रह किया है. हमने यह भी चेतावनी दी है कि अगर 2026 के विधानसभा चुनावों के दौरान चुनावी लाभ के लिए हमारे समुदाय का शोषण किया गया, जैसा कि अतीत में हुआ है तो हम विरोध प्रदर्शन करेंगे.”

कोच-राजबंशी और एसटी दर्जा की मांग करने वाले अन्य पांच समुदायों को वर्तमान में अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा प्राप्त है.

असम के कोटे में ओबीसी का हिस्सा 27 फीसदी है, जबकि एसटी (मैदानी) का हिस्सा 10 फीसदी, अनुसूचित जाति का 7 फीसदी और एसटी (पहाड़ी) का हिस्सा 5 फीसदी है.

असम में पिछले तीन दशकों से एसटी दर्जे की मांग एक बड़ा मुद्दा रही है. भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले छह समुदायों को आदिवासी का दर्जा देने का वादा किया था.

अन्य जनजातियां चिंतित

असम में मौजूदा एसटी समुदाय छह जातीय समूहों को आदिवासी का दर्जा देने के किसी भी कदम का विरोध कर रहे हैं.

2011 में, असम के आदिवासी संगठनों की एक समन्वय समिति ने 10 जनजातियों – बोडो, राभा, तिवा, कार्बी, डिमासा, मिशिंग, सोनोवाल, हाजोंग, गारो और देउरी का प्रतिनिधित्व किया. उसने सिंगला समिति को लिखा कि छह “उन्नत और आबादी वाले ओबीसी समुदायों” को एसटी का दर्जा देने का प्रस्ताव “असम के मौजूदा एसटी को खत्म करने की साजिश” है.

केंद्र ने छह समुदायों की मांग और उसके परिणामों पर विचार करने के लिए 1 मार्च 2011 को गृह मंत्रालय में तत्कालीन विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा) महेश कुमार सिंगला की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी.

सीसीटीओए ने कहा, “ये छह समुदाय शैक्षणिक और आर्थिक रूप से उन्नत हैं और संख्या में भी अधिक हैं और मौजूदा एसटी समुदाय इन उन्नत समूहों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते. एक बार उन्हें एसटी का दर्जा मिल गया तो मौजूदा समुदाय निर्वाचित निकायों और शिक्षा और नौकरियों से बाहर हो जाएंगे.”

साथ ही उन्होंने बताया कि मौजूदा एसटी समुदायों के भूमि अधिकार भी छीन लिए जाएंगे.

सीसीटीओए ने यह भी कहा कि भारत के रजिस्ट्रार जनरल ने 1981 से 2006 के बीच छह समुदायों की मांगों को आठ बार खारिज कर दिया.

केंद्र ने 1996 में छह महीने के लिए कोच-राजबंशियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया था. जब यह पाया गया कि अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित अन्य पाठ्यक्रमों के अलावा 42 में से 33 मेडिकल सीटें और 21 में से 17 इंजीनियरिंग सीटें कोच-राजबंशियों द्वारा हड़प ली गई थीं, तो विरोध के बाद इसे रद्द कर दिया गया था.

(Image credit: PTI)

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