गृह मंत्री अमित शाह के असम दौरे से पहले कोच-राजबंशी समुदाय ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग दोहराई है. यह मांग नई नहीं है बल्कि तीन दशकों से यह समुदाय इस दर्जे के लिए संघर्ष कर रहा है.
कोच-राजबंशी समुदाय की मांगें
शनिवार को कोच-राजबंशी समिति के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के असम इकाई के अध्यक्ष दिलीप सैकिया को एक ज्ञापन सौंपा. इस ज्ञापन में 15 बिंदु शामिल हैं.
इस ज्ञापन में एसटी दर्जा देने की मांग टॉप पर थी. इसके अलावा ऐतिहासिक कामतापुर राज्य के नवीकरण और चिलाराई रेजिमेंट के गठन की भी मांग शामिल है.
चिलाराई रेजिमेंट का गठन समुदाय के महान योद्धा के सम्मान में करने की बात रखी गई है.
कोच-राजबंशी समुदाय के 12 संगठनों वाले मंच ने भाजपा से 30 अप्रैल 2025 तक केंद्र और राज्य सरकारों के साथ त्रिपक्षीय बैठक आयोजित करने का आग्रह किया.
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों को अनदेखा किया गया तो वे विरोध प्रदर्शन करेंगे.
कौन हैं कोच-राजबंशी समुदाय?
कोच-राजबंशी समुदाय मुख्य रूप से पश्चिमी असम और उत्तरी पश्चिम बंगाल के क्षेत्रों में निवास करता है.
यह समुदाय असम के उन छह जातीय समूहों में से एक है, जो लंबे समय से एसटी दर्जे की मांग कर रहा है.
कोच-राजबंशी के अलावा ताई अहोम, चुटिया, मटक, मोरन और चाय जनजाति भी काफ़ी समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रही हैं.
राजनीतिक संदर्भ और अधूरी उम्मीदें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव 2014 और असम के 2016 के विधानसभा चुनाव में टी ट्राइब्स समेत छह जातीय समूहों को एसटी दर्जा देने का वादा किया था. हालांकि, 2025 तक सरकार ने ये वादा पूरा नहीं किया है.
एसटी दर्जे की मांग को पूरा करने के बजाय, केंद्र और राज्य सरकारें समय-समय पर इन समुदायों के लिए अन्य योजनाओं और घोषणाओं का सहारा लेकर स्थिति को शांत करने का प्रयास करती रही हैं.
असम सरकार ने इन छह जातीय समूहों को वित्तीय सहायता देने के लिए अलग-अलग विकास परिषदों का गठन किया है.
इसी तरह समय-समय पर इन समूहों के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की जाती रही है. उदाहरण के लिए, 2019 में असम सरकार ने इन छह जातीय समूहों के कल्याण के लिए 500 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी.
इसके अलावा आयुष्मान आरोग्य मंदिरों और मॉडल चाय बागान स्कूल के निर्माण के साथ-साथ संस्कृति, परंपरा और भाषाई पहचान को संरक्षित करने के लिए विशेष योजनाएं शुरू करने जैसे कई कदम सरकार ने उठाए हैं. लेकिन ये समुदाय सरकार की इस कूटनीति को भलि-भांति समझती है. इस वादे के पूरा न होने से ये समुदाय निराश हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि असम में इन 6 समुदायों को एसटी दर्जा देने पर पहले से एसटी सूची में शामिल समूहों का विरोध देखने को मिल सकता है.
बोडो समुदाय को डर है कि नए समूहों को एसटी का दर्जा देने से आरक्षण कोटे और सरकारी संसाधनों में उनकी हिस्सेदारी कम हो सकती है. इससे दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ने का खतरा भी है.
इस प्रकार की स्थिति पहले भी कई राज्यों में देखी गई है. इसका सबसे ताज़ा उदाहरण मणिपुर है.
मणिपुर में मैतेई समुदाय द्वारा एसटी दर्जे की मांग पर कुकी और नगा जनजातियों ने कड़ा विरोध जताया था.
वहां विरोध इतना बढ़ गया था कि इसने हिंसा का रूप ले लिया था और अभी भी वहां रुक-रुक हिंसक घटनाएं सामने आती रहती हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि कोच-राजबंशी समुदाय सहित अन्य जातीय समूहों को एसटी दर्जा देने से पहले सरकार को इन समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का गहन अध्ययन करना चाहिए.
इसके अलावा, मौजूदा एसटी समुदायों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए समाधान निकालना भी ज़रूरी है, ताकि मणिपुर जैसी स्थिति उत्पान्न न हो.