हाल के दिनों में असम और मेघालय सरकार द्वारा संयुक्त रूप से कुलसी नदी (Kulsi river) के ऊपरी इलाकों में प्रस्तावित 55 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना ने राभा और गारो आदिवासी समुदायों (Rabha and Garo tribal communities) में गुस्सा पैदा कर दिया है.
असम और मेघालय के कई नागरिक समाज समूह और आदिवासी संगठन सिंचाई परियोजना के खिलाफ एकजुट हुए हैं और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
यह विरोध प्रदर्शन असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा के बीच गुवाहाटी के कोइनाधोरा गेस्ट हाउस में हुई बैठक के कुछ दिनों बाद हुआ है. जहां दोनों नेताओं ने कथित तौर पर विवादास्पद कुलसी बहुउद्देशीय परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए हरी झंडी दी थी.
ऑल राभा स्टूडेंट्स यूनियन (एआरएसयू), ऑल राभा विमेन काउंसिल (एआरडब्ल्यूसी), गारो नेशनल काउंसिल (जीएनसी), गारो यूथ काउंसिल (जीवाईसी), गारो स्टूडेंट्स यूनियन (जीएसयू), गारो विमेन काउंसिल (जीडब्ल्यूसी) और खासी स्टूडेंट्स यूनियन (केएसयू) जैसे प्रमुख समूहों ने विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया और बांध के संभावित सामाजिक-पर्यावरणीय प्रभावों पर सामूहिक असहमति व्यक्त की.
दोनों राज्यों के आदिवासी समुदाय-गारो, राभा, बोरो और खासी-इस परियोजना का विरोध करने के लिए एकजुट हुए हैं. इन्होंने बड़े पैमाने पर विस्थापन और पर्यावरण क्षरण की आशंका जताई है.
स्थानीय निवासियों ने भी गहरी चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है कि हमें मुआवज़ा नहीं चाहिए; हम अपनी ज़मीन पर शांतिपूर्वक रहना जारी रखना चाहते हैं.
गुवाहाटी के पश्चिमी बाहरी इलाकों से होकर बहने वाली ब्रह्मपुत्र की इस महत्वपूर्ण सहायक नदी पर प्रस्तावित बांध स्थल के पास के गांवों में राभा और गारो जनजातियों की बहुसंख्यक आबादी हैं.
कुलसी नदी, जिसे कामरूप जिले के कुछ निचले गांवों में कोलोही भी कहा जाता है, हजारों किसान परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में काम करती है.
इसके अलावा नदी के किनारे रहने वाले मछुआरे समुदाय अपने भविष्य के भरण-पोषण को लेकर चिंतित हैं. लुप्तप्राय रिवर डॉल्फिन के आवास के रूप में नदी का विशेष महत्व है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अनावरण की गई पहली राष्ट्रीय रिवर-डॉल्फिन सर्वेक्षण रिपोर्ट ने कुलसी के महत्व को उजागर किया.
अप्रैल 2022 में किए गए इस सर्वेक्षण में कुकुरमारा से नागरबेरा तक 61 किलोमीटर की दूरी तय की गई. निष्कर्षों से पता चला कि डॉल्फ़िन की अनुमानित आबादी 20 (19-21) है, जिसमें न्यूनतम गिनती 17 है.
ARSU ने आयोजित किया विरोध प्रदर्शन
सोमवार (9 जून, 2025) को ऑल राभा स्टूडेंट्स यूनियन (ARSU) के सदस्यों ने ऊपरी कुलसी क्षेत्र के उकियाम में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया.
ARSU के वरिष्ठ नेताओं ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने दूर-दराज के जंगली इलाके में “हमें न्याय चाहिए” और “हमारी मांगें जायज हैं” के नारे लगाए.
ARSU के उपाध्यक्ष प्रदीप राभा ने चेतावनी दी कि बांध निर्माण से निचले इलाकों में सूखा पड़ जाएगा, जिससे वहां पीढ़ियों से रहने वाले कृषि समुदाय प्रभावित होंगे.
अरसू नेतृत्व ने आस-पास के क्षेत्र में कम से कम 25 गांवों पर प्रस्तावित बांध के प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की.
असम के सीएम सरमा और मेघालय के सीएम संगमा के बीच हाल ही में हुई चर्चाओं ने नदी किनारे के निवासियों के बीच काफी चिंता पैदा कर दी है.
सीएम सरमा ने 55 मेगावाट की कुलसी परियोजना को राज्यों के बीच मैत्री पहल के रूप में घोषित किया. उन्होंने कहा कि स्थानीय राय पर विचार किया जाएगा क्योंकि लगभग 10 गांवों को विस्थापन का सामना करना पड़ रहा है.
सीएम सरमा ने कामरूप और गोलपारा जिलों के लिए बिजली उत्पादन और सिंचाई के लाभों का हवाला देते हुए किसानों के लिए बांध के लाभों पर जोर दिया.
लेकिन अरसू नेता प्रदीप राभा ने सरकार के आंकड़ों का विरोध करते हुए कहा कि लगभग 25 गांव जलमग्न हो जाएंगे. उन्होंने बांध परियोजना के प्रति अपना विरोध दृढ़ता से व्यक्त किया.
चायगांव स्थानीय समिति ने उकियाम से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित चंदूबी मीठे पानी की झील पर बांध के प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की.
उनके बयान में चेतावनी दी गई, “यह चंदूबी के पास एक पानी के बम की तरह होगा.”
क्या है पूरा मामला?
पर्यावरणविदों की चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए असम और मेघालय सरकारों ने कुलसी नदी पर संयुक्त रूप से 55 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना स्थापित करने का निर्णय लिया है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के संगमा के बीच 2 जून, 2025 को गुवाहाटी में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया.
इस दौरान सरमा ने संवाददाताओं से कहा था, “हमने स्थानीय समुदायों के साथ चर्चा के बाद परियोजना स्थापित करने का निर्णय लिया है क्योंकि इससे सोमा गांवों का विस्थापन होगा. कुलसी नदी पर उत्पादित होने वाली बिजली से दोनों राज्यों को लाभ मिलेगा, वहीं असम को सिंचाई का अतिरिक्त लाभ मिलेगा.”
कुलसी ब्रह्मपुत्र की एक छोटी सहायक नदी है जो मेघालय के पश्चिमी खासी हिल्स जिले से असम के कामरूप जिले तक बहती है. करीब 60 किलोमीटर लंबी यह नदी 70 से 80 मीटर की औसत चौड़ाई के साथ ब्रह्मपुत्र से मिलने से पहले असम में बहती है.
कुलसी नदी लुप्तप्राय रिवर डॉल्फिनों के प्रजनन स्थल के रूप में जानी जाती है.
डॉल्फिन संरक्षण
बैठक में दोनों मुख्यमंत्रियों ने लंबे समय से चले आ रहे अंतर-राज्यीय सीमा विवाद और अचानक आने वाली बाढ़ की समस्या को सुलझाने के तरीकों पर भी चर्चा.
हालांकि दोनों मुख्यमंत्रियों ने नदी में डॉल्फिन के भविष्य को लेकर चिंताओं के बारे में बात नहीं की. लेकिन संरक्षणवादियों को डर है कि बांध के कारण नदी डॉल्फिन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जो एक लुप्तप्राय प्रजाति और राष्ट्रीय जलीय प्रजाति है.
देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा नदी डॉल्फिन की पहली राष्ट्रव्यापी जनगणना में कुलसी के 60 किलोमीटर के क्षेत्र में कम से कम 17 नदी डॉल्फ़िन की गिनती की गई.
राज्य वन विभागों की मदद से की गई इस जनगणना में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और पंजाब में 6,327 रिवर डॉल्फ़िन की गिनती की गई.
इस साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिपोर्ट जारी की थी. सर्वेक्षण में ब्रह्मपुत्र बेसिन में 584 डॉल्फिन पाई गईं, जिनमें से 51 इसकी सहायक नदियों में पाई गईं. रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने डॉल्फिन के आवासों पर बड़े बांधों के निर्माण पर चिंता जताई.
असम स्थित एक संरक्षणवादी ने कहा, “हालांकि यह कहना कठिन है कि इस परियोजना का कुलसी में डॉल्फिनों के भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा लेकिन जल विद्युत परियोजनाओं का हमेशा ही निचले इलाकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.”
स्थानीय लोगों ने कई बार दोनों राज्य सरकारों से कुलसी पर हाइड्रो प्रोजेक्ट को आगे न बढ़ाने का आग्रह किया था क्योंकि उनका कहना था कि इससे डॉल्फ़िन का भविष्य ख़तरे में पड़ सकता है.
उन्होंने नदी के तल में हो रहे रेत खनन और कई पुलों के निर्माण पर भी आपत्ति जताई थी.
संरक्षण विशेषज्ञों का कहना है कि कुलसी पर 14 पुल हैं और नदी के तल पर खंभों के निर्माण से डॉल्फ़िन की मुक्त आवाजाही प्रभावित हुई है.