रियांग आदिवासियों को ब्रू रियांग (Bru Reang) भी कहा जाता है. इन्हें कुकी जनजाति का उपजनजाति माना जाता है. इन लोगों की भाषा बोंडो भाषा से संबंधित है
रियांग आदिवासियों को त्रिपुरा की विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति (PVTG) का दर्जा दिया गया है. रियांग त्रिपुरा की इकलौती पीवीटीजी है.
पीवीटीजी की श्रेणी में उन समुदाय को रखा जाता है, जिनकी आर्थिक स्थिति खराब हो, खेती में पंरपरागत तकनीक का इस्तेमाल करते हो और जनसंख्या घट रही हो.
रियांग आदिवासियों की उपजनजाति मोलसाई और मेस्का है. यह मेस्का उपजनजाति भी 7 भागों में विभाजित हैं. इनमें मेस्का, मवसा, चोरखी, रायकवचक, वेरेम शामिल हैं.
इसके अलावा मोलसाई भी 6 भागों में विभाजित है. इनमें मोलसाई, अपेट, नोगखाम, चौंगपरेंग, यक्षतम शामिल हैं.
2011 की जनगणना के मुताबिक त्रिपुरा में रियांग आदिवासियों की जनसंख्या 1,88,220 हैं.
रियांग जनजाति अपने जीवन व्यापन के लिए खेती पर निर्भर है. पहले ये त्रिपुरा में रहने वाले अन्य आदिवासियों की तरह झूम खेती किया करते थे.
लेकिन अब यह आदिवासी भी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने लगे हैं.
रियांग समुदाय की शादी
त्रिपुरा के रियांग समुदाय का यहां के अन्य समुदायों से संपंर्क कम था.
लेकिन अब इनका बंगाली और त्रिपुरा के अन्य आदिवासियों के संपर्क बढ़ गया है. अब इनमें अंतरजातीय शादी भी देखने को मिलती हैं.
रियांग समुदाय में चचेरे भाई-बहन के बीच विवाह प्रचलित था, लेकिन अब यह कम हो रहा है.
इसके अलावा इनमें बाल विवाह नहीं होता और विधवा को पुर्नविवाह करने की अनुमति होती है. विधवा होने पर पुरूष या महिला एक साल के भीतर किसी भी उत्सव में शामिल नहीं होते और एक साल बाद ही पुर्नविवाह की मंजूरी होती है.
रियांग समुदाय में आंद्रा (बिचौलिया) दुल्हा और दुल्हन की शादी तय करती है. ये एक मैचमेकर की तरह काम करती है.
रियांग समुदाय का पहनावा
रियांग समुदाय पुरूष त्रिपुरा में रहने वाले अन्य समुदाय की तरह ही पहनावा रखते है.
वहीं महिलाएं कमर से नीचे तक एक लंबा कपड़ा पहनती है, जिससे रिग्नाई कहा जाता है. इसके अलावा रिहा और रिकुतु नामक कपड़े से अपने ऊपरी भाग को ढकती है. ऐसा भी कहा जाता है कि रियांग महिलाओं को सजने-सवरने का काफी शौक होता है.
इन सभी पांरपारिक कपड़ों को रियांग महिलाओं द्वारा ही बनाया जाता है. आजकल रियांग पुरूष और महिलाएं मुख्यधारा समाज की तरह पहनावा करने लगे हैं.
रियांग आदिवासियों के लोकनृत्य और लोकगीत
रियांग आदिवासी अपने लोकनृत्य और लोकगीत से काफी प्रेम करते हैं.
रियांग समुदाय के होजागिरी नृत्य ने पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना ली है. यह नृत्य लगभग सभी प्रमुख देशों में प्रदशित किया जा चुका है.
इसके अलावा श्री सत्य राम रियांग ने नृत्य के संरक्षण, प्रचार और प्रशिक्षण के लिए जीवन भर समर्पण दिया है. इनके जीविन भर समर्पण के लिए भारत सरकार द्वारा इन्हें संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित किया गया था.
सामाजिक स्थिति
रियांग समुदाय में ज्यादातर समस्याएं और मतभेदों को कोटर दोफ़ा के लोगों, यानी संबंधित उप जनजाति के राय और कास्को द्वारा सुलझाया जाता है.
इन सभी समस्याओं को रियांग समुदाय के पंरपरागत कानून (Customary Law) के अनुसार सुलझाया जाता है.
रियांग समुदाय में जब भी कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो राय द्वारा एक बैठक बुलाई जाती है. इस बैठक में दोनो पक्षों के तर्को को सुना जाता है और फिर परंपरागत कानून के अनुसार फैसला होता है.
इस फैसले में जो सज़ा सुनाई जाती है, उसका पूर्ण रूप से पालन होता है.
धार्मिक आस्था और त्योहार
त्रिपुरा के अन्य समुदाय जिन भगवानों को मानते है, रियांग भी उन्हीं की पूजा करते हैं. इसके अलावा इनके त्योहार भी त्रिपुरा के अन्य आदिवासियों की तरह ही होते हैं.
इन त्योहारों में केर, गोंगा मुताई, गोरिया, चित्रगुपरा, होजागिरी, कंटगी पूजा, लाम्प्रा शामिल हैं. त्योहार मनाने में काफी खर्चा आता है.
इसलिए रियांग समुदाय के प्रत्येक परिवार अपनी तरफ से खैन(पैसे) देते हैं, ताकि त्योहार पूर्ण तरीके से मनाया जा सके.
रियांग आदिवासियों में विभिन्न देवताओं की पूजा भी मुख्य धारा त्रिपुरी लोगों जैसी ही होती है. समुदाय का ओचाई (पुजारी) अपने सहायक के साथ सभी देवाताओं की पूजा करता है.
यह आदिवासी हरे बांस के खंभे को देवता की मूर्ति के रूप में प्रयोग करते हैं. पूजा में विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु जैसे मुर्गी, सुअर, बकरी के अंडे आदि चढ़ाए जाते हैं.
पूजा का स्थान घरों के बाहर चुना जाता है.