बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर झारखंड और देश के कई अन्य राज्यों में जगह जगह पर कई कार्यक्रम आयोजित किये गए. धरती आबा बिरसा मुंडा की आज पुण्यतिथि है. इनकी मृत्यू 9 जून, 1900 में हुई थी. बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 में रांची के पास उलिहातु में हुआ था.
इन्होंने जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ी थी.. अंग्रेजों, जमींदारों और शोषकों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. बिरसा मुंडा आदिवासीयों के सबसे बड़े नेता थे और आज उन्हें भगवान का दर्जा प्राप्त है. भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा को बेहद सम्मान से याद किया जाता है.
महज 25 साल की उम्र में इनका निधन हुआ जिसके पहले इन्होंने आजादी और आदिवासियों के लिए एक बड़ी लड़ाई लड़ी थी. मुंडा जनजाति के सदस्य के रूप में उन्होंने बहुत छोटी उम्र में ब्रिटिश शासन का कड़ा विरोध किया और अपने लोगों के लिए जमकर लड़े.
बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1889-1900 में उलगुलान आंदोलन हुआ था. जिसका मतलब होता है महाविद्रोह. इसकी शुरुआत सिंहभूम के संकरा गांव से हुई थी. यह विद्रोह सामंती व्यवस्था, जमींदारी प्रथा और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ था.
बिरसा ने मुंडा आदिवासियों को जल, जंगल की रक्षा के लिए लोगों को प्रेरित किया. इसके लिए उन्होंने उलगुलान नाम से एक आंदोलन की शुरुआत की. यह अंग्रेजी शासन और मिशनकारियों के खिलाफ था. जिसका मुख्य केंद्र खूंटी, तमाड़, सरवाडा और बंदगांव में थे.
जब जमींदारों और पुलिस का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था तब भगवान बिरसा ने इस आंदोलन की शुरुआत करने की सोची. इसके पीछे उनका मकसद आदर्श भूमि व्यवस्था को लागू करना था. यह तभी संभव था जब अंग्रेज अफसर और मिशनरी के लोग पूरी तरह हट जाएं. इसके लिए सबसे पहले उन्होंने लगान माफी के लिए आंदोलन की शुरुआत. जिससे जमींदारों के घर से लेकर भूमि का कार्य रुक गया.
इस आंदोलन का असर ये हुआ कि अंग्रेजों ने आदिवासियों को उनकी ही जमीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी. जमींदार उनकी जमीन हथियाने लगे थे. जिसे पाने के लिए मुंडा समुदाय के लोगो ने आंदोलन की शुरुआत की जिसे “उलगुलान” का नाम दिया गया. अंत में अंग्रेजों ने चक्रव्यू रच कर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में रहने के दौरान ही उनकी मौत हो गयी.