अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले आदिवासी समुदाय, विशेष रूप से विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs), जैसे शोम्पेन, जारवा, ओंग, और ग्रेट अंडमानी के साथ मुख्यधारा के लोगों का कैसा और कितना संपर्क होना चाहिए, यह बहस का विषय रहा है.
अंडमान प्रशासन की घोषित नीति है उसके अनुसार यह निर्णय पूरी तरह से यहां के द्वीपों पर बसे आदिवासी समुदायों पर छोड़ दिया गया है. इन समुदायों के जीवन में प्रशासन की भूमिक महज इतनी है कि उन्हें कोई बीमारी या अन्य किसी संकट से बचाया जा सके.
इसके अलावा जो आदिवासी समुदाय मुख्यधारा के साथ दोस्ती करना चाहते हैं उन्हें इस तरह के अवसर प्रदान किये जाएं. यहां के आदिवासी समुदायों के बारे में ज़्यादातर जानकारों, कार्यकर्ताओं और एंथ्रोपोलोजिस्टों का यह मानना है कि उनको मुख्यधारा में शामिल करने की कोशिशें उनके लिए ख़तरनाक साबित हो सकती है.
अक्सर यह भी देखा गया है कि अंडमान प्रशासन अपनी घोषित नीति के बावजूद इस तरह के संकेत देता है जिससे ऐसा अहसास होता है कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह के आदिवासी अब अपनी मर्ज़ी से मुख्यधारा में आ रहे हैं.
मसलन इस दिशा में 19 अप्रैल, 2024 को एक ऐतिहासिक दिन बताया गया था. अंडमान-निकोबार प्रशासन और चुनाव आयोग ने यह दावा किया कि इस दिन शोम्पेन जनजाति के नौ सदस्यों ने पहली बार लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेते हुए लोकसभा चुनाव में मतदान किया था.
प्रशासन की तरफ से कहा गया कि यह केवल एक वोट नहीं था, बल्कि उनके समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी. शोम्पेनकी जनसंख्या केवल 244 है. ये आदिवासी मुख्य रूप से निकोबार द्वीप के घने जंगलों में रहते हैं और खानाबदोश जीवन व्यतीत करते हैं.
इतने छोटे समुदाय के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेना उनके एकीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा सकता है. इस तरह के दावे प्रशासन शोम्पेन के अलावा जारवा, ओंग और ग्रेट अंडमानी जैसे अन्य पीवीटीजी के बारे में भी करते रहे हैं.
यह जनजातियां अपने-अपने आरक्षित घने जंगलों में रहती हैं, जहां गैर-आदिवासियों का प्रवेश वर्जित है. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इन जनजातियों के बीच मुख्यधारा के समाज के साथ धीरे-धीरे संपर्क बढ़ा है. जिसे कुछ विशेषज्ञ सकारात्मक मानते हैं, जबकि अन्य इसे उनके जीवन के लिए खतरा मानते हैं.
अंडमान आदिम जनजाति विकास समिति (AAJS) के आदिवासी कल्याण अधिकारी, डॉक्टर प्रणब सरकार का कहना है कि आदिवासी नीतियों के माध्यम से पीवीटीजी का धीरे धीरे मुख्यधारा में एकीकरण हो रहा है.
उनके अनुसार ये नीतियां आदिवासियों को अपनी इच्छा के अनुसार संपर्क साधने और मुख्यधारा के समाज में भागीदारी विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. उन्होंने ओंग जनजाति का उदाहरण देते हुए कहा कि ‘अंग कथा’ जैसे शैक्षिक मॉड्यूल उनके मुख्यधारा में समावेश की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
जारवा जनजाति के साथ काम करने वाले एंथ्रोपोलोजिस्ट यह दावा करते हैं कि जिस जनजाति को हम लोग जारवा के नाम से जानते हैं, यह नाम उनका नहीं है. जारवा जनजाति के लोग खुद को अंग कहते हैं और उनकी भाषा अंग है.
इसलिए प्रशासन ने उनके लिए उनकी भाषा में कुछ कहानियां तैयार की हैं.
ऐसे शैक्षिक मॉड्यूल अन्य पीवीटीजी के लिए भी तैयार किए गए हैं, जो उन्हें सामाजिक मानदंडों के बीच अंतर करने में मदद करते हैं. प्रशासनिक अधिकारी यह दावा करते हैं कि ये प्रयास अंडमान के आदिवासियों और बाहरी दुनिया के बीच तालमेल बैठाने में सहायक होते हैं.
प्रशासन का दावा है कि शिक्षा के माध्यम से समाज में हुए बदलावों के कई उदाहरण सामने आए हैं. जैसे ग्रेट अंडमानी जनजाति की टेचा ने नीट-2022 परीक्षा पास करके एक नई मिसाल कायम की है. वह स्ट्रेट आइलैंड से अपनी चुनौतीपूर्ण यात्रा को पार करके इस मुकाम तक पहुंची और अब वह मेडिकल शिक्षा प्राप्त कर रही हैं.
टेचा की यह सफलता उन हजारों आदिवासी युवाओं के लिए प्रेरणा बन सकती है, जो जंगलों के बाहर अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
इसी प्रकार, ओलेक, एक अन्य ग्रेट अंडमानी, ने पीडब्ल्यूडी विभाग में जूनियर इंजीनियर के रूप में नौकरी प्राप्त की है. उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि करियर के लिए जंगलों से परे सोचने की आवश्यकता है.
अंडमान प्रशासन ग्रेट अंडमानी जनजाति की लड़की और लड़के की इन उपलब्धियों के ज़रिए यह दावा करता है कि सिर्फ शिक्षा ही नहीं, बल्कि रोजगार के अन्य अवसर भी इन जनजातियों को मुख्यधारा के समाज में जोड़ने में मदद कर रहे हैं.
इस सिलसिले में प्रशासन की तरफ से अक्सर ग्रेट अंडमानी के बुरो, एलेज और मोरोफू समेत पुलिस बल में काम करने वाले 9 लोगों का उदाहरण भी देता है. लेकिन अंडमान निकोबार की जनजातियों पर काम करने वाले यह कहते हैं कि जिन्हें प्रशासन ग्रेट अंडमानी कहता है वे दरअसल मिश्रित परिवारों के बच्चे हैं.
यह एक कड़वा सच्च है कि ग्रेट अंडमानी नाम की जनजाति अब ख़त्म हो चुकी है.
सरकारी परियोजनाएं और विस्थापन का डर
एक तरफ़ सरकार का दावा है कि वह अंडमान निकोबार द्वीप समूह की जनजातियों के संरक्षण के लिए काम कर रही है. वहीं दूसरी तरफ निकोबार में हाल ही में 72,000 करोड़ रुपये की इंटरनेशनल ट्रांसशिपमेंट प्रोजेक्ट पर चिंताएं देखी गई हैं.
इस परियोजना के तहत एक बड़ा बंदरगाह और लॉजिस्टिक हब विकसित किया जा रहा है, जिससे द्वीप की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.इस परियोजना को लेकर यह चिंता प्रकट की जा रही है कि अगर यह परियोजना लागू होती है तो शोम्पेन जैसे जनजातीय समुदायों का वजूद ख़त्म हो सकता है.
यह चिंता प्रकट की जा रही है कि इस परियोजना से उनकी भूमि और जंगलों का नुकसान हो सकता है. कुछ आदिवासी नेताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना से शोम्पेन जनजाति के खानाबदोश जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
स्थानीय प्रशासन ने यह दावा किया है कि यह परियोजना ऐसे क्षेत्र में विकसित की जा रही है, जहां शोम्पेन जनजाति नहीं रहती. प्रशासन का कहना है कि 2004 की सुनामी के बाद शोम्पेन पहले ही घने जंगलों में चले गए थे और अब वे उस क्षेत्र में नहीं रहते जहां इस परियोजना का निर्माण हो रहा है.
इस मामले में सरकार से संसद में भी सवाल पूछा गया था. सरकार ने आश्वासन दिया है कि इस परियोजना को लागू करते समय शोम्पेन जनजाति के हितों को ध्यान में रखा जाएगा. लेकिन सरकार के आश्वासनों के बावजूद कई तरह के सवाल अभी भी उठ रहे हैं.
हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने फिर से केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को इस परियोजना से पर्यावरण को नुकसान की आशंका के बारे में पत्र लिखा है.
सांस्कृतिक संरचना का संरक्षण और बदलाव
अंडमान निकोबार जनजातीय शोध संस्थान (ANTRI) के फॉर्मर डायरेक्टर एस.ए. अवाराधी ने कहा कि पीवीटीजी का मुख्यधारा में एकीकरण अवश्यंभावी है. लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान इन जनजातियों को शोषण से बचाने की जरूरत है. उनका मानना है कि इन जनजातियों को न केवल सहायता प्रदान की जानी चाहिए, बल्कि उन्हें ऐसी स्थिति में भी लाया जाना चाहिए, जहां वे बिना शोषण के बड़े समाज के साथ सह-अस्तित्व में रह सकें.
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय का दावा है कि सरकार का उद्देश्य इन जनजातियों को सशक्त और स्थिर बनाना है. मंत्रालय के अनुसार, यह एकीकरण केवल आदिवासियों की इच्छा पर आधारित है, न कि किसी तरह के दबाव पर.
इसके पीछे का उद्देश्य आधुनिकता और सांस्कृतिक संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करना है. केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओरांव ने इस पर जोर देते हुए कहा कि यह एकीकरण आदिवासियों की स्वेच्छा पर आधारित है और सरकार इस दिशा में किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डाल रही है।
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में आदिवासियों का मुख्यधारा के समाज में धीरे-धीरे शामिल होना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कई सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहलू शामिल हैं.
इन जनजातियों को मुख्यधारा में जोड़ने के सवाल पर अवराधी के अनुभव और राय में दम नज़र आता है. क्योंकि आज की तारीख़ में यह नहीं कहा जा सकता है कि अंडमान निकोबार द्वीप के आदिवासियों का बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं है.
यह बात सही हो सकती है कि यह संपर्क सीमित है. लेकिन वक्त के साथ यह संपर्क लगातार बढ़ेगा. इसलिए इसे रोकना असंभव है. ज़रूरत इस बात की है कि जब इन आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने की बात हो तो यह भी ध्यान रखना होगा कि यह एक लंबी प्रक्रिया होगी.
इसके साथ ही यह भी देखना होगा कि मुख्यधारा में शामिल होने के बाद इन जनजातियों का समाज में क्या स्थान होगा. .”