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सिकल सेल मुक्त भारत: अमृत काल का लक्ष्य और उसे हासिल करने की चुनौती

सिकल सेल बीमारी से लड़ना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन यह एक महत्वपूर्ण बात है कि सरकार ने आदिवासी भारत में खामोशी से लोगों को मौत के घाट उतार रही एक बीमारी पर बात करते हुए उसे मिटाने का लक्ष्य रखा है. इस बीमारी से जुड़े कुछ विशेषज्ञों ने सरकार को कुछ फ़ीडबैक दिया है, जो सरकार के काम आ सकता है.

बुधवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को जड़ से खत्म करने के लिए एक राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की है . 

लेकिन खराब स्वास्थ्य सुविधाएं और जीवन के लिए ख़तरनाक इस आनुवंशिक रक्त विकार  से जुड़ी इस बीमारी के लिए मौजूदा योजनाओं के कार्यान्वयन की कमी इस लक्ष्य की कामयाबी पर संदेह पैदा करती हैं.  

यह एक आनुवंशिक या वंशानुगत डिसऑर्डर है, जिसमें रक्त में ऑक्सीजन की कमी के कारण लाल रक्त कोशिकाएं अंडाकार आकार की हो जाती हैं. यह तब होता है जब एक व्यक्ति को माता-पिता दोनों से ही हीमोग्लोबिन जीन की दो असामान्य प्रतियां विरासत में मिलती हैं.

जब यह बीमारी किसी को हो जाती है तो उसे जीवन भर दर्द निवारक दवा खानी पड़ती है. इसके साथ-साथ फोलिक एसिड और हाइड्रोक्सीयूरिया लेने से इस बीमारी से निपटा जा सकता है. 

यह बीमारी नौ प्रतिशत पॉजिटिविटी रेट के साथ आदिवासी आबादी में सबसे आम है.

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा बड़ी जनजातीय आबादी वाले राज्यों में देश के कुल 12 लाख सिकल सेल रोग (sickle cell disease) से पीड़ित हैं.  महाराष्ट्र का पूर्वी विदर्भ यानि एक ही क्षेत्र में लगभग 50 हज़ार एससीडी रोगियों के साथ सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है.

चार पूर्वी विदर्भ जिलों में नागपुर, गढ़चिरौली, भंडारा और यवतमाल को सबसे ज्यादा जोखिम वाला यानि हॉटस्पॉट माना जाता है.

हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव

महाराष्ट्र राष्ट्रीय रोग भार का 29.8 प्रतिशत साझा करता है. हालाँकि इस मामले में  गुजरात पहले स्थान पर है. पिछले साल फरवरी में जनजातीय मामलों की राज्य मंत्री रेणुका सिंह सरूता ने खुलासा किया था कि महाराष्ट्र में कुल 1,69,191 लोगों में इस बीमारी के लक्षण का पता चला था. 

वहीं गुजरात में यह बीमारी ज़्यादा विकराल नज़र आती है. यहाँ के बारें में संसद में जो जानकारी दी गई है उनके अनुसार गुजरात में कम से कम 7,29,561 ऐसे लोगों की पहचान की गई थी जिनमें इस रोग के लक्षण हैं.

गुजरात (29,266) के बाद महाराष्ट्र में सिकल सेल एनीमिया के 14,141 रोगियों का निदान किया गया. हालांकि, सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग का राज्य का आंकड़ा 18 हज़ार पंजीकृत रोगियों के साथ अधिक संख्या दर्शाता है.

वहीं नंदुरबार जो 70 प्रतिशत जनजातीय आबादी वाला जिला है वो महाराष्ट्र के रोग भार का 30 प्रतिशत साझा करता है. लेकिन हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर, दवाओं और विशेषज्ञों की कमी ने न सिर्फ उन्हें पंगु बना दिया बल्कि मृत्यु दर को भी बढ़ा दिया.

स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव होने के चलते कुछ मामलों में मरीजों को इलाज के लिए पड़ोसी राज्य गुजरात जाने के लिए भी मजबूर होना पड़ता है.

बोन मैरो सेंटर की कमी

 जनजातीय समुदाय बहुल इलाक़ों में जहां स्वास्थ्य सेवा की पहुंच सीमित है वहां ये बीमारी फैलती रहती है. इसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट से ठीक किया जा सकता है लेकिन ज्यादातर आदिवासी जिलों में बोन मैरो सेंटर तक नहीं है.

राष्ट्रीय सिकल सेल (NASCO) के सचिव गौतम डोंगरे का कहना है कि गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए जहां बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही बचने की एकमात्र उम्मीद है, उन्हें नासिक या मुंबई के सरकारी अस्पतालों में भेजा जा रहा है. निजी अस्पतालों में इसकी कीमत 25 लाख रुपये से अधिक है जिसे ये गरीब लोग वहन नहीं कर सकते हैं.

वहीं कुछ मामलों में परिवार जो किसान हैं या दिहाड़ी मजदूर हैं वे इन शहरों में कई दिनों तक रहने का जोखिम भी नहीं उठा सकते हैं. और आखिर में बीमार बच्चे की मौत हो जाती है.

कोई ब्लड बैंक नहीं

कुछ रोगियों को तत्काल ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है लेकिन ब्लड बैंक खोजना एक और मुश्किल काम है. गढ़चिरौली के जंगलों में एक एम्बुलेंस सेवा चलाने वाले साईं तुलसीगरी ने कहा, “सिरोंचा, भामरागढ़, मूलचेरा और एटापल्ली जैसे तालुकों में इस तरह के बहुत मामले हैं लेकिन ब्लड बैंक नहीं हैं. मरीजों को जिला अस्पताल ले जाना पड़ता है. यहां तक कि जो ब्लड बैंक हैं वहां ब्लड ही नहीं है. फिर हम डोनर्स को केंद्रों तक ले जाते हैं.”

10 मार्च, 2015 के महाराष्ट्र सरकार के संकल्प के अनुसार, सिकल सेल रोगी राज्य के स्वास्थ्य मिशन के तहत मुफ्त राज्य परिवहन (State transport) के हकदार हैं लेकिन ऐसा कोई प्रावधान जमीनी स्तर पर मौजूद नहीं है.

इस प्रकार की खामियां मृत्यु दर को बढ़ाती हैं. लेकिन राज्य में सिकल सेल एनीमिया से संबंधित मौतों की कुल संख्या के आंकड़ों का भी अभाव है. पूछे जाने पर राज्य के स्वास्थ्य सेवा निदेशालय के ADHS ब्लड सेल, डॉ महेंद्र केंद्रे ने कहा कि रोगी की मृत्यु हो गई है या नहीं, इसकी जांच करने और डेटा को अपडेट करने के लिए कोई मैकेनिज्म नहीं है.

उन्होंने कहा, “जब कोई मरीज मर जाता है तो परिजन स्वास्थ्य विभाग को सूचित नहीं करते हैं. इसलिए हमारे पास सिकल सेल एनीमिया का डेटा नहीं है.”

मेडिकल अलाउंस नहीं मिलता

संजय गांधी निराधार अनुदान योजना के तहत विकलांग रोगी और जिनकी पारिवारिक वार्षिक आय 21,000 रुपये तक है, वे हर महीने 600 रुपये भत्ता पाने के लिए पात्र माने जाते हैं. 

लेकिन जागरूकता की कमी और नौकरशाही की उदासीनता के कारण कई लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है.

मैरिज काउंसलर की कोई सुविधा नहीं

रिश्तेदारों के बीच विवाह आदिवासियों में सिकल सेल रोग को बढ़ा रहा है. डॉक्टरों का कहना है कि आदिवासी आमतौर पर अपने समुदायों से बाहर शादी नहीं करते हैं. इससे दो ऐसे लड़के लड़की जो इस विकार से ग्रस्त हो सकतते हैं या जिनमें बीमारी के समान लक्षण हैं उनके विवाह करने की संभावना बढ़ जाती है. 

इसलिए इस तरह की शादी से उनकी संतानों को रक्त विकार विरासत में मिलता है.

इस बीमारी से ग्रस्त आदिवासियों के बीच लंबे समय से काम कर रहे गुजरात के भरुच ज़िले से डॉक्टर दक्सर पटेल ने MBB से बात करते हुए कहा, “जेनेटिक काउंसलरों को प्री-मैरिटल स्क्रीनिंग पर ध्यान देना चाहिए और पॉजिटिव मरीजों को उनके परिवार नियोजन के बारे में सूचित किया जाना चाहिए.” 

हालांकि, राज्य में ऐसी कोई पहल नहीं की गई है. यह सुझाव दिया जाता है कि पीसीआर की तकनीक से प्रसव पूर्व निदान एक होना चाहिए. लेकिन किसी भी जिले में ऐसा नहीं किया गया है.

विवाह पूर्व युवाओं का हो टेस्ट

केंद्रीय बजट में 2047 तक आनुवंशिक रक्त विकार को खत्म करने के लिए एक नए मिशन की घोषणा के बाद, विशेषज्ञों का मानना है कि आदिवासी आबादी के अलावा परियोजना को विवाह पूर्व युवाओं पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है जो कि सबसे कमजोर समूह है. जो तेज़ी से सिकल सेल रोग की चपेट में आ रहे हैं.

बाल रोग विशेषज्ञ और थैलेसीमिया एंड सिकल सेल सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ विंकी रुघवानी ने कहा, “बजट की घोषणा के मुताबिक सरकार की योजना 0 से 40 आयु वर्ग के बीच 7 करोड़ यूनिवर्सल जनसंख्या की जांच करने की है. लेकिन हमें इस बीमारी को रोकने के लिए सबसे ज्यादा युवाओं को स्क्रीनिंग समूह में शामिल करने की जरूरत है क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी भारत में निवास करती है.”

रुघवानी ने कहा, “पॉजिटिव मामलों के लिए हाई-परफॉर्मेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी मशीन टेस्ट के बाद सोलुबिलिटी टेस्ट अनिवार्य रूप से शादी से पहले किया जाना चाहिए. सरकार को थैलेसीमिया को भी मिशन में शामिल करने की जरूरत है. मिशन को पोलियो अभियान की तरह अपनाया जाए. सिकल सेल और थैलेसीमिया दोनों 100 प्रतिशत रोके जा सकते हैं.”

विशेषज्ञों के अनुसार, देश में लगभग 12 लाख सिकल सेल रोगी हैं. उनमें से ज्यादातर में एसएस-पैटर्न सबसे आम प्रकार का सिकल सेल रोग है, जो तब होता है जब एक बच्चे को माता-पिता दोनों से हीमोग्लोबिन एस जीन विरासत में मिलता है. बहुत ज्यादा दर्द, एनीमिया, खराब दृष्टि, अंगों पर सूजन, फेफड़े, किडनी, मस्तिष्क या लीवर को नुकसान एससीडी के परिणाम हैं. 

गैर-आदिवासी आबादी में भी यह बीमारी पाई गई है.

जनजातीय मामलों के मंत्रालय की 2016-18 की राष्ट्रव्यापी रिपोर्ट के अनुसार, 1.13 करोड़ से अधिक जनजातीय आबादी की सिकल सेल रोग के लिए जांच की गई थी. इनमें से 9.96 लाख पॉजिटिव पाए गए. अन्य 9.49 लाख वाहक पाए गए.

क्‍या है सिकल सेल एनीमिया?

सिकल सेल एनीमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है. इस आनुवांशिक डिसऑर्डर में ब्‍लड सेल्‍स या तो टूट जाती हैं या उनका साइज और शेप बदलने लगती है जो खून की नसों में ब्‍लॉकेज कर देती हैं. 

सिकल सेल एनीमिया में रेड ब्‍लड सेल्‍स मर भी जाती हैं और शरीर में खून की कमी हो जाती है. जेनेटिक बीमारी होने के चलते शरीर में खून भी बनना बंद हो जाता है.

वहीं शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण यह रोग कई जरूरी अंगों के डेमेज होने का भी कारण बनता है. इनमें किडनी, स्पिलीन और लिवर शामिल हैं.

इस बीमारी के लक्षण

जब भी किसी को सिकल सेल एनीमिया हो जाता है तो उसमें कई लक्षण दिखाई देते हैं. जैसे मरीज को हर समय हड्डियों और मसल्‍स में दर्द रहता है. स्पिलीन का आकार बढ़ जाता है. शरीर के अंगों खासतौर पर हाथ और पैरों में दर्द भरी सूजन आ जाती है. खून नहीं बनता, बार-बार खून की भारी कमी होने के चलते बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है.

सिकल सेल एनीमिया बीमारी का पूरी तरह निदान संभव नहीं है. हालांकि ब्‍लड जांचों के माध्‍यम से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है. फॉलिक एसिड आदि दवाओं के सहारे इस बीमारी के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. इसके लिए स्‍टेम सेल या बोन मेरो ट्रांस्‍प्‍लांट एक उपाय है.

सिकल सेल एनीमिया में मौत का कारण संक्रमण, दर्द का बार-बार उठना, एक्‍यूट चेस्‍ट सिंड्रोम और स्‍ट्रोक आदि हैं. इस बीमारी से पीड़ित व्‍यक्ति की मौत अचानक हो सकती है.

पक्के इरादे से मुश्किल लक्ष्य हासिल हो सकता है

कोविड के दौरान वैक्सीन कार्यक्रम में भारत यह साबित कर चुका है कि ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का नेटवर्क मौजूद है. लेकिन सिकल सेल बीमारी की कोई वैक्सीन नहीं है.

इसलिए बेशक इस बीमारी से लड़ना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन यह एक महत्वपूर्ण बात है कि सरकार ने आदिवासी भारत में खामोशी से लोगों को मौत के घाट उतार रही एक बीमारी पर बात करते हुए उसे मिटाने का लक्ष्य रखा है.

अगर सरकार पक्का इरादा कर ले तो समय की सीमा थोड़ी आगे-पीछे हो सकती है, लेकिन इस बीमारी से आदिवासी मुक्त हो सकते हैं.

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