HomeIdentity & Lifeआंध्र प्रदेश: महुआ पर पुलिस की छापेमारी से आदिवासी परेशान हैं

आंध्र प्रदेश: महुआ पर पुलिस की छापेमारी से आदिवासी परेशान हैं

अल्लूरी सीताराम राजू ज़िले में स्थित कोक्केरागुडेम गाँव में कोया आदिवासियों कीसंस्कृति और पंरपरा का महत्वपूर्ण अंग है. इसके अलावा महुआ इन्हें रोज़गार भी देता है. लेकिन गाँव में बढ़ती छापेमारी के कारण यहीं महुआ गाँव वालों के लिए अभिशाप बन गया है.

आंध्र प्रदेश (Tribes of Andhra Pradesh) के अल्लूरी सीताराम राजू ज़िले (Alluri Sitaram Raju District) में स्थित कोक्केरागुडेम गाँव में 50 घर हैं. यह गाँव जंगलों के बीचों-बीच बसा है. इस गाँव में घर से ज्यादा महुआ के पेड़ मौजूद है.

महुआ पेड़ को इसके वैज्ञानिक नाम मधुका लोंगिफोलिया से भी जाना जाता है.

भारत के आदिवासी समुदायों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के अलावा उनकी धार्मिक आस्थाओं से महुआ बहुत करीब से जुड़ा है.

मार्च-अप्रैल के महीने में महुआ का फूल झड़ने लगता है. इस दौरान आदिवासी इलाकों में लोग सुबह सुबह महुआ का फूल जमा करने जंगल में निकल जाते हैं. महुआ के फूल मुख्य रूप से शराब (Mahua Liquor) बनाने के काम आते हैं. इसके अलावा महुआ के सूखे फूल गाँव के लोगों के लिए कमाई का मुख्य साधन है.

रोज़गार के अलावा गाँव में रहने वाले कोया आदिवासियों के लिए महुआ रीति रिवाजों और पंरपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है.

लेकिन अब यहीं महुआ गाँव के लोगों के लिए अभिशाप बन गया है.

क्योंकि गाँव के कई घरों में स्पेशल इंफोर्समेंट पुलिस ने हाल ही में छापा मारा है. छापे के दौरान उन्होंने कई घरों से महुआ बोतल और महुआ के फूल जब्त किए है. पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक अभी तक 100 छापे मारे जा चुके हैं

राज्य पुलिस ने गैर क़ानूनी तरीके से शराब उत्पादन को रोकने के लिए एक नई पुलिस शाखा स्पेशल इंफोर्समेंट ब्यूरो का निर्माण किया है.

पुलिस द्वारा की गई इस छापामारी से गाँव के ज़्यादातर आदिवासी परेशान है. क्योंकि महुआ के बिना उनका कोई भी रीति रिवाज संपन्न नहीं हो सकता.

आंध प्रदेश में एक तरफ मद्य निषेध अधिनियम,1995 किसी को शराब बनाने और स्टोर करने की अनुमति नहीं देता है.

लेकिन दूसरी ओर पेसा एक्ट ग्राम पंचायत में जनजातियों की पंरपराओं और संस्कृति की रक्षा करने का अधिकार देता है.

कोया आदिवासियों (Koya Tribe) का कहना है कि वह शराब सिर्फ व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए बनाते हैं.

रोज़गार का साधन

आदिवासी समुदायों के लिए वन उपज आय का सबसे बड़ा साधन है. वन उपज में भी महुआ के फूल से उनकी आय का बड़ा हिस्सा आता है.  

महुआ के सीज़न में आदिवासी जंगल से इसके फूल जमा करते हैं. फिर इन फूलों को साप्ताहिक हाटों में बेचा जाता है. इन हाटों में मौसम और उपलब्धता के हिसाब से महुआ 35 रूपये किलो से 65 रूपये किलो तक बिक जाता है.

महुआ का सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

कोया आदिवासियों में जन्म से लेकर शादी और मृत्यु के सभी कार्यक्रमों में महुआ शराब प्रमुख है.

ऐसा बताया जाता है कि कोया आदिवासियों की शादियों में 3000 से 4000 हज़ार मेहमान आते है. इन सभी मेहमानों को महुआ शराब परोसी जाती है.

इन आदिवसियों में मानसून उत्सव के दौरान शिकार करते समय महुआ राहत देता है. इसके अलावा खरीफ़ फसल के शुरूआती समय में कोया आदिवासियों में त्योहार मनाया जाता है, जिसमें महुआ काफी महत्वपूर्ण है.

संक्रांति के समय कोया आदिवासी चिक्कुडुकई त्योहार मनाते है. इस त्योहार में सभी कोया आदिवासी खाने से पहले अपने देवी देवताओं को महुआ शराब परोसते है.

आदिवासी बहुल इलाकों में पुलिस अधिकारी यह बात जानते हैं कि महुआ आदिवासी संस्कृति और जीवन का अहम हिस्सा होने के साथ साथ उनकी आय का भी मुख्य साधन है.

लेकिन इसके बावजूद अक्सर पुलिस आदिवासियों को परेशान करती है. क्योंकि आस-पास के शराब व्यापारियों को लगता है कि अगर महुआ की शराब का घर पर ही उत्पादन बंद कराया जा सकता है तो फिर उनके ठेकों की शराब ज़्यादा बिकेगी.

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