ओडिशा हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. मामला सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व (STR) में बने उस बाड़े से जुड़ा है जहां बाघिन ज़ीनत को रखा गया है.
मुंडा जनजाति के लोग इस बाड़े का विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह उनकी पवित्र भूमि “जायर” और अंत्येष्टि स्थल “ससन पिलिस” पर बना है.
एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस.के. पाणिग्रही की बेंच ने इस मामले में राज्य और केंद्र सरकार से जवाब मांगा.
कोर्ट ने वन विभाग, ज़िला प्रशासन और केंद्र सरकार के अधिकारियों को नोटिस जारी कर 25 मार्च तक जवाब देने का आदेश दिया है.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बाड़ा उनकी धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी जगह पर बना है और इसे तुरंत वहां से हटाया जाना चाहिए.
क्या है पूरा मामला?
सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व के अंदर गुडगुड़िया ग्राम पंचायत के जामुनगढ़ गांव में मुंडा जनजाति के लोगों की पवित्र भूमि “जायर” है.
इस स्थान को वे अपने पूर्वजों की याद में पवित्र मानते हैं और अपने धार्मिक अनुष्ठान यहीं करते हैं.
लेकिन महाराष्ट्र के ताडोबा टाइगर रिजर्व से लाई गई बाघिन ज़ीनत के लिए इसी जगह पर बाड़ा बना दिया गया.
ज़ीनत पहले जंगल से बाहर निकलकर झारखंड और बंगाल चली गई थी. उसे दो बार 28 दिसंबर 2024 को और 1 जनवरी 2025 को वापस सिमिलिपाल लाया गया.
पहले उसे एक छोटे बाड़े में रखा गया था लेकिन बाद में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के नियमों के तहत उसे बड़े बाड़े में शिफ्ट कर दिया गया.
जनवरी 2025 में भी दायर की थी याचिका ?
मुंडा समुदाय के लोग बाड़ा बनने के बाद 22 जनवरी 2025 को सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व (STR) प्रशासन से अपनी पवित्र भूमि पर जाने की अनुमति मांगने पहुंचे.
वे अपने पूर्वजों की पूजा और दफन भूमि के अनुष्ठान करना चाहते थे. लेकिन सिमिलिपाल दक्षिण वन प्रभाग के उपनिदेशक ने उनकी अपील खारिज कर दी.
आदेश में कहा गया कि अब यह इलाका बाघ संरक्षण के तहत है इसलिए वहां किसी को जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती.
याचिकाकर्ताओं की मांग
याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि बाघिन ज़ीनत का बाड़ा किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट किया जाए और उनकी पवित्र भूमि को पहले जैसा बहाल किया जाए. वे चाहते हैं कि उन्हें पहले की तरह अपने धार्मिक अनुष्ठान करने की अनुमति दी जाए.
सरकार और वन विभाग का पक्ष
वन विभाग का कहना है कि सिमिलिपाल के कोर एरिया में बाघों की सुरक्षा ज़रूरी है.
अधिकारियों का दावा है कि गांव के लोग 2015 और 2022 में पुनर्वासित किए जा चुके हैं इसलिए इस इलाके में अब किसी का अधिकार नहीं बनता.
वहीं वन विभाग का कहना है कि किसी भी समुदाय के किसी धार्मिक स्थल को नुकसान नहीं पहुंचाया गया है.
हाई कोर्ट ने सभी संबंधित विभागों से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई के लिए 25 मार्च की तिथि दी है.