HomeAdivasi Dailyमानगढ़ से माउंट आबू तक, बीजेपी का राजस्थान में आदिवासी प्लान

मानगढ़ से माउंट आबू तक, बीजेपी का राजस्थान में आदिवासी प्लान

राजस्थान में विधान सभा चुनाव के प्रचार में आदिवासी समुदायों पर फोकस दिखाई दे रहा है. यहां पर भारतीय ट्राइबल पार्टी और आदिवासी परिवार जैसे छोटे संगठन या दल भी आदिवासी मुद्दों पर लड़ रहे हैं.

राजस्थान विधानसभा चुनाव में अभी भले ही छह महीने का वक्त बाकी हो लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ताबड़तोड़ राज्य के दौरे कर रहे हैं.

पीएम मोदी आज यान बुधवार को उदयपुर संभाग के राजसमन्द जिले के श्रीनाथ नगरी नाथद्वारा की विशाल सभा को संबोधित करेंगे. 

पिछले आठ महीने में पीएम मोदी का यह पांचवा दौरा है और हर बार उनका फोकस आदिवासी बहुल इलाके पर रहा है.

इस बार भी आदिवासी क्षेत्र में मोदी का कार्यक्रम रखकर बीजेपी आगामी विधानसभा और मिशन-2024 जीतने की तैयारी कर रही है.

पीएम मोदी का राजस्थान दौरा ऐसे समय हो रहा है जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो रहे हैं. माना जा रहा है कि इसीलिए पीएम मोदी के दौरे को 12 मई को रिशेड्यूल करके 10 मई, बुधवार को रखा गया है.

इस दौरान पीएम मोदी राज्य में विकास योजनाओं की घोषणा करेंगे और साथ ही एक जनसभा को संबोधित कर सियासी समीकरण भी साधेगें. इस तरह राजस्थान से कर्नाटक समेत देशभर में पीएम मोदी की आवाज पहुंचेगी.

आदिवासी वोट मायने रखता है 

इस समय राजस्थान में बीजेपी आदिवासी सुमदाय पर भी फ़ोकस कर रही है. राजस्थान के आदिवासी बहुल माउंट आबू इलाके में पीएम मोदी का कार्यक्रम रखकर सियासी संदेश देने की तैयारी है.

राजस्थान में मोदी के पिछले दौरों को देखा जाए तो उनके ज्यादातर कार्यक्रम आदिवासी क्षेत्रों में हुए हैं. चाहे वो मानगढ़ धाम हो, दौसा जिला हो और अब तीसरा दौरा आबूरोड है. 

आदिवासी क्षेत्र में रेल और रोड परियोजनाओं के साथ ही आदिवासियों के लिए ग्लोबल चैरिटेबल हॉस्पिटल की बुनियाद रखकर पीएम मोदी बड़ा सियासी संदेश देने की कवायद करेंगे. 

राजस्थान में आदिवासी आबादी

2011 की जनगणना के मुताबिक, राजस्थान में आदिवासी समुदाय की आबादी 13.5 फीसदी है. राज्य के बांसवाडा, डूंगरपुर, प्रतापगढ, उदयपुर, सिरोही, राजसमंद, चित्तौडगढ़ और पाली जिले में आदिवासी बड़ी संख्या में रहते हैं. इस क्षेत्र में रहने वाली जनजातियों में भील, मीणा, गरासिया और डामोर प्रमुख है.

राज्य में 41 लाख लोग भील समाज से हैं जो कुल आदिवासी आबादी का 44 फीसदी है. मीणा के बाद सबसे ज्यादा आदिवासियों में भील समाज की आबादी है.

राजस्थान में किसी भी पार्टी के लिए सरकार बनाने में आदिवासी वोटर अहम भूमिका निभाते हैं. क्योंकि राज्य की 200 में से 25 सीटें अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा वे एक दर्जन अन्य सीटों पर चुनावी नतीजों पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं. 

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी इन 25 आरक्षित सीटों में से सिर्फ 9 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी. जबकि 2013 में बीजेपी ने यहां एससी और एसटी के लिए आरक्षित 59 विधानसभा सीटों में से 50 सीटों पर बड़ी जीत दर्ज की थी.

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां 31 सीटें जीतकर बीजेपी को बड़ी मात दी थी.

आदिवासी इलाकों में अपनी फिसलती पकड़ को मजबूत करने के लिए बीजेपी ने हाल के महीनों में कोई कसर नहीं छोड़ी है. पिछले साल नवंबर में पीएम मोदी ने गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान के आदिवासियों को लुभाने के लिए राजस्थान-गुजरात सीमा के पास बांसवाड़ा जिले में “मनगढ़ धाम” का दौरा किया था.

जो कि भील आदिवासियों के लिए एक सम्मानित स्थान है. पीएम मोदी की रैली इस क्षेत्र में भाजपा की किस्मत को मजबूत करने का प्रयास थी.

राजस्थान में 14 प्रतिशत आदिवासी आबादी है और बीजेपी को उम्मीद है कि पीएम मोदी की यात्रा आदिवासी समाज के साथ बेहतर तालमेल बनाएगी और राज्य के चुनावों में बड़ा चुनावी लाभ सुनिश्चित करेगी.

लेकिन मेवाड़ में अपनी पकड़ फिर से हासिल करना आसान नहीं है क्योंकि आरएसएस समर्थित मेवाड़ के बड़े नेता गुलाब चंद कटारिया को असम के राज्यपाल के रूप में स्थानांतरित किए जाने के बाद भाजपा के पास इस क्षेत्र में कोई बड़ा नेता नहीं बचा है. 

भाजपा ने करीब एक महीने पहले इस क्षेत्र से लोकसभा सांसद सीपी जोशी को अपना नया राज्य प्रमुख चुना है और पीएम की रैली ने उन्हें अपनी लीडरशिप स्किल को दिखाने का मौका दिया है.  

बीजेपी दक्षिण राजस्थान में मजबूत

पीएम मोदी पूर्वी राजस्थान, उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान, दक्षिणी राजस्थान की आदिवासी सीटों को साधने की कवायद करते नजर आए. आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित 25 सीटों में से सिर्फ 8 सीटों पर ही बीजेपी के विधायक हैं.

ये सभी दक्षिणी राजस्थान की सीटें हैं. इसके अलावा पूर्वी और मध्य राजस्थान की किसी भी सीट पर बीजेपी नहीं जीत सकी है. यही वजह है कि बीजेपी और पीएम दोनों का फोकस आदिवासी सीटों पर है. इसी वजह से पीएम का माउंट आबू का दौरा राजस्थान में महत्वपूर्ण माना जा रहा है. 

माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव तक पीएम मोदी राजस्थान में करीब 20 से ज्यादा सभाएं होंगी.

बीजेपी नेताओं के बीच आंतरिक कलह और गुटबाजी 

हालांकि, राजस्थान में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती उसके नेताओं के बीच गंभीर अंतर्कलह है. जब से ये 2018 का चुनाव हार गए हैं तब से आंतरिक कलह और गुटबाजी राज्य इकाई के लिए अभिशाप रही है.

राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से लेकर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और अश्विनी वैष्णव से लेकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला जैसे अहंकार से फूले हुए और मुख्यमंत्री पद की आकांक्षाओं वाले कई नेता हैं. 

भाजपा के भीतर दरार को होने की वजह से वो एक एकजुट विपक्ष बनने में विफल रहा है और पिछले चार वर्षों में राज्य में ज्यादातर उपचुनाव हार गया है. 

गुटीय झगड़ों को दूर करने के लिए बीजेपी की रणनीति है कि वो वोट खींचने के लिए पीएम मोदी के नाम और चेहरे का इस्तेमाल करेगी और किसी को भी अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं करेगी. 

हालांकि, राजस्थान ने पिछले तीन दशकों में हर पांच साल में लगातार सरकारें गिराई हैं. लेकिन सीएम अशोक गहलोत अपनी सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से सत्ता को बनाए रखने के लिए मजबूती से दावा कर रहे हैं. 

कांग्रेस ने भी कमर कसी

वहीं राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने भी अपनी चुनावी तैयारियां तेज कर दी है. इसी के तहत कांग्रेस ने दलित, आदिवासी वोटों को साधने के लिए चुनावी रणनीति बनानी शुरू कर दी है.

मुख्यमंत्री गहलोत इन समुदायों को कांग्रेस से जोड़ने की दिशा में दिन रात लगे हुए हैं. राजस्थान में कभी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं को कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक बना जाता था.

लेकिन धीरे-धीरे भाजपा ने भी उनमें सेंध लगा ली. इस कारण बहुत से दलित, आदिवासी मतदाता कांग्रेस से दूर होते चले गए. उनको फिर से कांग्रेस में लाने के लिए ही सीएम अशोक गहलोत प्रदेश की आरक्षित सीटों पर विशेष फोकस कर रहे हैं.

भारतीय ट्राइबल पार्टी और आदिवासी परिवार

राजस्थान में पिछले यानि 2018 के राजस्थान चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने दो सीटें जीत ली थीं. इस जीत ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही चकित कर दिया था.

क्योंकि राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस परंपरागत प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. लेकिन आदिवासी इलाकों में भारतीय ट्राइबल पार्टी के उभार ने नए समीकरण तैयार किये थे.

भारतीय ट्राइबल पार्टी का जन्म अलग भील प्रदेश की मांग के गुजरात के बड़े आदिवासी नेता छोटु भाई वसावा ने किया था.

लेकिन गुजरात में पार्टी के जो दो विधायक जीते थे वो भी चुनाव हार गए. ऐसी चर्चा है कि राजस्थान के दोनों विधायकों का भी छोटु भाई वसावा और महेश भाई वसावा से मतभेद हैं.

इसलिए जो भारतीय ट्राइबल पार्टी बीजेपी और कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बन कर उभरती नज़र आ रही थी, वह अब बहुत मजबूत नज़र नहीं आ रही है.

लेकिन राजस्थान के बाँसवाड़ा-डूंगरपुर इलाके में आदिवासी परिवार नाम का संगठन लगातार समुदाय के मुद्दे उठा रहा है.

यह संगठन अगर राजस्थान के विधान सभा चुनाव में भी शिरकत करने का फैसला कर ले तो हैरानी नहीं होगी. इस संगठन को मध्य प्रदेश में आदिवासी युवाओं के संगठन जयस की तरह देखा जा सकता है.

जयस ने भी पिछले विधान सभा चुनाव मे मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी.

इस चुनावी घमासान में आदिवासियों की जीविका, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े मसले भी चर्चा में आएंगे, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए.

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