इंटरनेशनल टाइगर डे पर सोमवार को नई दिल्ली स्थित एक अधिकार समूह द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रोजेक्ट टाइगर के कारण कम से कम 5 लाख 50 हज़ार आदिवासी और अन्य वनवासी विस्थापन का सामना कर रहे हैं.
1973 में अपनी स्थापना के बाद से प्रोजेक्ट टाइगर का तेजी से विस्तार हुआ है. साल 2017 तक 50 बाघ अभयारण्यों को अधिसूचित किया गया.
2021 से पहले 50 टाइगर रिर्जव से विस्थापित लोगों की संख्या 2 लाख 54 हज़ार 794 थी, जो प्रति संरक्षित क्षेत्र करीब 5 हज़ार थी.
राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (RRAG) की ‘भारत के बाघ अभयारण्य: आदिवासी बाहर निकलें, पर्यटकों का स्वागत’ टाइटल वाली रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2021 से प्रत्येक टाइगर रिर्जव में विस्थापन में 967 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिसमें 6 नए रिर्जव की योजना बनाई गई है.
इसका मतलब है कि अनुमानित 2 लाख 90 हज़ार लोगों को उनके पैतृक घरों से जबरन हटाया जा रहा है.
रिपोर्ट में परियोजना पर वन अधिकार अधिनियम (FRA) के व्यापक उल्लंघन का आरोप लगाया गया है, जिसमें बिना सहमति के आदिवासी समुदायों का विस्थापन भी शामिल है.
राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 के बाद की अवधि में विस्थापित होने वाले करीब 2 लाख 90 हज़ार लोगों में से 1 लाख 60 हज़ार लोग राजस्थान के कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य से होंगे.
इसके बाद मध्य प्रदेश के दुर्गावती टाइगर रिजर्व के तहत नौरादेही वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी से 72 हज़ार 772 लोग और उत्तर प्रदेश के रानीपुर टाइगर रिजर्व से 45 हज़ार लोग होंगे.
राजस्थान के रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व से 4 हज़ार 400 लोग विस्थापित होंगे, जबकि तमिलनाडु के श्रीविल्लीपुथुर-मेगामलाई टाइगर रिजर्व और राजस्थान के धौलपुर-करौली टाइगर रिजर्व से करीब 4,000-4,000 लोग विस्थापित होंगे.
बिना किसी कारण के विस्थापन
RRAG के सुहास चकमा ने कहा, “किसी क्षेत्र को टाइगर रिजर्व के रूप में अधिसूचित करना विस्थापन का साधन बन गया है. पांच टाइगर रिजर्व – सह्याद्री (महाराष्ट्र), सतकोसिया (ओडिशा), कमलांग (अरुणाचल प्रदेश), कवाल (तेलंगाना) और डम्पा (मिजोरम) में कोई बाघ नहीं पाया गया लेकिन इन पांच टाइगर रिजर्व से कुल 5 हज़ार 670 आदिवासी परिवार विस्थापित हुए.”
उन्होंने कहा कि विस्थापन से प्रभावित समुदाय नष्ट हो जाते हैं. और जब बाघ ही नहीं हैं, जिनके लिए विस्थापन किया गया था तो आदिवासी समुदायों को विस्थापित करने का कोई औचित्य नहीं है.
सुहास चकमा, जो संरक्षित क्षेत्रों और अन्य संरक्षण उपायों से प्रभावित मूल निवासी लोगों के लिए एशिया कैंपेन मैनेजर भी हैं.
उन्होंने कहा कि भारत ने किसी क्षेत्र को टाइगर रिजर्व के रूप में नामित करने से पहले सहमति न मांगकर वन अधिकार अधिनियम और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति को छोटा कर दिया है.
उन्होंने कहा कि टाइगर रिजर्व के रूप में किसी क्षेत्र को नामित करने के बाद ही जबरन पुनर्वास के लिए सहमति मांगी जाती है.
इसके चलते घरों को अक्सर नष्ट कर दिया जाता है और जिसके चलते मूल निवासी लोग अब शिकार नहीं कर सकते, मछली नहीं पकड़ सकते, भोजन नहीं जुटा सकते या अपने धार्मिक, पवित्र और सांस्कृतिक स्थलों, कब्रिस्तानों और औषधीय पौधों तक नहीं पहुंच सकते.
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार और अधिकारी पीड़ितों को स्वैच्छिक पुनर्वास के नाम से जाने जाने वाले कदम को स्वीकार करने के लिए मजबूर करने के लिए सभी प्रकार के विकास कार्यक्रमों को रोक देते हैं.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पीड़ितों को नागरिक और राजनीतिक मानवाधिकार उल्लंघन का भी सामना करना पड़ता है.
जिसमें न्यायेतर हत्याएं, जबरन गायब कर दिया जाना, यातना और दुर्व्यवहार, यौन और लिंग आधारित हिंसा, मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और हिरासत, अक्सर शहद, फूल, जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने, टाइगर रिर्जव में या उसके आसपास शिकार करने या मछली पकड़ने या अक्सर बेदखली का का विरोध करने पर उन्हें हिंसा और धमकी का सामना करना पड़ता है.
RRAG रिपोर्ट में एक आधिकारिक दस्तावेज का हवाला दिया गया है, जिसमें दावा किया गया है कि 1985 से जून 2014 के बीच असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में सैकड़ों कथित शिकारियों को मार दिया गया.
इस अवधि के दौरान मुठभेड़ में एक भी वन कर्मचारी की मौत नहीं हुई, जिससे ऐसी मुठभेड़ों पर संदेह पैदा होता है.
अकेले 2014 से 2016 तक, कम से कम 57 लोग मारे गए. 2014 में 27, 2015 में 23 और 2016 में 7 लोग मारे गए.
व्यावसायीकरण और संघर्ष
रिपोर्ट में टाइगर रिर्जव के व्यावसायीकरण को भी उजागर किया गया है. जिसमें अनियंत्रित पर्यटन, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट और यहां तक कि खनन गतिविधियां संरक्षित क्षेत्रों पर अतिक्रमण कर रही हैं.
हाल ही में पारित वन संरक्षण संशोधन अधिनियम को एक और ख़तरे के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि यह इको-टूरिज्म की आड़ में और अधिक व्यावसायीकरण का मार्ग प्रशस्त करता है.
हालांकि, रिपोर्ट में सकारात्मक पक्ष भी बताया गया है कि कर्नाटक के बिलिगिरी रंगास्वामी मंदिर टाइगर रिजर्व में स्थानीय लोगों के साथ बाघों का सफलतापूर्वक सह-अस्तित्व है.
सोलिगा जनजाति के लोगों को इस संरक्षित क्षेत्र के मुख्य क्षेत्र या महत्वपूर्ण बाघ आवास में बाघों के साथ रहने की अनुमति दी गई है. जहां धारीदार बिल्लियों की संख्या 2010 और 2014 के बीच 35 से लगभग दोगुनी होकर 68 हो गई है. यह उस अवधि के दौरान बाघों की आबादी बढ़ने की राष्ट्रीय दर से कहीं अधिक है.
रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि इस मॉडल को पूरे देश में दोहराया जाना चाहिए.
4 लाख 50 हज़ार से अधिक लोगों के अभी भी पुनर्वास की प्रतीक्षा में होने के कारण वित्तीय और रसद संबंधी चुनौतियां बहुत बड़ी हैं.
रिपोर्ट में विस्थापन को तत्काल रोकने, मौजूदा टाइगर रिर्जव की गहन समीक्षा करने और मूल निवासी समुदायों के अधिकारों को प्राथमिकता देने वाले सह-अस्तित्व मॉडल पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया गया है.