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सूडान में फंसे हक्का पिक्की आदिवासी कौन हैं और वहां गए ही क्यों थे ?

हक्का पिक्की समुदाय के कुछ आदिवासी सूडान में फंस गए हैं. यह बताया गया है कि अब उन्हें खाने के भी लाले पड़ गए हैं. लेकिन ये आदिवासी हैं कौन और वहां कैसे पहुंच गए? यह सवाल मन में आना लाज़मी है.

कर्नाटक के हक्का-पिक्की समुदाय के 39 आदिवासी सूडान में फंस गए हैं. सूडान में फिलहाल गृहयुद्ध चल रहा है. इन आदिवासियों को सुरक्षित भारत लाने के लिए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अतंरराष्ट्रीय बिरादरी से अपील की है. कर्नाटक में इस मुद्दे पर कुछ राजनीतिक दलों ने भी सरकार से इन आदिवासियों को सुरक्षित लाने की अपील की है.

इन आदिवासियों के बारे में मिली जानकारी के अनुसार अब उनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है. उन्हें वहां भूखा सोना पड़ रहा है. भारत सरकार ने इन आदिवासियों से फिलहाल उस जगह को ना छोड़ने की हिदायत दी है. 

जिन आदिवासियों पर कर्नाटक में कुछ राजनीति हो रही है और विदेश मंत्री दुनिया भर से अपील कर रहे हैं वे कौन हैं. इसके अलावा यह सवाल भी मन में आना लाज़मी है कि ये आदिवासी सूडान कैसे और क्यों पहुंचे ?

हक्का पिक्की समुदाय

हक्का पिक्की जनजाति कर्नाटक में मुख्य रूप से मैसूर, चमराजनगर, मांड्या और हासन में रहते हैं. यह समुदाय कर्नाटक में सबसे पिछड़ा और आर्थिक रूप से वंचित समुदायों में से एक माना जाता है. हक्का पिक्की जनजाति की सटीक जनसंख्या नहीं पता है. 

लेकिन भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक राज्य में इस समुदाय की कुल जनसंख्या लगभग 3,064 थी.  इस समुदाय की अपनी एक ख़ास संस्कृति और परंपरा है. ये आदिवासी अब छोटी- मोटी खेती करते हैं. लेकिन यह आदिवासी समुदाय जंगल में भोजन की तलाश में घूमने वाला समुदाय था.

आज भी इस समुदाय के लोग जंगल से शहद, कांदे और अन्य फल और लकड़ी जंगल से जमा करते हैं. 

हक्का पिक्की जनजाति के लोग अपनी संस्कृति और धर्म के साथ-साथ अपने जीवन में उपयोगी जानकारी भी रखते हैं. वे परंपरागत तरीके से अपने स्थानीय संस्कृति और परंपराओं के आधार पर जड़ी-बूटियों और औषधीय पौधों की जानकारी रखते हैं.

हक्का पिक्की जनजाति के लोग बीमारियों के उपचार के लिए वनों से प्राकृतिक रूप से उत्पादित औषधियों का उपयोग करते हैं. उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान का उपयोग करके यह जाना है कि कौन सी जड़ी-बूटी और पौधा किस रोग के इलाज में काम आते हैं. इन जड़ी-बूटियों और पौधों के उपयोग से वे अपने जीवन में कई बीमारियों से निजात पाते हैं.

हक्का पिक्की जनजाति के लोग अपने परंपरागत ज्ञान के आधार पर कुछ जड़ी-बूटियों को औषधीय द्रव्य के रूप में तैयार करते हैं. ये आदिवासी इन दवाओं को इन्हें वैद्यों के लिए उपलब्ध कराते हैं.

दवा बेचने सूडान गए थे

हक्का-पिक्की समुदाय के लोग सूडान क्यों गए थे इस बारे में कोई ठीक ठीक जानकारी नहीं है. लेकिन एक सरकारी अधिकारी के हवाले से बताया जा रहा है कि ये आदिवासी समुदाय जंगल से जमा की गई जड़ी बूटी और औषधियां बेचने सूडान गए थे.

ये दल जो वहां दवाई बेचने गया है उसमें स्त्री और पुरूष दोनों ही शामिल हैं. यह एक अच्छी बात है कि भारत के आदिवासी विदेशों में जंगल से जमा की गई जड़ी बूटी बेचने जाते हैं.

लेकिन अब इन आदिवासियों को सुरक्षित निकाला जा सकेगा यही उम्मीद की जानी चाहिए. इसके साथ ही सरकार को जड़ी बूटी बेचने वाले इन आदिवासियों की जीविका के स्थाई समाधान पर भी विचार करना चाहिए.

इसके साथ ही इन आदिवासियों को फ़ौरी राहत की ज़रूर भी तो होगी. क्योंकि हिंसा में फँसने के बाद उनकी दवाई ना तो बिक पाई होंगी, जो थोड़ा बहुत पैसा उन्हें मिला भी होगा तो वह तो शायद ही उनके पास बचा होगा.

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