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आदिवासी विकास के लिए ग्रामीणों के प्रयास से बना स्कूल ख़तरे में है

आदिवासी बच्चों के लिए ग्रामीणों ने मिल कर एक स्कूल शुरू किया था. यह स्कूल 50 बच्चों के साथ शुरू हुआ था. शुरुआत में कच्चे कमरों से शुरू हुआ यह स्कूल आज आठ पक्के कमरों के भवन से चलता है. लेकिन सरकारी अनुदान रूक जाने से यह स्कूल ख़तरे में आ गया है.

झारखंड के हज़ारीबाग़ ज़िले के बरकट्ठा प्रखंड के शिलाडीह में ग्रामीणों की मदद से आदिवासी बच्चों के लिए खुला आदिवासी विकास उच्च विद्यालय का हाल बेहाल है. वर्तमान समय में विद्यालय कक्षा छठी से दसवीं तक चलाया जा रहा है. 

इस स्कूल की क्लास छह में 102, सातवीं में 113, आठवीं में 117, नौवीं क्लास में 163 और दसवी में 225 छात्र पढ़ते है. कुल मिला कर इस स्कूल में 720 छात्र पढ़ाई करते है. जबकि इस स्कूल में कमरों की संख्या मात्र आठ ही है.

यहां के आस-पास के गांव के लोग कहते हैं कि कमरों की संख्या कम होने से छात्रों को पढ़ाई में परेशानी हो रही है. 

इस स्कूल में विद्यालय में छात्राओं को रहने के लिए छात्रावास की सुविधा है लेकिन छात्रावास में बिस्तर और दूसरी सुविधाएं नहीं रहने के कारण छात्राएं नहीं रह पाई है. 

गांव के लोगों की तरफ से बताया जाता है कि मई 1987 में ग्रामीणों की पहल पर स्कूल की नींव रखी गई. ग्रामीणों ने श्रम दान व अर्थदान कर किसी तरह 3 कमरों वाला भवन बनाया.

 उस वक्त यह इस स्कूल के कमरे कच्चे ही बनाए गए थे. इस कच्चे भवन में बच्चों की कक्षाएं संचालित होती रही. स्कूल भवन निर्माण के लिए आदिवासी समाज के जीवलाल बास्के ने लगभग 6 एकड़ 20 डिसमिल से अधिक जमीन दान दी थी. ग्

रामीण जीवलाल बास्के ने बताया कि 80 के दशक में इस क्षेत्र में आस पास एक भी उच्च विद्यालय नहीं थे. गांव की बच्चियां पांचवीं या आठवीं की पढ़ाई कर आगे की पढ़ाई छोड़ देती थी. ग्रामीणों ने बैठक कर 1987 में आदिवासी विकास उच्च विद्यालय की स्थापना की थी. 

1989 में तत्कालीन सरकार ने इस विध्यालय को सरकारी मान्यता दी थी. कुल 50 छात्रों के साथ शुरू हुए इस स्कूल में अब बच्चों की अच्छी तादाद है. 

स्कूल के प्राचार्य मुजीब अंसारी ने बताया कि 2021-22 में  झारखंड सरकार की तरफ से 9 लाख 60 हजार रुपये अनुदान की राशि मिली थी. 2022-23 में अभी तक अनुदान राशि नहीं मिल पाई है. 

हजारीबाग जिला शिक्षा पदाधिकारी उपेंद्र नारायण ने बताया कि उनको यह जानकारी नहीं थी कि स्कूल को इस साल अनुदान नहीं मिला है. उनके अनुसार इस स्कूल का संचालन एक कमेटी द्वारा किया जाता है. इस कमेटी को सरकार की अनुदान राशि दी जाती है. 

आदिवासी इलाकों में कोरोना के दौरान बड़ी संख्या में बच्चों का स्कूल छूट गया था. इस पृष्ठभूमि में अगर झारखंड के आदिवासी बहुल इस इलाके में एक स्कूल है जिसमें बड़ी संख्या में अभी भी आदिवासी छात्र पढ़ते हैं, तो यह एक अच्छी ख़बर है.

इस तरह के स्कूल में लड़कियों के हॉस्टल में बेड और कक्षाओं के लिए कमरों की कमी एक गंभीर विषय है. इस स्कूल को गांव वालों ने मिल कर अपने पैसे और श्रमदान से शुरू किया था, सरकार ने इस स्कूल को अनुदान देने की अच्छी शुरूआत की थी.

लेकिन अगर इस स्कूल को अनुदान समय पर नहीं मिलेगा तो समाज को बेहतर बनाने के ग्रामीणों के प्रयास पर पानी फिर सकता है. 

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