राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति (NCST), राष्ट्रीय अनुसूचित जाति (NCSC) और अन्य पिछड़ी जातियों (NCOBC) से जुड़ी एक दर्जन से ज्यादा रिपोर्ट सार्वजनिक किये जाने में देरी की जा रही है. इनमें से कई रिपोर्ट पिछले 7 साल से लटकी हुई हैं.
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग ने पिछले 2 साल से रिपोर्ट दाखिल नहीं की है. इसके अलावा राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट पिछले 3 साल से दाखिल नहीं की गई है.
देश की इन तीनों महत्वपूर्ण संस्थाओं की यह ज़िम्मेदारी है कि वो अपने कामकाज और हस्तक्षेप पर राष्ट्रपति को हर साल एक रिपोर्ट पेश करें.
इन तीनों ही संस्थाओं की ज़िम्मेदारी में यह काम शामिल है कि वह आदिवासी, दलित और पिछड़ों के अधिकारों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करे. इस सिलसिले में ये संस्थाएं राज्य सरकारों या केंद्र सरकार को कोई कदम उठाने का निर्देश दे सकती हैं.
ये संस्थाएं अतीत में आरक्षण, क्रीमी लेयर, समुदायों के वर्गीकरण जैसे मुद्दों पर ज़रूरी निर्देश और सलाह देती रही हैं.
जो 7 रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई हैं उनके अलावा अनुसूचित जाति आयोग की साल 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट को फ़रवरी 2024 में राष्ट्रपति को पेश किया गया था. लेकिन यह रिपोर्ट अभी तक संसद में पेश नहीं की गई है.
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के मामले में तो जानकारी और भी हैरान करने वाली है. देश में आदिवासी अधिकारों की रक्षा करने के लिए बनाए गए राष्ट्रीय जनजाति आयोग कि 5 रिपोर्ट जो राष्ट्रपति को सौंप दी गई हैं, आज तक संसद में पेश नहीं की गई हैं.
इस सिलसिले में पता चला है कि साल 2018-19 से साल 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट नियम के अनुसार राष्ट्रपति को सौंपने के बाद संसद में पेश नहीं की गई हैं.
देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार पर यह आरोप है कि वह संवैधानिक संस्थाओं को निष्क्रिय बना चुकी है.
आदिवासी, दलितों और पिछड़ों के अधिकारों की रक्षा से जुड़ी ज़रूरी संस्थाों के कार्य कलाप से यह आरोप और मजबूत ही होता है.