HomeLaw & Rightsझारखंड: राज्य में पेसा कानून लागू करने के लिए आदिवासियों ने राजभवन...

झारखंड: राज्य में पेसा कानून लागू करने के लिए आदिवासियों ने राजभवन तक निकाला मार्च

राज्य में विपक्षी भाजपा समेत तमाम राजनीतिक दल और आदिवासी समूह पेसा कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं और सरकार पर इसे लागू न करने के लिए निशाना साध रहे हैं और सरकार की आलोचना कर रहे हैं.

गुरुवार को झारखंड के कई जिलों से सैकड़ों आदिवासी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार से मिले और उन्हें एक ज्ञापन दिया. इस ज्ञापन में उन्होंने राज्य के आदिवासी इलाकों में पंचायत अनुसूचित क्षेत्र विस्तार (PESA) एक्ट लागू करने की मांग की.

अपने ज्ञापन में प्रतिनिधिमंडल ने अक्टूबर 2023 में तैयार अधिनियम के प्रारूप नियमों को अधिसूचित करने और ग्राम सभाओं को संवैधानिक शक्तियां प्रदान करने की अपनी मांगों को दोहराया.

इससे ग्राम सभाएं अनुसूचित क्षेत्रों की संस्कृति, पहचान और संसाधनों की सुरक्षा के लिए खनन, भूमि अधिग्रहण और विकास परियोजनाओं से जुड़े अहम फैसले ले सकेंगी.

प्रतिनिधिमंडल ने ज्ञापन में कहा कि  पैसा कानून, 1996 में अनुसूचित क्षेत्रों की स्वशासन, संस्कृति, पहचान और संसाधनों की रक्षा हेतु पारित किया गया था लेकिन झारखंड में आज तक इसे प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया है.

आदिवासी नेता आरती कुजूर ने मार्च में हिस्सा लेते हुए पेसा कानून को लागू नहीं करने के लिए सरकार पर निशाना साधा.

उन्होंने कहा, “पिछली सरकार ने नियमों का मसौदा बनाया था पर मौजूदा सरकार ने उसे लागू नहीं किया. इससे आदिवासी समुदाय के संवैधानिक अधिकार कमज़ोर हुए हैं. हमारी मांग है कि राज्य सरकार सरना धर्म संहिता को राज्य स्तर पर मान्यता दे और ग्राम सभाओं को मज़बूत करे ताकि आदिवासी समुदायों में पारंपरिक और लोकतांत्रिक ढांचे को मज़बूत किया जा सके. ज्ञापन में दी गई बाकी मांगें भी पूरी होनी चाहिए.”

राज्य में विपक्षी भाजपा समेत तमाम राजनीतिक दल और आदिवासी समूह पेसा कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं और सरकार पर इसे लागू न करने के लिए निशाना साध रहे हैं और सरकार की आलोचना कर रहे हैं.

वहीं पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने हाल ही में सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि पेसा कानून लागू नहीं होने के कारण राज्य का आदिवासी समाज केंद्र सरकार के फंड से वंचित हो गया है.  

हाई कोर्ट ने झारखंड सरकार से मांगा जवाब

झारखंड हाई कोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्य में पेसा अधिनियम, 1996 के नियमों का क्रियान्वयन नहीं होने के कारणों की जानकारी दे.

चीफ जस्टिस एम एस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की पीठ एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी. क्योंकि राज्य सरकार ने इस संबंध में अदालत के आदेश के बावजूद नियमों को लागू नहीं किया था.

हाई कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में सरकार को नियमों के क्रियान्वयन के लिए दो महीने का समय दिया था. हालांकि, संबंधित विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई जिसके बाद अवमानना याचिका दायर की गई.

मामले पर अब पांच अगस्त को सुनवाई होगी. 1996 में अधिनियम लागू होने के बावजूद राज्य सरकार नियमों का मसौदा तैयार नहीं कर पाई है.

क्या है पेसा अधिनियम

24 दिसंबर 1996 को भारत की संसद से 29 साल पहले संविधान की पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में ‘स्व-शासन’ की स्थापना के लिए पेसा (अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज का विस्तार) क़ानून पारित किया गया था.

इस क़ानून को लाने का उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों या आदिवासी क्षेत्रों में रह रहे लोगों के लिए ग्राम सभा के द्वारा स्वशासन को बढ़ावा देना है. यह क़ानून आदिवासी समुदाय को स्वशासन की खुद की प्रणाली पर आधारित शासन का अधिकार प्रदान करता है.

इन 29 सालों में देश में ऐसे कुल 10 राज्य हैं जो पूर्ण या आंशिक रूप से पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं. लेकिन महज़ छह राज्यों ने ही अब तक इस कानून के क्रियान्वयन के लिए नियम बनाने की पहल की है.

पेसा यह भी सुनिश्चित करता है कि ग्राम सभाओं को सभी क्षेत्रों के समग्र विकास में योगदान देना चाहिए. स्व-शासन की प्रणाली प्राकृतिक संसाधनों जैसे वन संसाधनों, नाममात्र जल निकायों, खनिजों, स्थानीय बाजारों के प्रबंधन आदि के लिए प्रथागत आदिवासियों के अधिकारों को अधिकार देती है.

इसके अलावा, इसके नियम अनुसूचित क्षेत्रों के नागरिकों को विकेंद्रीकरण और सरकार से ग्राम सभा को सत्ता हस्तांतरण के माध्यम से अपने गांव-स्तर के अधिकारियों को मजबूत करने में सक्षम बनाते हैं, जो गांव में सभी पंजीकृत मतदाताओं से बना एक संगठन है.

समुदायों को लगता है कि उनके समूह का सिर्फ वही हिस्सा उनकी जरूरतों को पर्याप्त रूप से समझ सकता है और घरेलू संघर्षों को रोक सकता है.

ग्राम सभा की भूमिका सांस्कृतिक पहचान और परंपरा को संरक्षित करना है; आदिवासियों को प्रभावित करने वाली योजनाओं की निगरानी करना और गाँव की सीमाओं के भीतर प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी करना है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Recent Comments