HomeIdentity & Lifeआदिवासी की पहचान का पैमाना बदला जाएगा

आदिवासी की पहचान का पैमाना बदला जाएगा

यह बात सही है कि अनुसूचित जनजाति की सूचि में किस समुदाय को शामिल किया जाए यह तय करने के लिए कोई ठोस पैमाना अभी तक नहीं बन पाया है. लेकिन इस सिलसिले में जो नया प्रस्ताव है वह समाधान की बजाए समस्या भी बन सकता है.

देश के कई जाने माने मानव विज्ञान शास्त्री (Anthropologists) ने ‘आदिवासी’ (Tribe) की परिभाषा के आधार और तरीके को बदलने का प्रस्ताव दिया है.

इस प्रस्ताव के अनुसार किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति माने जाने के लिए आदिवासियत की पहचान के कई आधार (spectrum of tribalness) हो सकते हैं. 

यह प्रस्ताव कहता है कि किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का आधार कुछ सीमित सवाल नहीं हो सकते हैं. 

यह प्रस्ताव हाल ही में संपन्न हुई एंथ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (Anthropological Survey of India) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) की एक बैठक में तैयार किया गया है. 

इस बैठक में चर्चा का विषय ‘जाति आधारित और मुख्यधारा समुदायों में आदिवासी पहचान का पैमाना’ (Developing a scale to distinguish tribal populations from caste based and mainstream communites) था. 

सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का लाभ हासिल करने कि लिए देश की कई जातियों के लोग खुद को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. 

केंद्र सरकार यह कहती रही है कि फ़िलहाल किसी समुदाय को अनूसचित जनजाति की सूचि में शामिल करने के लिए लोकुर कमेटी की सिफ़ारिशों को ही पैमाना माना जाता है. 

लोकुर कमेटी का पैमाना क्या है

1965 में लोकुर कमेटी ने किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने के लिए कुछ पैमाने सुझाए गए थे. इन पैमानों के आधार पर ही सरकार किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करती रही है.

लोकुर कमेटी ने मोटेतौर पर अनुसूचित जनजाति की पहचान के पांच आधार सुझाए थे  – 

  1. आदिम लक्षण (Primitive Traits) 
  2. ख़ास संस्कृति (Distinctive Culture)
  3. भौगोलिक दूरी (Geographical Isolation)
  4. संपर्क में झिझक (Shyness of Contact)
  5. आर्थिक-सामाजिक पिछड़ापन (Backwardness)

पिछले 10 सालों में सरकार के भीतर और बाहर के कई लोग यह कह चुके हैं कि किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने के लिए ये आधार या पैमाना पुराना और प्रासंगिक हो चुका है. 

इस पैमाने के बारे में यह कहा गया है कि यह ना सिर्फ अब प्रासगिंक नहीं रहा है बल्कि यह अपमानजनक आधार है.

विचार पत्र (Concept Note)

देश में किसी समुदाय को आदिवासी मान कर अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने के फ़ैसले में वर्तमान की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा तंत्र बनाने का प्रस्ताव किया गया है जिससे जनजातीय समुदायों का वर्गिकरण सटीक हो सके. 

इस सिलसिले में एक विचार पत्र (concept note) तैयार किया गया है. इसमें दावा किया गया है कि यह पहल सवैंधानिक प्रावधानों के अनुरूप है. इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि इस पहले से अलग अलग राज्यों के जनजातीय शोध संस्थान (Tribal Research Institutes) को नीतिगत मसलों में एथनोग्राफिक रिपोर्ट्स तैयार करने में आसानी होगी. 

देश में किसी समुदाय को कैसे अनुसूचित जनजाति माना जाए इसके बारे में यह विचार पत्र कहता है कि फ़िलहाल जो आधार बनाए गए हैं उन्हें पूरी तरह से बदलना होगा. इस बारे में आगे कहा गया है कि किसी समुदाय को जनजाति घोषित करे का पैमान पहचान के सिर्फ पांच आधार नहीं हो सकते हैं. 

बल्कि पहचान के इस दायरे को काफ़ी व्यापक बनाने की ज़रूरत है. मसलन आदिवासी पहचान के पांच नहीं बल्कि 150 आधार हो सकते हैं. 

अब, लोकुर समिति द्वारा निर्धारित लक्षणों को देखने के बजाय यह सोचा जा रहा है कि जो सामाजिक परंपराएं हैं उन पर फोकस होना चाहिए. मसलन विवाह पद्धिति, वंश परंपरा, रीति रिवाज और भाषा को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए.  

प्रस्ताव पर गहन और व्यापक चर्चा की ज़रूरत

भारत में किस समुदाय को आदिवासी मान कर अनुसूचित जनजाति की सूचि में रखा जाए इसके लिए कोई तय मानक नहीं हैं. अभी तक लोकुर कमेटी की सिफ़ारिशों को ही आधार माना जाता रहा है. 

लेकिन इन सिफ़ारिशों के आधार पर कोई ठोस पैमाना तैयार नहीं हो पाया है और मोटेतौर पर यह फ़ैसला सरकार की राजनीतिक ज़रूरत और इच्छाशक्ति के अनुसार होता रहा है कि अनुसूचित जनजाति की सूचि में किसे शामिल किया जाए.

भारत की अनुसूचित जनजाति की सूचि में फ़िलहला 756 समुदायों के नाम शामिल हैं. आख़री जनजगणना यानि 2011 के बाद इस सूची में 27 समुदायों के नाम जोड़े गए हैं. इनमें से 5 नए समुदाय हैं जबकि बाकी सूचि में मौजूद पहले के नामों के उपसमूह हैं. 

भारत में आज सैंकड़ों समुदाय और जातीय समूह खुद को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किए जाने की मांग कर रहे है. इसके अलावा राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ यानि RSS के संगठन धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन गए समूहों को अनुसूचित जनजाति की सूचि से बाहर करने की मांग कर रहे हैं.

इस लिहाज़ से यह मुद्दा सामाजिक और राजनीतिक दोनों ही नज़र से सवेंदनशील है. 

अनुसूचित जनजाति की पैमाने में बदलाव से डीलिस्टिंग जैसे मुद्दों को बल मिलने की आशंका बढ़ सकती है. 

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