नवगठित जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC) ने अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों को गैर-आदिवासियों को अपनी जमीन बेचने और गिरवी रखने की अनुमति देने के लिए ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण संशोधन विनियमन में संशोधन करने के पिछली बीजद सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
मंगलवार को मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी की अध्यक्षता में टीएसी की पहली बैठक में विवाह, उच्च शिक्षा और व्यावसायिक पहल जैसे जरूरी उद्देश्यों के लिए आदिवासी लोगों के लिए लोन की सुविधा के लिए वैकल्पिक तरीका तलाशने का संकल्प लिया गया. सीएमओ द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में इसकी जानकारी दी गई.
पिछली बीजद सरकार द्वारा ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण (अनुसूचित जनजातियों द्वारा) संशोधन के विनियमन में संशोधन करने के कदम का राज्य भर के लोगों ने कड़ा विरोध किया था.
जिसके बाद सरकार ने 29 जनवरी, 2024 को इसे वापस ले लिया था. हालांकि, नवीन पटनायक सरकार ने इसे खारिज नहीं किया था.
प्रस्ताव को सबसे पहले 11 जुलाई, 2023 को टीएसी की बैठक में पेश किया गया था और बाद में 14 नवंबर, 2023 को राज्य मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था, जब बीजद सत्ता में थी.
आधिकारिक बयान में कहा गया है कि टीएसी ने संविधान की आठवीं अनुसूची में मुंडारी भाषा को शामिल करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी है.
बुधवार की बैठक में ओडिशा पेसा (पंचायतों का अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) नियमों के मसौदे पर भी चर्चा हुई.
सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में 1996 के पेसा अधिनियम को लागू करने का वादा किया था. ऐसे में यह निर्णय लिया गया कि नियमों को अंतिम रूप देने से पहले और चर्चा की आवश्यकता है.
सीएमओ के बयान के मुताबिक, प्रस्तावित नियमों पर प्रतिक्रिया इकट्ठा करने के लिए ब्लॉक, जिलों और शहरी स्थानीय निकायों के आदिवासी प्रतिनिधियों के साथ-साथ विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों को शामिल करते हुए एक राज्य स्तरीय कार्यशाला आयोजित की जाएगी.
राज्य की भाजपा सरकार ने नवंबर में टीएसी का पुनर्गठन किया था, जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री और उपाध्यक्ष एसटी एंड एससी विकास मंत्री हैं. इसमें 15 विधायक, दो सांसद और एक प्रमुख आदिवासी महिला कार्यकर्ता सहित 18 सदस्य हैं.
क्या है पूरा मामला
दरअसल, 14 नवंबर, 2023 को तत्कालीन ओडिशा मंत्रिमंडल ने अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण विनियमन, 1956 कानून में संशोधन पारित किया था जिसके बाद अनुसूचित क्षेत्रों में रह रहे अनुसूचित जनजाति (ST) के लोग राज्य सरकार की अनुमति से गैर-आदिवासी समुदाय को अपनी जमीन बेच सकते थे.
हालांकि इस प्रावधान के तहत अनुसूचित जनजाति समुदाय का कोई व्यक्ति अपनी पूरी जमीन नहीं बेच सकता था क्योंकि उस स्थिति में व्यक्ति भूमिहीन या बेघर हो सकता है.
आजादी के बाद किसानों और आदिवासियों को जमीन का हक देने के लिए 1950 में जमींदारी उन्मूलन कानून बनाया गया. इस कानून में किसी व्यक्ति और परिवार के पास कितनी जमीन रह सकती है, इसको भी निर्धारित किया गया.
वहीं आदिवासी और अनुसूचित जाति के हितों की रक्षा के लिए ये नियम बनाया गया कि उनकी जमीन को गैर आदिवासी और गैर अनुसूचित जाति का व्यक्ति नहीं खरीद सकता है.
ओडिशा देश के पिछड़े राज्यों में गिना जाता है. यहां की अधिकांश आबादी गरीब है. राज्य में करीब 40 प्रतिशत आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोग रहते है.
अगर अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण संशोधन विनियमन, 1956 कानून में संशोधन हो जाता तो उसके बाद आदिवासियों की जमीन से बेदखली बढ़ने की संभावना बढ़ जाती. क्योंकि देश में जहां-जहां आदिवासियों का निवास है, वहां की जमीन में खनिज संपदाओं का भंडार है. लंबे समय से कॉर्पोरेट की नजर खनिज भंडारों पर लगी है, वे खनिज के साथ ही कोयला और जंगल की लकड़ियों पर भी नजर रखे हुए हैं.
कॉर्पोरेट के दबाव में ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ की सराकरें समय-समय पर आदिवासियों के जमीन और जंगल संबंधित कानून में संशोधन करने की कोशिश करते रहे हैं. लेकिन भारी जनदबाव के कारण उन्हें ऐसे संशोधनों को वापस भी लेना पड़ता रहा है.
क्या है ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण विनियमन
तत्कालीन ओडिशा सरकार ने 4 सितंबर, 2002 से आदिवासियों की भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर रोक लगाने के लिए ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण (OSATIP) विनियमन, 1956 को 2000 में संशोधित किया था.
अधिनियम का प्रावधान कहता है कि 4 अक्टूबर 1956 और 4 सितंबर 2002 के बीच आदिवासी व्यक्ति से अर्जित कृषि भूमि के कब्जे में एक गैर-आदिवासी को परिस्थितियों और भूमि के कब्जे के तरीके को बताते हुए सक्षम प्राधिकारी को एक घोषणा प्रस्तुत करनी होगी.
घोषणा को 4 सितंबर, 2002 से दो साल के भीतर प्रस्तुत किया जाना था. अगर घोषणा असंतोषजनक पाई जाती है या मालिक घोषणा प्रस्तुत करने में विफल रहता है तो कृषि भूमि मूल आदिवासी मालिक को वापस कर दी जानी चाहिए.