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संघर्ष, साहस और नई शुरुआत की मिसाल एक आदिवासी युवती, श्रीलता की कहानी

त्रासदी, दुर्व्यवहार और अकल्पनीय पीड़ा से भरे आठ साल के कष्टदायक सफर में, तेलंगाना की एक आदिवासी लड़की श्रीलता एक प्रकाश स्तंभ के रूप में कैसे उभरी

तेलंगाना की एक आदिवासी लड़की श्रीलता ने अपने जीवन में संघर्ष और चुनौतियां से लड़ते हुए जो जीत हासिल की है, वह प्रेरणादायक है. बाल विवाह, मानव तस्करी और जीवन के कड़वे अनुभवों से जूझने के बाद श्रीलता ने न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि दूसरों के लिए एक मिसाल भी बन गईं.

श्रीलता का बचपन महबूबाबाद ज़िले के शांत जंगलों में बीता. 2016 में उनके जीवन ने अचानक एक दर्दनाक मोड़ लिया.

जंगलों के रक्षक, उनके पिता को लकड़ी के तस्करों ने बेरहमी से मार डाला. इस सदमे को उनकी मां सहन नहीं कर पाईं और उसी दिन उन्होंने अपनी जान दे दी.

माता-पिता की मौत के बाद, श्रीलता को उनकी मौसी ने गोद लिया. लेकिन यह गोद लेना उनकी भलाई के लिए नहीं, बल्कि उनके माता-पिता की संपत्ति हड़पने के लिए था. मौसी ने उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया और उनकी पढ़ाई छुड़वाकर उनकी शादी कराने की साजिश रचने लगी.

पढ़ाई का जुनून

श्रीलता के पिता चाहते थे कि वह अपने समुदाय की पहली डॉक्टर बनें. पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए श्रालता ने हर मुश्किल का सामना करते हुए पढ़ाई जारी रखी. 2017 में 58% अंक प्राप्त कर 10वीं की परीक्षा पास की और ऐसा करने वाली वे अपने आदिवासी समुदाय की पहली लड़की बन गईं.

उनकी यह उपलब्धि उनकी मौसी के लिए परेशानी बन गई. मौसी ने तुरंत उनकी शादी कराने का दबाव बढ़ा दिया. लेकिन श्रीलता ने हार मानने के बजाय खुद की जिंदगी बदलने का फैसला किया.

घर छोड़ने का साहसिक कदम

श्रीलता ने एक दोस्त से 100 रुपये उधार लिया और बिना किसी योजना के एक अनजान ट्रेन पकड़ ली. वे बताती हैं कि ऐसा करना उनके लिए डरावना था क्योंकि वे कभी अपने गांव से बाहर नहीं निकली थी.

ट्रेन ने उन्हें विजयवाड़ा पहुंचाया जहां उनकी मुलाकात एक ऑटो ड्राइवर से हुई जिसने मदद का भरोसा दिया. लेकिन यह भरोसा उनके लिए एक नई मुसीबत बन गया. वह मानव तस्करों के जाल में फंस गईं और उन्हें एक कुख्यात महिला तस्कर के पास बेच दिया गया.

मानव तस्करी का भयावह अनुभव

श्रीलता को अगले एक साल में छह बार बेचा गया. उन्होंने विजयवाड़ा से लेकर चैन्नई के कई कोठों में भयावह यातनाएं झेली. हर दिन उनके लिए दर्द और डर से भरा हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने पिता के सपने को अपनी ताकत बनाया.

श्रीलता कहती हैं, “कई बार मैंने अपनी जान लेने का सोचा, लेकिन अपने पिता की इच्छा ने मुझे संभाला”

कैसे बदली तकदीर

श्रीलता ने अपनी जान पर खेलते हुए कोठे की खिड़की तोड़ी और वहां से भाग निकलीं. उन्होंने पुलिस से संपर्क किया और मानव तस्करी के उस पूरे गिरोह का भंडाफोड़ किया.

उनकी बहादुरी से दर्जनों लड़कियां बचाई गईं और ‘शोभा आंटी’ नाम की कुख्यात तस्कर जेल भेजी गई. श्रीलता गर्व के साथ कहती हैं, “शोभा को सलाखों के पीछे पहुंचाना एक ऐसी उपलब्धि है जिसे मैं हमेशा संजो कर रखूंगी.”

नई शुरुआत

पुलिस ने श्रीलता को बचाने के बाद उन्हें ‘वसव्य महिला मंडली’ (VMM) नाम के NGO में पुनर्वास के लिए भेजा. यहां उनकी मुलाकात डॉ. बोलिनेनी कीर्ति से हुईं, जिन्होंने श्रीलता को एक नया जीवन दिया.

डॉ. कीर्ति महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के लिए चार दशकों से काम कर रही हैं.

डॉ. कीर्ति ने श्रीलता को अपनी बेटी की तरह अपनाया. उनकी देखरेख में श्रीलता ने अपने सपनों को फिर से जिया और एक सफल फैशन डिज़ाइनर बन गईं.

आज 23 साल की उम्र में श्रीलता न केवल अपने पैरों पर खड़ी है, बल्कि दूसरों की मदद भी कर रही हैं. वह VMM के साथ मिलकर पीड़ित महिलाओं और बच्चों को उनका हक दिलाने के लिए काम करती हैं.

श्रीलता का मानना है कि अगर एक बच्चा सशक्त होता है, तो पूरी मानवता सशक्त होती है. उनका यह सफर उन लाखों लड़कियों के लिए एक उम्मीद की किरण है, जो आज भी अपने जीवन में ऐसे ही संघर्षों से गुजर रही हैं.

श्रीलता की यात्रा बाल विवाह और मानव तस्करी से निपटने में आधिकारिक कार्रवाई और जागरूकता  के महत्व को भी दिखाती है.

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