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एकलव्य स्कूलों (EMRS) की नियुक्ति में हिन्दी की अनिवार्यता आदिवासी छात्रों से अन्याय

EMRS स्कूलों में नियुक्ति के लिए हिंदी या अंग्रेज़ी को आदिवासी भाषाओं की जगह अनिवार्य बनाने के कई तरह के नुकसान हो सकते हैं. आदिवासी संगठनों और नेताओं ने केंद्र सरकार के इस फैसले के विरोध में सरकार को पत्र लिखे हैं.

हाल ही में देश भर में आदिवासी आवासीय विद्यालयों (Tribal residential schools) में भर्ती के लिए हिंदी का ज्ञान अनिवार्य कर दिया गया है. जिसके बाद से तबादलों के लिए अनुरोधों की बाढ़ आ गई है.

हिंदी भाषी राज्यों से भर्ती किए गए बड़ी संख्या में कर्मचारी दक्षिणी राज्यों में स्थित एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) में नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं. जहां की भाषा, भोजन और संस्कृति उनके लिए अपरिचित है.

हालांकि केंद्रीय अधिकारी बताते हैं कि देश में कहीं भी नियुक्ति की इच्छा नौकरी के लिए आवेदन करने वालों के लिए आवश्यकता का हिस्सा थी.

लेकिन बड़ी चिंता यह हो सकती है कि आदिवासी छात्रों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, जिन्हें स्थानीय भाषा और संस्कृति से अपरिचित शिक्षकों द्वारा पढ़ाया जा रहा है.

कर्मचारियों की कमी

पिछले साल तक जनजातीय मामलों के मंत्रालय के प्रमुख एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूलों के लिए कर्मचारियों की भर्ती राज्य अधिकारियों द्वारा की जाती थी.

हालांकि, 2023 के बजट सत्र में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि यह जिम्मेदारी राष्ट्रीय आदिवासी छात्र शिक्षा सोसाइटी (NESTS) को सौंपी जा रही है. जिसे अब देश भर में 400 से अधिक एकलव्य विद्यालयों में 38 हज़ार पदों पर नियुक्ति का काम सौंपा गया है.

इस भर्ती प्रक्रिया के अनुसार एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूलों में नियुक्ति के लिए एक केन्द्रीय स्तर की परीक्षा होगी जिसमें आदिवासी भाषाओं को कोई महत्व नहीं दिया गया है.

इतना ही नहीं इस परीक्षा में आदिवासी भाषाओं को तो महत्व नहीं ही दिया गया है बल्कि अलग अलग राज्यों में बोले जाने वाली भाषाओं का भी प्रावधान नहीं है.

लेकिन अधिकारियों ने कहा कि भर्ती के केंद्रीकरण का उद्देश्य ईएमआरएस प्रणाली में शिक्षकों की भारी कमी को दूर करना और विभिन्न राज्यों में भर्ती नियमों को एक समान करना है. जहां पहले अलग-अलग मानदंड अपनाए जाते थे और अपने राज्य के विधानों के अनुसार आरक्षण कोटा लागू किया जाता था.

इस केंद्रीकृत भर्ती प्रक्रिया के लिए 2023 ईएमआरएस कर्मचारी चयन परीक्षा, राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी को सौंपी गई थी, जो अब कई घोटालों से घिरी हुई है.

यह परीक्षा एकलव्य विद्यालयों में 4 हज़ार रिक्त शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों के पहले दौर के लिए थी. जून में NESTS ने कहा कि 303 प्रिंसिपल और 707 जूनियर सचिवालय सहायकों के साथ-साथ हजारों अन्य शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों का चयन किया गया था.

हालांकि, हिंदी दक्षता की नई आवश्यकता को देखते हुए बड़ी संख्या में चयनित उम्मीदवार हिंदी भाषी राज्यों से हैं, जिनमें से कई अब अपनी पोस्टिंग से ट्रांसफर चाहते हैं.

अभी नहीं होगा ट्रांसफर

20 जून से जब दिल्ली में NESTS कार्यालय ने उम्मीदवारों की शिकायतों को व्यक्तिगत रूप से संबोधित करने के लिए एक घंटे की विंडो खोली, तब से पीड़ित उम्मीदवार हर दिन आ रहे हैं.

एक सूत्र ने कहा कि कुछ दिन दो-चार उम्मीदवार आते हैं, लेकिन बाकी दिनों में 20 से ज्यादा अपनी समस्याओं के साथ आते हैं.

ऐसे में NESTS को अपनी वेबसाइट पर एक नोटिफिकेशन पोस्ट करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

जिसमें कहा गया, “सभी पोस्ट किए गए उम्मीदवारों से अनुरोध है कि वे पोस्टिंग के स्थान को बदलने के लिए NESTS कार्यालय से संपर्क न करें. फिलहाल पोस्टिंग के स्थान को बदलने के लिए किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं किया जा रहा है. इसके अलावा जब भी तबादले होंगे, वे NESTS वेबसाइट पर ट्रांसफर पोर्टल के माध्यम से होंगे, जिसे ट्रांसफर पॉलिसी प्रकाशित होने के बाद लाइव कर दिया जाएगा.”

सरकारी सूत्रों ने बताया कि NESTS जल्द ही एक ट्रांसफर पॉलिसी शुरू करेगा, जो जवाहर नवोदय विद्यालयों और केंद्रीय विद्यालयों के लिए इसी तरह की नीति पर आधारित होने की संभावना है.

उन्होंने कहा कि बेसिक हिंदी भाषा दक्षता की आवश्यकता के बारे में “कुछ भी असामान्य नहीं” था क्योंकि यह JNV और KV भर्ती के लिए भी अनिवार्य है.

हालांकि, केंद्रीय विद्यालयों में जहां देश भर से छात्र आते हैं क्योंकि वे अक्सर केंद्र सरकार के कर्मचारियों के परिवार के सदस्य होते हैं. वहीं एकलव्य स्कूलों में ज्यादातर आदिवासी छात्र होते हैं, जिन्हें ऐसे शिक्षकों से लाभ होगा जो उनके स्थानीय सांस्कृतिक संदर्भों को समझते हैं.

मुद्दा यह है कि ईएमआरएस के लिए शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों को उनके स्थानीय समुदायों के भीतर से काम पर रखा जाना आगे बढ़ने का स्पष्ट तरीका है. जिससे इन समुदायों के बच्चों को सीखने के अनुकूल बनाया जा सकता है और स्वाभाविक रूप से ऐसे शिक्षकों की मदद मिलेगी जो उस संदर्भ को समझते हैं.

कुछ ईएमआरएस बहुत दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित हैं, जिनके बहुत विशेष सांस्कृतिक संदर्भ हैं. ऐसा कुछ सिर्फ उनके सीखने को प्रभावित करेगा. तेलुगु या मराठी जानने वाले एक बच्चे से उन शिक्षकों के साथ तालमेल बिठाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है जो इसके बारे में नहीं जानते हैं. अगर गैर-हिंदी भाषी शिक्षक हिंदी भाषी क्षेत्रों में चले जाते हैं, तो इसका भी ऐसा ही प्रभाव पड़ेगा.

हालांकि, सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भर्ती किए जाने वाले कर्मचारियों को दो साल के भीतर स्थानीय भाषा सीखने के लिए कहा गया है और इस प्रक्रिया में उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए कुछ हद तक मदद की जाएगी.

बृंदा करात और कमलेश्नेवर डोडियार ने आदिवासी मामलों के मंत्री को लिखा पत्र

हाल ही में स्थानीय भाषा और संस्कृति से अपरिचित शिक्षकों द्वारा आदिवासी छात्र-छात्राओं को पढ़ाए जाने के सिलसिले में सीपीआई(एम) की नेता बृंदा करात ने भी आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम को एक पत्र लिखा है.

बृंदा करात ने इस पत्र में एकलव्य मॉडल रेसिडेंसियल स्कूलों में कर्मचारियों, शिक्षकों और प्रिंसिपल के पद पर होने वाली भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाया है.

उन्होंने कहा है कि इन स्कूलों में पढ़ाने वाले या काम करने वाले अन्य कर्मचारियों के लिए यह ज़रूरी है कि वे आदिवासी संस्कृति, भाषा और ज़रूरतों को समझते हों. अगर इन स्कूलों में कर्मचारियों या शिक्षकों की भर्ती में इन बातों का ध्यान नहीं रखा जाता है तो फिर इन स्कूलों का उद्देश्य पूरा नहीं होता है.

बृंदा करात ने आदिवासी मामलों को लिखे पत्र में कहा है कि एकलव्य स्कूलों में शिक्षकों, कर्मचारियों और प्रिंसिपल की भर्ती प्रक्रिया में कमी है.

क्योंकि भर्ती प्रक्रिया के अनुसार एकलव्य स्कूलों में नौकरी पाने के इच्छुक उम्मीदवारों को अंग्रेज़ी और हिंदी का ज्ञान अनिवार्य है. इस शर्त के बारे में बृंदा करात कहती है कि यह हैरान करने वाला फैसला है. क्योंकि आदिवासी छात्राों के लिए बनाए स्कूलों में आदिवासी भाषाओं का नहीं बल्कि हिंदी और अंग्रेज़ी का ज्ञान अनिवार्य है.

इस बारे में चिंता व्यक्त करते हुए बृंदा करात ने पूछा है कि क्या दक्षिण या पूर्व और उत्तर पूर्व के राज्यों में जबरन हिंदी को थोपना जायज है.

उन्होंने इस बारे में लिखा है कि हिंदी भाषी शिक्षकों से यह उम्मीद की जाएगी कि वे दो साल के भीतर स्थानीय भाषा सीख लेगें. लेकिन सवाल ये है कि क्या दो साल में सभी शिक्षक आदिवासी भाषा सीख सकते हैं. इसके अलावा यह भी सवाल है कि जब तक शिक्षक आदिवासी भाषा सीखेंगे, उन दो सालों में छात्रों की पढ़ाई का क्या होगा.

बृंदा करात के अलावा मध्य प्रदेश में सैलाना विधान सभा से विधायक कमलेश्वर डोडियार ने भी इस मामले में केंद्र सरकार को एक पत्र लिखा है.

इस पत्र में भी एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूलों में हिंदी थोपने के दुष्प्रभावों पर चिंता प्रकट की गई है. उन्होंने मांग की है कि एकलव्य स्कूलों में आदिवासी संस्कृति और भाषा को समझने वाले लोगों को ही नियुक्त किया जाना चाहिए.

एकलव्य मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूल (EMRS) क्या है?

साल 1997-98 में आदिवासी छात्रों के लिए एक बेहतरीन शुरुआत की गई. सरकार ने यह फैसला किया कि आदिवासी इलाकों में भी पढ़ाई लिखाई की अच्छी व्यवस्था की जाएगी.

इसके तहत एकलव्य मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूल की स्थापना की शुरुआत हुई. इन स्कूलों का मॉडल जवाहर नवोदय विद्यालयों से मिलता जुलता है.

इन स्कूलों में हॉस्टल की व्यवस्था होती है. साथ ही इन स्कूलों में पढ़ाई लिखाई के साथ साथ खेल-कूद, गीत-संगीत, संस्कृति के अलावा अन्य कौशल में छात्रों को पारंगत करने का लक्ष्य भी रखा गया था.

अभी तक का अनुभव बताता है कि इन स्कूलों को जिस लक्ष्य के साथ स्थापित किया गया था, उस दिशा में इन स्कूलों का योगदान बेहतरीन कहा जा सकता है.

740 EMRS खोलने का लक्ष्य

फिर साल 2018-19 के बजट में यह व्यवस्था की गई थी कि देश के हर उस ब्लॉक में जहां की कम से कम आधी आबादी आदिवासी है वहां कम से कम एक एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूल की स्थापना की जाएगी.

इसके साथ ही यह भी तय हुआ था कि अगर किसी ब्लॉक में 20,000 से ज़्यादा आबादी आदिवासी है तो वहां पर भी ये स्कूल होंगे.

केंद्रीय बजट 2018-19 ने 740 एकलव्य स्कूलों के निर्माण के लिए 2022 की समय सीमा तय की थी और आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने जुलाई 2021 में संसद में इसकी पुष्टि की थी.

लेकिन फिर आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने दिसंबर 2022 में संसदीय समिति को बताया था कि उसने कोई समय सीमा तय नहीं की है. लेकिन फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश भर में 3.5 लाख एसटी छात्रों को लाभ देने के लिए समय सीमा 2025-26 तक बढ़ा दी.

वहीं खबर लिखे जाने तक राष्ट्रीय आदिवासी छात्र शिक्षा समिति (National Education Society for Tribal Students) की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, सरकार द्वारा कुल 708 एकलव्य स्कूल सेंशन किए गए हैं. इनमें से 405 स्कूल फंक्शनल हैं.

ऐसे में इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सरकार अभी भी अपने 740 स्कूलों के लक्ष्य से बेहद दूर खड़ी है.

आख़िर में बस इतना ही कि एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूलों की भर्ती प्रकिया को लेकर सीपीआई(एम) नेता बृंदा करात के सभी सवाल एकदम जायज हैं. लेकिन क्या सरकार ने इन सवालों पर गौर नहीं किया था?  

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