HomeLaw & Rightsआदिवासी स्कूलों में राज्य की भाषा का मुद्दा राज्यसभा में उठाया गया

आदिवासी स्कूलों में राज्य की भाषा का मुद्दा राज्यसभा में उठाया गया

राज्यसभा सांसद और डीएमके नेता तिरुचि शिवा ने गुरुवार को मांग की कि एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) में शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया को केंद्रीकृत करने के बजाय संबंधित राज्यों को दिया जाना चाहिए.

राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान बोलते हुए, शिवा ने दक्षिण के स्कूलों के लिए उत्तर भारत के लोगों की भर्ती के कारण छात्रों की भागीदारी में कमी पर चिंता व्यक्त की.

इसके अलावा तमिलनाडु के सांसद तिरुचि शिवा ने केंद्र सरकार के एक संगठन द्वारा हाल ही में जारी किए गए उस आदेश पर चिंता व्यक्त की, जिसमें आदिवासी बच्चों के स्कूलों में पढ़ाने के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए हिंदी और अंग्रेजी का ज्ञान अनिवार्य किया गया है.

शिवा ने कहा, “ईएमआरएस में शिक्षकों के लिए हिंदी का ज्ञान अनिवार्य कर दिया गया है. 2023 में आदिवासी छात्रों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा सोसायटी (NESTS) ने 2,266 स्नातकोत्तर शिक्षकों (PGT), प्रिंसिपल के 303 पद, 759 जूनियर सचिवालय सहायक, 373 लैब असिस्टेंट और 361 अकाउंटेंट के पदों के लिए विज्ञापन दिया. नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हो चुकी है.”

उन्होंने आगे कहा कि 303 प्रिंसिपल, 707 जूनियर सेक्रेटेरियल असिस्टेंट और अन्य कर्मचारियों के पहले बैच में अब मुख्य रूप से दक्षिण भारत में नियुक्त उत्तर भारतीय राज्यों के लोग शामिल हैं.

दरअसल, सभी पदों के लिए उम्मीदवारों को एक लिखित परीक्षा देनी थी, जिसमें भाषा दक्षता पर प्रश्न शामिल थे. परीक्षा के लिए चुनी गई भाषाएं हिंदी और अंग्रेजी थीं. परीक्षा के लिए योग्य व्यक्ति शामिल हो गए हैं.

देशभर में फिलहाल 405 फंक्शनल ईएमआरएस हैं. राज्यों के सहयोग से पहले चरण में 1997-98 में करीब 200 ईएमआरएस शुरू किए गए थे और राज्यों ने भर्ती की. 2018-19 में केंद्र सरकार ने स्कूलों का विस्तार किया और बाद में NESTS की स्थापना करके भर्ती को केंद्रीकृत किया.

शिवा ने कहा कि ये नए भर्ती किए गए कर्मचारी छात्रों के साथ बातचीत नहीं कर सकते हैं क्योंकि उन्हें छात्रों द्वारा बोली जाने वाली भाषा नहीं जानते.

शिवा ने कहा, “क्योंकि शिक्षक और कर्मचारी स्थानीय भाषा नहीं जानते हैं, इसलिए छात्रों के साथ उनका जुड़ाव कम हो जाता है. इससे छात्र वंचित रह जाते हैं. मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि भर्ती की जिम्मेदारी राज्यों को वापस दें”

उन्होंने कहा कि नए कर्मचारियों पर दो साल के भीतर स्थानीय भाषा सीखने का बोझ है. उन्होंने इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने का आह्वान किया है.

इससे पहले, पिछले हफ्ते सीपीएम नेता वृंदा करात ने केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम को एक पत्र लिखकर उनसे केंद्रीकृत भर्ती प्रणाली को बदलने का आग्रह किया.

देश के सुदूर आदिवासी इलाकों में आदिवासी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (Eklavya Model Residential School) खोला गया.

वृंदा करात ने मांग की है कि एकलव्य स्कूलों में आदिवासी संस्कृति और भाषा को समझने वाले लोगों को ही नियुक्त किया जाना चाहिए. उन्होंने तर्क दिया कि केंद्रीकृत भर्ती में आदिवासी संस्कृति और भाषा के ज्ञान पर ध्यान पूरी तरह से गायब है.

वृंदा करात ने पूछा, “राज्य की भाषा को क्यों नजरअंदाज किया जाना चाहिए? योग्यता में आदिवासी संस्कृतियों और भाषाओं का ज्ञान क्यों शामिल नहीं होना चाहिए? हिंदी को उन राज्यों में क्यों थोपा जाना चाहिए जहां यह बोली जाने वाली भाषा नहीं है, जैसे कि दक्षिण या पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के राज्य?”

इसके अलावा मध्य प्रदेश में भारतीय आदिवासी पार्टी के रतलाम के सैलाना से विधायक कमलेश्वर डोडियार ने भी आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी भाषा और संस्कृति के जानकार शिक्षकों की नियुक्ति की मांग की है. उन्होंने इस संबंध में भारत सरकार के जनजातीय मंत्री को पत्र लिखा है.

दरअसल, NESTS द्वारा चयनित शिक्षक और अन्य कर्मचारी अलग-अलग राज्यों से अलग-अलग बोली, भाषा और संस्कृति से आते हैं. ऐसी स्थिति में शिक्षक और छात्रों के बीच कम्युनिकेशन गैप हो जाता है, जिससे आदिवासी छात्रों का भविष्य अंधकारमय नज़र आ रहा है. आदिवासी बच्चों को उन्हीं की बोली, भाषा और संस्कृति में समझने वाले शिक्षकों की जरूरत है.

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