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आदिवासी या वनवासी: राहुल गांधी ने आदिवासी के मन की बात कही है?

राहुल गांधी ने जिन स्पष्ट शब्दों में आदिवासी बनाम वनवासी बहस को छेड़ा है, वह दरअसल आदिवासी की पहचान और अधिकार से जुड़ी एक ज़रूरी बात है. एक तरह से उन्होंने आदिवासी नौजवानों के दिल की बात को शब्द और ताक़त दी है.

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा सांसद राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान आदिवासी पहचान और अधिकार पर एक ज़रूरी बहस शुरू की है.

उन्होंने कहा कि है कि संघ परिवार आदिवासियों को वनवासी कहती है क्योंकि वे आदिवासियों की पहचान और अधिकार को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं.

राहुल गांधी ने जो बात कही है वह बात आदिवासी नौजवानों में अपनी पहचान के प्रति सजगता को बढ़ा सकता है. लेकिन इस बयान के बाद बीजेपी कैंप से जो प्रतिक्रिया आई है उससे लगता है कि वह बचाव की मुद्रा में है.

क्योंकि राहुल गांधी ने जो बात उठाई है वह आदिवासी अस्मिता से जुड़ा एक बेहद ज़रूरी और संवेदनशील सवाल है. इस सवाल पर आदिवासी समुदाय के नौजवान लंबे समय से बात करने की कोशिश कर रहे हैं.

राहुल गांधी ने उनकी तमन्ना और कोशिश को आवाज़ और समर्थन दिया है. लेकिन सवाल ये हैं कि ट्राइबल, आदिवासी और जनजाति के बीच में वनवासी शब्द कहां से आया.

RSS को आदिवासी शब्द से दिक़्क़त क्या है? यही समझने की कोशिश इस वीडियो में की गई है.

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