केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में एकबार फिर यह बात ज़ोर दे कर कही है कि मार्च 2026 तक देश को माओवाद से मुक्त करा लिया जाएगा.
उनके निर्देश पर छत्तीसगढ़ के बस्तर में जंगलों में लगातार बंदूक़ें गरज रही हैं. सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच चल रही मुठभेड़ों में पलड़ा अब सुरक्षा बलों का भारी है.
सुरक्षा बलों का मनोबल अभी काफ़ी उंचा है क्योंकि उसने शीर्ष माओवादी नेता बसवराजु को मार गिराया है.
इन मुठभेड़ों के बीच के बीच सुरक्षाबलों पर यह आरोप भी लगा है कि उसने कई आम आदिवासी को मार कर नक्सलवादी बता दिया है.
इस तरह की एक घटना इंद्रावती नेशनल पार्क एरिया में 5 जून को हुई. माओवादियों से पुलिस की मुठभेड़ हुई. एनकाउंटर में कुल 7 नक्सली मारे गए.
इन मारे गए माओवादियों में एक रसोईया भी शामिल था. मुठभेड़ में सुरक्षा बलों की गोली से मारा गया रसोईया सरकार स्कूल में खाना बनाने का काम करता था.
दूसरी तरफ़ माओवादी भी पुलिस मुखबिर बता कर आदिवासियों की हत्या कर रहे हैं. बीजापुर ज़िले के जंगल में 17 जून को माोवादियों ने पेदा कोरमा नाम के गांव में 12 लोगों का अपहरण कर लिया.
इन 12 लोगों में 3 लोगों को माओवादियों ने मौत के घाट उतार दिया. जिन लोगों को माओवादियों ने गला घोंट कर मारा था उनमें एक नाबालिग भी शामिल था.
इस पृष्ठभूमि में यह सवाल लाज़मी है कि माओवाद के खिलाफ़ इस अभियान में आम आदिवासी क्यों मारा जा रहा है? इसके साथ ही यह सवाल भी है कि क्या सरकार माओवाद को ख़त्म करने की जल्दी में मानवाधिकारों को भूल गई है?
और सबसे बड़ा सवाल क्या मार्च 2026 तक माओवादी हिंसा को ख़त्म किया जा सकता है?
इन सवालों के जवाब के लिए मैं भी भारत के संपादक श्याम सुंदर ने बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर में एक चर्चा का आयोजन किया.
इस चर्चा में बस्तर के माओवाद प्रभावित इलाकों से लंबे समय से रिपोर्टिंग करने वाले मनीष गुप्ता, नरेश मिश्रा और विकास तिवारी शामिल थे.
आप चाहें तो उपर के लिंक में यह पूरी चर्चा देख सकते हैं.