मध्य प्रदेश के सीहोर ज़िले में बनने जा रहे सरदार वल्लभभाई पटेल वन्यजीव अभयारण्य के प्रस्ताव को सरकार ने फिलहाल स्थगित कर दिया है.
राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (Principal Chief Conservator of Forests) सुभ्रंजन सेन ने सोमवार यानी 30 जून 2025 को सीहोर के प्रभागीय वन अधिकारी (Divisional Forest Officer) को चिट्ठी लिखकर ये सूचना दी कि सरकार के निर्देश पर यह प्रक्रिया फिलहाल रोक दी गई है. अगली सूचना तक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी.
यह फैसला सरकार ने तब लिया जब आदिवासी समुदाय ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी उनकी बातों का समर्थन किया.
विरोध की चिंगारी कहां से भड़की?
सीहोर और आसपास के इलाके में आदिवासियों के बीच पहले से ही आशंका बनी हुई थी कि अगर ये नया अभयारण्य बना तो उन्हें उनकी जमीन और घरों से हटाया जा सकता है. इस डर को और गहरा बना दिया एक हालिया घटना ने.
वन विभाग ने 23 जून को देवास ज़िले की खिवनी वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी में अतिक्रमण हटाने के नाम पर करीब 50 आदिवासी घरों को तोड़ दिया.
इस कार्रवाई ने पूरे इलाके में नाराज़गी और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया. आदिवासियों को लगा कि अब यही हाल सीहोर में भी हो सकता है.
इसके बाद 27 जून को जब केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान विकास कार्यों की समीक्षा के लिए सीहोर ज़िला कलेक्ट्रेट आए तब सैकड़ों आदिवासी पुरुष और महिलाएं वहां विरोध प्रदर्शन करने पहुंचे.
उन्होंने मंत्री को ज्ञापन सौंपा और कहा कि अगर यह सैंक्चुरी बनी तो सीहोर और देवास जिलों के करीब 2 लाख लोग प्रभावित होंगे. उन्होंने कहा कि हमसे हमारी ज़मीन, घर और जंगल छीने जाएंगे.
शिवराज सिंह चौहान का रुख
मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने न सिर्फ आदिवासियों की बात सुनी बल्कि सार्वजनिक रूप से वन विभाग को चेतावनी दी कि दोबारा इस तरह की कोई कार्यवाई न की जाए. उन्होंने कहा कि इससे सरकार की छवि को नुकसान पहुंच रहा है.
इसके बाद 28 जून को शिवराज सिंह चौहान आदिवासियों की इस समस्या को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से मिले.
सीएम ने तुरंत जांच के आदेश दिए और वन विभाग को बरसात में कोई तोड़फोड़ न करने का निर्देश दिया. इसके साथ ही पीड़ितों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने की बात कही.
मुख्यमंत्री ने राज्य के आदिवासी मामलों के मंत्री विजय शाह को प्रभावित आदिवासियों से मिलने के लिए रविवार को देवास ज़िले में भेजा.
उसी दिन सीहोर के प्रभागीय वन अधिकारी, मगन सिंह डावर (जो खुद एक आदिवासी हैं) का स्थानांतरण कर दिया गया. उनकी जगह अर्चना पटेल को नया डीएफओ बनाया गया है.
नया नहीं है ये प्रस्ताव
सरदार पटेल वन्यजीव सैंक्चुरी का प्रस्ताव नया नहीं है. यह प्रस्ताव पहली बार कांग्रेस सरकार के दौरान रखा गया था, जब उमंग सिंघार राज्य के वन मंत्री थे.
कई विशेषज्ञों का कहना है कि आदिवासी समुदाय को उस समय इस प्रस्ताव की पूरी जानकारी नहीं दी गई थी इसलिए उस समय कोई बड़ा सार्वजनिक विरोध सामने नहीं आया था.
मई 2025 में भाजपा सरकार ने इस प्रस्ताव को फिर से सक्रिय करने की तैयारी की थी. इसके लिए सीहोर DFO से संशोधित प्रस्ताव मांगा गया था. लेकिन फिलहाल इसे स्थगित कर दिया गया है.
आदिवासियों का डर
आदिवासी समुदाय का कहना है कि अभयारण्य के नाम पर उनके घरों को ‘अवैध अतिक्रमण’ बता दिया जाता है जबकि वे पीढ़ियों से उन जंगलों में रह रहे हैं.
उनका जीवन जंगल, जमीन और जल से जुड़ा है.
जब जब अभयारण्य या रिज़र्व ज़ोन बनाए जाते हैं, उन्हें जबरन हटाया जाता है और फ़िर वे जीवन भर भूमिहीन, बेरोज़गार और बेघर हो जाते हैं. इसलिए वे चाहते हैं कि ऐसे फैसलों से पहले उनकी राय और सहमति ज़रूरी हो.
सरकार ने फिलहाल प्रस्ताव को रोक कर एक सकारात्मक कदम ज़रूर उठाया है लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है.
समय की मांग है कि आदिवासियों की भूमि, संस्कृति और जीवनशैली को ध्यान में रखकर ही कोई भी योजना बनाई जाए.