त्रिपुरा की जनजातीय संस्कृति अद्वितीय और समृद्ध है. राज्य की जनजातियाँ अपने विविध रीति-रिवाजों, जीवनशैली और कला के लिए जानी जाती हैं.
त्रिपुरा में कुल 19 मान्यता प्राप्त जनजातियाँ निवास करती हैं. इनमें त्रिपुरी, रियांग, जमातिया, नोक, हलाम, और चकमा प्रमुख हैं.
इन जनजातियों की सांस्कृतिक विविधता और पारंपरिक ज्ञान इस राज्य को एक विशेष पहचान देते हैं.
त्रिपुरा की इन जनजातियों का समाज, जीवनशैली, संगीत, नृत्य, वाद्य यंत्र और बुनाई कला लंबे समय से समृद्ध और संरक्षित रहे हैं, लेकिन समय के साथ इनमें परिवर्तन देखने को मिल रहा है.
इन 19 जनजातियों में से सबसे बड़ी जनजाति त्रिपुरी है, जो राज्य की जनसंख्या का लगभग 50% हिस्सा बनाती है.
त्रिपुरी जनजाति अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों, नृत्य और उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें खासकर “गरिया पूजा” का विशेष महत्व है.
रियांग जनजाति, जो राज्य की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है, अपने संगीत और नृत्य के लिए विख्यात है.
रियांग समुदाय का पारंपरिक वाद्य यंत्र सुमुई, एक बांस से बना बांसुरी जैसा वाद्य यंत्र, उनकी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है.
इसके अलावा, जमातिया जनजाति भी त्रिपुरा की एक प्रमुख जनजाति है, जो अपनी सामरिक परंपराओं और सामाजिक व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है.
त्रिपुरा की जनजातियों के सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहरों को संरक्षित रखने के प्रयास में, त्रिपुरा जनजातीय स्वायत्त ज़िला परिषद (TTADC) के मुख्यालय खुमलुंग में स्थित संग्रहालय महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
यह संग्रहालय त्रिपुरा की जनजातीय संस्कृति, वाद्य यंत्र, पारंपरिक वस्त्र, और हस्तशिल्प को संजोने और प्रदर्शित करने का कार्य कर रहा है.
संग्रहालय में विभिन्न जनजातियों की जीवनशैली और संस्कृति से जुड़ी वस्तुएं और प्रदर्शनी हैं, जो न केवल स्थानीय लोगों बल्कि पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं.
हालांकि, इस संग्रहालय को बेहतर तरीके से संचालित करने और इसे जनजातीय धरोहर का एक मजबूत केंद्र बनाने के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता की आवश्यकता है.
संग्रहालय की तरफ से केंद्र सरकार को इस सिलसिले में एक विस्तृति प्रस्तवा ज़रूरी रिपोर्ट और दस्तावेज़ों के साथ भेजी गई है. लेकिन इस रिपोर्ट पर केंद्र सरकार की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है.
इस संग्रहालय का नया भवन बन कर तैयार है. लेकिन आर्थिक सहयोग न मिलने की वजह से यह संग्रहालय इस भवन में नहीं जा पा रहा है.
अफ़सोस की बात ये है कि वर्तमान संग्रहालय को देखने के लिए काफ़ी पसीना बहाना पड़ता है क्योंकि यहां पर एयरकंडिशनर तक नहीं लगाया गया है.
त्रिपुरा की जनजातियाँ राज्य की संस्कृति और पहचान की धुरी हैं, और इनकी धरोहर को सहेजने का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है.
संग्रहालय इस दिशा में एक बड़ा कदम है, जो इनकी अमूल्य परंपराओं और कला को सुरक्षित और संरक्षित रखने में सहायक हो रहा है. इसका विकास और संरक्षण त्रिपुरा की सांस्कृतिक धरोहर को लंबे समय तक जीवित रखने में सहायक साबित होगा.