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आदिम जनजातियों (PVTG) को घर देने के वादे को पूरा करने में कई चुनौती

पीएम जनमन मिशन के तहत विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों को पक्का घर उपलब्ध कराने की मंशा है. ताकि वे अपने परिवेश में सुरक्षित रहें. लेकिन जनसंख्या के आंकड़ों की कमी और कई अन्य तकनीकि चुनौतियों ने इस मिशन के रास्ते में बाधा खड़ी कर दी हैं.

भारत में 700 से ज़्यादा आदिवासी समुदायों (Tribal Communities) को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया गया है. इन समुदायों में से कम से कम 75 आदिवासी समुदायों को विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों (PVTGs) के तौर पर भी पहचाना गया है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश भर में पीवीटीजी परिवारों की संख्या करीब 14.6 लाख है. ये आदिवासी समूह देश के दूर-दराज के दुर्गम इलाकों में बसे हुए हैं. इन आदिवासी समुदायों में साक्षरता दर बेहद कम है. इसे अलावा उनकी जनसंख्या में गिरवाट या ठहराव मिलता है. इस सूचि में शामिल आदिवासी समूहों की आर्थिक हालत काफ़ी ख़राब है.

इन आदिवासी समूहों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को समझते हुए सरकार ने साल 2023-24 में प्रधानमंत्री पीवीटीजी डवलेपमेंट मिशन (Prime Minister PVTG Development Mission) की घोषणा की थी. 

सरकार की इस पहल के अनुसार नवंबर 2023 में प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (पीएम जनमन अभियान ) के तहत पीवीटीजी समुदायों के विकास के लिए 24000 करोड़ रूपए ख़र्च करने की बात कही थी. 

प्रधानमंत्री जनमन एक ऐसी पहल है जिसके ज़रिये आदिम जनजातियों के सभी परिवारों को कम से कम ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाएं. इसमें पीने का साफ़ पानी, स्वच्छता और सुरक्षित घर शामिल हैं. 

लेकिन अभी तक का अनुभव यह बताता है कि इस मिशन के तहत आदिम जनजातियों और इस योजना को लागू करने वाले कर्मचारियों या कार्यकर्ताओं को काफ़ी परेशानी आ रही है. प्रधानमंत्री जनमन में हितग्राही को  सीधा सीधा लाभ पहुंचाने (Direct Benifit Transfer) के लिए सबसे अधिक राशी रखी गई है. यह राशी घर बनाने के लिए दी जाती है. 

लेकिन मकान के लिए मिलने वाली राशी को हासिल करने के लिए हितग्राही या फिर कर्मचारियों को एक ऐप से जूझना पड़ रहा है. प्रधानमंत्री जनमन मिशन के तहत साल 2026 तक कम से कम 4.90 लाख पीवीटीजी परिवारों को मकान उपलब्ध करवाना है. इस मिशन के तहत हर परिवार को 2.39 लाख रूपया दिया जाता है.

इस सिलसिले में लिब टेक इंडिया (Lib Tech India) के शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि यह लक्ष्य हासिल करना सरकार के लिए मुश्किल नज़र आ रहा है. इस शोध में बताया गया है कि पीएम जनमन मिशन के तहत मकान का लाभ पाने के लिए परिवार के पास जॉब कार्ड ज़रूरी है. क्योंकि इस योजना के लिए खुद के परिवार का नाम रजिस्टर करने के लिए सरकार ने जो ऐप बनाया है उस पर रजिस्ट्रेशन तभी हो सकता है जब परिवार के पास जॉब कार्ड होगा.

लेकिन समस्या ये है कि पिछले दो सालों में मनरेगा के तहत मज़दूरी करने वाले 8 करोड़ लोगों में से बड़ी संख्या में लोगों का नाम इस सूचि से ग़ायब हो गया है. इसमें कुछ पीवीटीजी परिवार भी शामिल हैं. इसलिए अब वे पीएम जनमन मिशन के तहत घर के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं कर सकते हैं.

इस मिशन को ज़मीन पर लागू करने में जुटे लोगों का कहना है कि कई मामलों में ऐप में जो गांवों की सूचि दी गई है उससे कहीं ज़्यादा गांव मनरेगा की सूचि में हैं. मसलन आंध्रप्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू ज़िेले में इस ऐप की सूचि में 22 ऐसे गांव हैं जिनमें आदिम जाति रहती हैं. लेकिन मनरेगा की सूचि के अनुसार यह संख्या 31 होनी चाहिए. 

इसके अलावा इस स्टडी मे यह भी ध्यान दिलाया गया है कि इस ऐप में बैंकों की सूचि में इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक (IPPB) को नहीं रखा गया है. जबकि सरकार ने यह फैसला किया था कि दूर-दराज के इलाकों में बैंकिग सर्विस सुधारने के लिए IPPB को शामिल किया जाएगा. 

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पीएम जनमन स्कीम एक बेहतरीन पहल है जो आदिवासियों में भी सबसे कमज़ोर समूहों की ज़िंदगी को बेहतर बना सकती है. लेकिन इस मिशन को लागू करने में जिस तरह की चुनौतियां आ रही हैं, उससे यह डर लगता है कि कंही यह योजना भी अपना लक्ष्य हासिल करने से पहले दम ना तोड़ दे. 

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