आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू (ASR) ज़िले में आदिवासी समुदाय ने सड़क की मांग को लेकर एक ऐसा कदम उठाया है जिसने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है.
अनंतागिरी मंडल के कल्याणगुम्मी गांव के आदिवासियों ने अधनग्न अवस्था में एक किलोमीटर लंबी डोली यात्रा निकालकर सरकार और प्रशासन से सड़क निर्माण की गुहार लगाई है.
सड़क बनाने के लिए मिल चुका है एक करोड़ का फंड, तो विरोध क्यों
कल्याणगुम्मी गांव में लगभग 180 आदिवासी परिवार रहते हैं.
गांव तक पहुंचने के लिए कोई पक्की या कच्ची सड़क नहीं है. आदिवासियों को घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों से होकर गुज़रना पड़ता है.
गिरिजन संघम के अध्यक्ष नंदुला राजा राव के अनुसार, वर्ष 2024 में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के तहत 1 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई थी ताकि गांव को अनकापल्ली ज़िले के देवरपल्ली मंडल स्थित नेरेल्लापुडी से जोड़ने के लिए ग्रेवल रोड बनाया जा सके. ग्रेवल रोड़ एक प्रकार की कच्ची सड़क होती है, जिसे डामर या कंक्रीट से पक्का नहीं किया जाता.
लेकिन एक साल बीत जाने के बावजूद काम शुरू नहीं हो पाया है. ये काम इसलिए शुरु नहीं हो पाया है क्योंकि इसे अब तक वन विभाग की ओर से मंज़ूरी नहीं मिली है.
बच्चे और बीमार सबसे ज़्यादा प्रभावित
गांव के 12 बच्चे बोडुगारुवु गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए रोज़ 6 किलोमीटर जंगल से होकर गुज़रते हैं.
बारिश के दिनों में यह रास्ता और भी खतरनाक हो जाता है.
स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति और भी गंभीर है. जब कोई बीमार होता है तो ग्रामीणों को डोली में 50 किलोमीटर का सफर तय कर लोंगापर्थी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक जाना पड़ता है.
हाल ही में करीबी कर्रीगुडा गांव में बहुउद्देश्यीय विकास अधिकारी (Multi-Purpose Development Officer) पहाड़ी रास्ते से गुजरते हुए बीमार पड़ गए थे.
उन्हें तीन किलोमीटर डोली में ढोकर इलाज के लिए ले जाया गया.
यह घटना बताती है कि सड़क न होने का खतरा आम लोगों तक ही सीमित नहीं है बल्कि प्रशासनिक अधिकारी भी इससे अछूते नहीं हैं.
20 जून को जिला कलेक्टर के दफ्तर तक निकालेंगे डोली यात्रा
गिरिजन संघम के अध्यक्ष नंदुला राजा राव ने बताया कि अगर वन विभाग और ज़िला प्रशासन ने जल्द कार्रवाई नहीं की तो आदिवासी समुदाय 20 जून को अनकापल्ली ज़िला कलेक्टर के कार्यालय तक डोली यात्रा निकालेगा.
उन्होंने प्रशासन से आग्रह किया है कि वह खुद गांव का दौरा करके वास्तविक हालात को समझे.
यह कोई एक गांव की कहानी नहीं है. देश के कई आदिवासी इलाकों में अब भी सड़कें नहीं हैं. इसी वजह से वहां के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और आपातकालीन सेवाओं तक पहुंचने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब फंड स्वीकृत हो चुका है, ज़रूरत बिल्कुल स्पष्ट है और गांव वाले खुद भी मांग कर रहे हैं — तो वन विभाग की यह चुप्पी क्यों?
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