नागालैंड के आदिवासी संगठन ने भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पिछले साल फरवरी में भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और सुरक्षा चिंताओं के चलते फ्री मूवमेंट रेजीम (Free Movement Regime) को खत्म करने के अपने फैसले की घोषणा की थी.
हालांकि, नागालैंड की पांच प्रमुख जनजातियों के शीर्ष संगठन तेन्यीमी यूनियन नागालैंड (Tenyimi Union Nagaland) ने भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध किया है.
संगठन ने दावा किया है कि इससे नागा लोगों, उनकी आजीविका और उनके सांस्कृतिक संबंधों पर “विनाशकारी” प्रभाव पड़ेगा.
टीयूएन पांच जनजातियों – अंगामी, चाखेसांग, पोचुरी, रेंगमा और ज़ेलियांग का संगठन है.
संगठन का दावा है कि भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने से आर्थिक जीवन बाधित होगा, समुदाय अलग-थलग पड़ जाएंगे, महत्वपूर्ण संपर्क टूट जाएंगे और शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच सीमित हो जाएगी.
टीयूएन के अध्यक्ष केखवेंगुलो ली ने बुधवार को जारी एक बयान में कहा कि बाड़ सिर्फ एक भौतिक अवरोध नहीं है, यह हमारी पहचान, विरासत और गरिमा पर हमला है.”
ली ने कहा, “1950 के दशक में शुरू की गई फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) ने सीमित सीमा पार यात्रा की अनुमति दी थी. लेकिन उसके बाद से लगातार नियमों ने इसे और सीमित कर दिया है, जिससे नागा समुदायों की सीमा पार सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को बनाए रखने की क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित हुई है.”
संगठन ने केंद्र सरकार से भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया, जिसमें पैतृक भूमि की सुरक्षा और नागा लोगों के अधिकारों और सम्मान को बनाए रखने के महत्व पर बल दिया गया.
साथ ही टीयूएन ने सभी नागा लोगों, समुदायों और संगठनों से सीमा बाड़ लगाने के विरोध में एकजुट होने और नागा लोगों के सामूहिक भविष्य को और अधिक विभाजन और विखंडन से बचाने का आह्वान किया है.
यह पहली बार नहीं है कि केंद्र सरकार के सीमा पर बाड़ लगाने के फैसले का भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के समूहों द्वारा विरोध किया गया है. इससे पहले कुकी ज़ो काउंसिल, ज़ोमी काउंसिल, कुकी इनपी मणिपुर और हमार इनपुई के नेताओं ने भी भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के सरकार के फैसले पर आपत्ति जताई थी.
इसके अलावा, मिज़़ोरम विधानसभा ने भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और एफएमआर को खत्म करने के केंद्र के फैसले का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था.
क्या है FMR?
फ्री मूवमेंट रिजिम (FMR) की शुरुआत 1970 के दशक में की गई थी क्योंकि म्यांमार और भारत में रहने वाली जातीय जनजातियां (Ethnic tribes) जातीयता और पारिवारिक संबंध साझा करती हैं और वे आसान आवाजाही के लिए एक प्रणाली चाहते थे.
एफएमआर दोनों देशों के बीच एक पारस्परिक रूप से सहमत व्यवस्था है. फ्री मूवमेंट रिजीम के तहत भारत-म्यामांर सीमा के करीब रहने वाले लोग बिना किसी दस्तावेज के एक-दूसरे के इलाकों में 16 किलोमीटर अंदर तक आ जा सकते थे.
1,643 किलोमीटर लंबी भारत-म्यामांर सीमा में FMR लागू था, जो मिज़ोरम, हिंसा प्रभावित मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है.
दोनों ही सीमाओं पर पहाड़ी आदिवासी रहते हैं, जिनका आपस में करीबी रिश्ता रहा. उन्हें मिलने-जुलने या व्यापार के लिए वीजा की मुश्किलों से न गुजरना पड़े, इसके लिए भारत-म्यांमार ने मिलकर ये तय किया कि सीमाएं 16 किलोमीटर तक वीजा-फ्री कर दी जाएं.
साल 2018 में मुक्त आवाजाही पॉलिसी बनी, जो भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत आती थी. इसके तहत देश दक्षिण पूर्व के अपने पड़ोसियों से मेलजोल बनाकर रखने पर जोर देता रहा. इसमें आर्थिक और सामाजिक दोनों ही मेलमिलाप शामिल हैं.
किस तरह की छूट थी FMR में
भारत-म्यांमार मुक्त आवाजाही के लिए जो पास जारी होता था, वो सालभर के लिए वैध होता, और एक बार सीमा पार करने वाले 2 हफ्ते तक दूसरे देश में बिना किसी परेशानी के रह सकते थे.
इसके अलावा इस सीमा के भीतर स्थानीय व्यापार भी होता और पढ़ने-लिखने के लिए भी म्यांमार से लोग यहां तक आने लगे.
लेकिन फरवरी 2024 में केंद्र ने सीमा के दूसरी ओर से ‘अवैध प्रवासन’ को रोकने के लिए भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और एफएमआर को रद्द करने की घोषणा की.
गृह मंत्री अमित शाह ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा था कि दोनों देशों के बीच एफएमआर (Free Movement Regime) को रद्द कर दिया गया है.
अमित शाह ने कहा था कि केंद्र ने देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और म्यांमार की सीमा से लगे पूर्वोत्तर राज्यों की जनसांख्यिकीय संरचना को बनाए रखने के लिए भारत और म्यांमार के बीच फ्री मूवमेंट व्यवस्था को खत्म कर दिया है.