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सामाजिक और आर्थिक बदलाव के लिए आदिवासी महिलाओं की भागीदारी ज़रूरी:  ओम बिरला

विकेंद्रीकरण प्रक्रिया समाज के सभी वर्गों को निर्णय लेने में शामिल करने के लिए ज़रूरी है. इसलिए 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के ज़रिए पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया था. इस संशोधन के तहत पहले महिलाओं और अनुसूचित जनजातियों को स्थानीय शासन में प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान किया गया था और अब 'पंचायत से संसद' पहल के ज़रिए इसे राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

6 जनवरी 2025 को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने ‘पंचायत से संसद 2.0’ पहल का उद्घाटन किया.

यह कार्यक्रम संसदीय लोकतंत्र अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग और जनजातीय मामलों के मंत्रालय के सहयोग से आयोजित किया गया था.

इस कार्यक्रम में देशभर से 500 से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों ने भाग लिया. इस कार्यक्रम में झारखंड की 22 आदिवासी महिला जनप्रतिनिधि समेत अन्य राज्यों की जनजातीय महिला पंचायती राज प्रतिनिधि भी शामिल रहीं. इस आयोजन का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण और आदिवासी समुदायों के नेतृत्व को बढ़ावा देना है.

इस अवसर पर संविधान सदन के सेंट्रल हॉल  से बोलते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विकास को आगे बढ़ाने और जमीनी स्तर पर शासन में सुधार के लिए तकनीकी प्रगति के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने महिला पीआरआई को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नवाचार को अपनाने के लिए प्रेरित किया.

अपने संबोधन में, बिरला ने भारत के लोकतंत्र को मजबूत करने में महिला नेतृत्व की परिवर्तनकारी शक्ति को रेखांकित किया. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सामाजिक और आर्थिक बदलाव लाने के लिए ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं की भागीदारी ज़रूरी है.

झारखंड की इन महिला प्रतिनिधियों ने दिल्ली के महत्वपूर्ण स्थलों जैसे नया संसद भवन, प्रधानमंत्री संग्रहालय और राष्ट्रपति भवन का दौरा किया.

इस दौरान उन्हें विधायी प्रक्रियाओं, संविधान के अधिकारों और शासन के कौशल पर प्रशिक्षण दिया गया.

पंचायत से संसद 2.0 का उद्देश्य

इस पहल का मुख्य उद्देश्य गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक महिलाओं के नेतृत्व को मजबूत करना है. आदिवासी महिला प्रतिनिधियों को पंचायत स्तर से आगे बढ़ाकर संसद और विधानसभाओं में बेहतर भूमिका निभाने के लिए तैयार करना भी इसके मुख्य लक्ष्य में शामिल है.

महिला सशक्तिकरण – इस पहल के ज़रिए महिलाओं को संविधान, संसदीय कार्यों और शासन प्रणाली की जानकारी दी जाती है.

लोकतांत्रिक मूल्यस्थानीय स्तर पर लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संस्थाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया गया है.

योगदान की पहचान – समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के लिए महिलाओं द्वारा किए जा रहे कार्यों को सराहने के लिए भी ये एक ज़रूरी कदम है.

महिलाओं के लिए क्यों है खास ?

यह पहल ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के तहत संसद और विधानसभाओं में 33% महिला आरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों के साथ जुड़ी है.

पंचायत से संसद तक महिलाओं के नेतृत्व को मजबूत करके यह पहल उन्हें राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बेहतर भूमिका निभाने के लिए तैयार कर रही है.

विकेंद्रीकरण प्रक्रिया समाज के सभी वर्गों को निर्णय लेने में शामिल करने के लिए ज़रूरी है. इसलिए 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के ज़रिए पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया था.

इस संशोधन के तहत पहले महिलाओं और अनुसूचित जनजातियों को स्थानीय शासन में प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान किया गया था और अब इसे राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

‘पंचायत से संसद 2.0’ न केवल महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि यह आदिवासी समुदायों के लिए एक नई उम्मीद भी है. यह कार्यक्रम एक प्रमुख आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है.

यह पहल जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने की दिशा में एक प्रेरणादायक प्रयास है. इसके जरिए महिलाएं न केवल अपने अधिकारों को समझेंगी बल्कि अपने समुदायों की आवाज को भी राष्ट्रीय मंच पर मजबूती से रख पाएंगी.

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