HomeAdivasi DailyJMM की बंगाल, ओडिशा में आदिवासी आंदोलन का विस्तार करने की योजना

JMM की बंगाल, ओडिशा में आदिवासी आंदोलन का विस्तार करने की योजना

झामुमो ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों को जोड़कर स्वायत्तशासी परिषद के आंदोलन शुरू करने की तैयारी में है.

विधानसभा चुनावों में मिले भारी बहुमत से सत्ता में वापसी करने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) अब ‘वृहद’ झारखंड पर नजर गड़ाए हुए है. झारखंड मुक्ति मोर्चा पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ जिलों को जोड़कर स्वायत्त परिषद (Autonomous council) की मांग कर रहा है. झामुमो जल्द ही इसके लिए आंदोलन शुरु करने की तैयारी में है.

पदाधिकारियों के मुताबिक पार्टी ने पहले ही खाका तैयार कर लिया है और दोनों राज्यों के आदिवासी बहुल जिलों की अलग पहचान के नाम पर आंदोलन शुरू करेगी.

पार्टी की योजना आगामी अधिवेशन में अपनी पूरी रणनीति और प्रस्ताव पारित कराने की भी है.

पार्टी के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य (Supriyo Bhattacharya) के मुताबिक ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे पड़ोसी राज्यों के आदिवासी बहुल जिलों में आदिवासियों की स्थिति में अभी भी सुधार नहीं हुआ है.

उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल के चार आदिवासी बहुल जिले – झाड़ग्राम, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया… वहीं ओडिशा के तीन जिले – क्योंझर, मयूरभंज और सुंदरगढ़ को मिलाकर स्वायत्त परिषद के गठन की मांग को लेकर जल्द ही आंदोलन शुरू किया जाएगा.

भट्टाचार्य ने कहा कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा के इन सात जिलों में रहने वाले आदिवासियों की रहन-सहन, बात व्यवहार और संस्कृति झारखंड के आदिवासियों की तरह ही है. क्योंकि इन इलाकों के आदिवासी समुदाय अभी भी शोषित हैं इसलिए उनके हितों की रक्षा के लिए एक अलग स्वायत्त परिषद जरूरी है.

पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे ने भी कहा कि झारखंड की सीमा से लगे पश्चिम बंगाल और ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों में आदिवासियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए एक अलग स्वायत्त परिषद की जरूरत है.

पांडे ने कहा, “वृहद झारखंड अभी भी हमारे एजेंडे में है और इसलिए वृहद झारखंड की हमारी लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए एक स्वायत्त परिषद की मांग तेज की जाएगी.”

मनोज पांडे ने कहा कि हमारे नेता शिबू सोरेन का सपना एक वृहद झारखंड का था. साल 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में झारखंड राज्य तो मिल गया लेकिन हमारे सपने अधूरे रह गए. अभी भी हमारी लड़ाई जारी है.

उन्होंने कहा कि झारखंड से सटे पश्चिम बंगाल के आदिवासी बहुल जिलों और ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों को अलग स्वायत्तशासी परिषद की जरूरत है, ताकि वहां रहने वाले जनजातीय समूह के लोगों का जीवन स्तर में सुधार हो. उनके लिए अलग से योजनाएं बने और वह विकास की राह में सरकार की प्राथमिकता सूची में हों.

पांडे ने आगे कहा कि ओडिशा और बंगाल में हमारा (झामुमो) मजबूत जनाधार है और उसने इन राज्यों में विधायक और सांसद की सीटें भी जीती हैं. ओडिशा में कभी हमारे 6 से 7 विधायक और सांसद भी हुआ करते थे. पश्चिम बंगाल के विधानसभा में भी हमारी उपस्थिति पूर्व में रही है.

झारखंड विधानसभा चुनाव-2024 में भाजपा को हराने के बाद पार्टी की लोकप्रियता अपने चरम पर है.

दूसरी ओर भाजपा ने इसे आदिवासियों को गुमराह करने की साजिश करार दिया है.

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने कहा कि झामुमो को पहले पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और ओडिशा सरकार से बात करनी चाहिए और अपनी मांग रखनी चाहिए. राज्यों के आदिवासी समुदायों को अलग पहचान के लिए स्वायत्त परिषद की मांग उठाकर गुमराह नहीं किया जाना चाहिए.

सिन्हा ने कहा कि झामुमो और उसके गठबंधन की विधानसभा चुनाव में जीत झारखंड के लोगों की सेवा करने के लिए हुई है न कि पड़ोसी राज्यों में स्वायत्तशासी परिषद बनवाने के लिए.

क्या होता है स्वायत्त जिला परिषद

भारत के आदिवासी क्षेत्रों में प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए स्थापित वैधानिक निकाय है. ये भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आती है.

इसके जरिए आदिवासी समुदाय के लोग खुद के शासन का लाभ उठा सकते हैं और अपनी संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण कर सकते हैं. इन परिषदों के पास कुछ मामलों में विधायी, न्यायिक और कार्यकारी शक्तियां भी होती हैं.

फिलहाल भारत के चार राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में ये लागू किया गया है. इस परिषद के पास टैक्स, शुल्क और टोल लगाने का अधिकार होता है.

मणिपुर में 6 स्वायत्त परिषदों की स्थापना हुई है. इन परिषदों के जरिए स्थानीय आदिवासी लोगों को भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण मिलता है.

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