मध्य प्रदेश के बालाघाट ज़िला अस्पताल में बैगा जनजाति की एक महिला ने दसवें बच्चे को जन्म दिया. इस घटना ने एक बार फिर से जनजातीय समुदायों में परिवार नियोजन से जुड़ी समस्याओं को उजागर कर दिया है.
दरअसल, बैगा जनजाति की घटती जनसंख्या को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने 1979 में एक आदेश जारी किया था जिसके तहत इस समुदाय के लोगों की नसबंदी पर रोक लगा दी गई थी. यह कदम उनकी जनसंख्या को संरक्षित करने के लिए उठाया गया था.
हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने इस कानून को निरस्त कर दिया लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है. आज भी बैगा समुदाय के लोग जब नसबंदी के लिए अस्पताल जाते हैं, तो उन्हें यह कहकर मना कर दिया जाता है कि इसके लिए प्रशासनिक अनुमति ज़रूरी है.
कुछ ऐसा ही इस दंपत्ति के साथ भी हुआ. महिला के पति ने बताया कि यह महिला की दसवीं संतान है, जिनमें से 8 अभी जीवित है. इससे पहले वे स्थानीय अस्पताल में नसबंदी के लिए भी गए लेकिन इसके लिए उन्हें मना कर दिया गया.
जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ निलय जैन ने मीडिया को बताया कि बैगा महिला का यह 10वां बच्चा है. इस बार नॉर्मल डिलीवरी नहीं हुई है. ऐसे में सीज़ेरियन के 48 घंटे तक कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है. महिला की यह दूसरी शादी है. उनकी पहली शादी से उन्हें दो बच्चे हुए थे. वहीं, दूसरी शादी से आठ बच्चे हुए है. इनमें से दो बच्चों की मौत हो चुकी है.
घटती जनसंख्या बनाम सीमित संसाधन
बैगा जनजाति की आबादी में लगातार गिरावट सरकार के लिए चिंता का विषय है. वहीं इन समुदायों के पास संसाधन सीमित हैं और आर्थिक तंगी के चलते बड़े परिवारों का पालन-पोषण करना मुश्किल हो जाता है.
बालाघाट की इस महिला के पति ने बताया कि वे मजदूरी करके परिवार चलाते हैं. ऐसे में उससे इतने बच्चों का भरण-पोषण करना संभव नहीं है. इसलिए उन्होंने स्थानीय अस्पताल में नसबंदी के लिए आवेदन किया था, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली.
डॉक्टरों और प्रशासन का पक्ष
ज़िला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. निलय जैन ने बताया कि बैगा समुदाय की नसबंदी के लिए प्रशासन से अनुमति लेना जरूरी होता है.
साथ ही महिला की स्वास्थ्य स्थिति और पारिवारिक हालात को ध्यान में रखा जाता है.
इसी तरह का एक मामला जुलाई 2024 में भी आया था. एक 35 साल की बैगा जनजाति की महिला ने 10वें बच्चे को जन्म दिया था.
संतुलन की जरूरत
बैगा जनजाति की घटती जनसंख्या और उनके सीमित संसाधनों के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती है. एक ओर उनकी जनसंख्या को संरक्षित करना जरूरी है तो दूसरी ओर परिवार नियोजन से उनकी जीवनशैली में सुधार लाना.
यह मामला न केवल प्रशासनिक नीतियों की जटिलता को दिखाता है बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि जब हाई कोर्ट ने सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया था तो वास्तविकता में बैगा समुदाय को अपनी मर्जी से परिवार नियोजन का अधिकार क्यों नहीं दिया जाता.
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