HomeAdivasi Dailyमणिपुर में राष्ट्रपति शासन पर बीजेपी विधायकों ने सवाल उठाया

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन पर बीजेपी विधायकों ने सवाल उठाया

पत्र में कहा गया है कि हमारा मानना है कि मणिपुर में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने का एकमात्र तरीका एक लोकप्रिय सरकार स्थापित करना है. विधायकों ने लिखा, अगर एक लोकप्रिय सरकार बहाल होती है तो हम शांति बहाल करने के लिए अपनी पूरी प्रतिबद्धता और समर्पण का आश्वासन देते हैं.

मणिपुर के 21 विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर राज्य में एक “लोकप्रिय सरकार” बनाने का अनुरोध किया है ताकि राज्य में शांति और सामान्य स्थिति सुनिश्चित हो सके.

पत्र में दावा किया गया है कि राष्ट्रपति शासन के लगभग तीन महीने बाद भी राज्य में शांति और सामान्य स्थिति लाने के लिए कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं हुई है.

फिलहाल मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू है. केंद्र ने 13 फरवरी को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था.

वहीं 13 भाजपा विधायकों, तीन नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) विधायकों, तीन नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) विधायकों और दो निर्दलीय विधायकों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है, “मणिपुर के लोगों ने राष्ट्रपति शासन का स्वागत किया… बहुत उम्मीद और अपेक्षा के साथ. हालांकि, तीन महीने होने जा रहे हैं लेकिन शांति और सामान्य स्थिति लाने के लिए कोई भी स्पष्ट कार्रवाई अभी तक नहीं देखी गई है.”

उन्होंने कहा, “लोगों में इस बात की आशंका है कि राज्य में फिर से हिंसा हो सकती है. कई नागरिक संगठन राष्ट्रपति शासन लागू करने के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं और एक लोकप्रिय सरकार की स्थापना की मांग कर रहे हैं.”

विधायकों ने 10 अप्रैल को लिखे पत्र में कहा, “इन संगठनों ने सार्वजनिक रैलियां, नुक्कड़ सभाएं आयोजित करना, आम जनता को भड़काना, सत्तारूढ़ विधायकों पर लोकप्रिय सरकार बनाने का दावा न करने का आरोप लगाना और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की जिम्मेदारी तय करना शुरू कर दिया है.”

एक विधायक ने कहा कि यह पत्र गृह मंत्रालय (MHA) को 29 अप्रैल को मिला और बुधवार (30 अप्रैल) को इसे सार्वजनिक किया गया.

पत्र में कहा गया है, “हमें लगता है कि मणिपुर में शांति और सामान्य स्थिति लाने के लिए एक लोकप्रिय सरकार की स्थापना ही एकमात्र साधन है.”

उन्होंने अमित शाह से “मणिपुर के लोगों के हित में जल्द से जल्द एक लोकप्रिय सरकार स्थापित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने” को कहा.

साथ ही उन्होंने कहा कि हम आपको आश्वासन देते हैं कि हम एक लोकप्रिय सरकार की स्थापना के बाद शांति और सामान्य स्थिति लाने के लिए पूरी लगन और निष्ठा के साथ काम करेंगे.

कांग्रेस ने पत्र पर उठाए सवाल

हालांकि, मणिपुर कांग्रेस के प्रमुख केशम मेघचंद्र सिंह ने राज्यपाल को दरकिनार करते हुए केंद्र को पत्र लिखने के लिए 21 विधायकों की आलोचना की.

उन्होंने आरोप लगाया कि विधायकों ने “राज्य में सरकार बनाने के प्रयास” में संवैधानिक मार्ग को दरकिनार कर दिया.

मेघचंद्र ने विधायकों पर राजनीतिक निष्ठाहीनता का आरोप लगाया और राज्य में लोकतांत्रिक शासन सुनिश्चित करने के बारे में उनकी गंभीरता पर सवाल उठाया.

उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “इन विधायकों को नई सरकार के गठन का दावा करने के लिए इंफाल में राजभवन जाना चाहिए था लेकिन उन्होंने मणिपुर के राज्यपाल को पत्र लिखने के बजाय प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखना चुना. राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है. उनके कार्यों से पता चलता है कि वे मणिपुर में नई सरकार के गठन का दावा करने के लिए राज्यपाल से मिलने के बारे में गंभीर नहीं हैं.”

उन्होंने कहा कि मणिपुर के लोगों की राजनीतिक इच्छा को सत्तारूढ़ दलों की सुविधा के मामले में नहीं बदला जाना चाहिए.

कांग्रेस नेता ने कहा, “मणिपुर के लोगों के जनादेश का इस्तेमाल उनकी राजनीतिक सुविधा के लिए नहीं किया जा सकता. मणिपुर के लोग बदलाव चाहते हैं. मणिपुर के लोग एक नया विकल्प चाहते हैं. हमें नए विकल्प और उस बदलाव का सम्मान करना चाहिए जो मणिपुर के लोग हमारे बेहतर भविष्य के लिए लाएंगे.”

विधायकों का पत्र और गतिरोध

13 फरवरी को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने का फैसला भाजपा के भीतर इस बात पर आम सहमति बनाने में विफल रहने के बाद लिया गया कि एन बीरेन सिंह की जगह कौन मुख्यमंत्री बनेगा.

असंतुष्ट भाजपा विधायकों द्वारा उन पर पद छोड़ने का दबाव बनाने के बाद सिंह ने चार दिन पहले इस्तीफा दे दिया था.

एक ओर बीरेन सिंह के इस्तीफे को एक नई शुरुआत के लिए एक आवश्यक कदम के रूप में देखा गया. वहीं दूसरी ओर यह मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसा को कम करने में उनकी असमर्थता की स्पष्ट स्वीकृति भी थी.

दूसरी ओर, मणिपुर में भाजपा कथित तौर पर राष्ट्रपति शासन के खिलाफ थी… संभवतः इसलिए क्योंकि राज्य में केंद्र की अधिक भूमिका होगी, इसे आगे बढ़ाने का विरोध और अधिक मुखर हो गया है.

क्योंकि अब एनडीए के 21 मणिपुर विधायकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को पत्र सौंपते हुए राज्य में एक लोकप्रिय सरकार स्थापित करने की मांग की है.

फैक्ट यह है कि दो साल के संघर्ष में कम से कम 250 से अधिक लोग मारे गए हैं और हजारों लोग अब भी राज्य भर में राहत शिविरों में तड़प रहे हैं.

यह सच है कि मैतेई और कुकी के बीच हिंसा में कुछ कमी आई है. सुरक्षा बलों और नागरिकों के बीच कुछ झड़पों को छोड़कर, पिछले साल नवंबर में इंफाल पश्चिम, बिष्णुपुर और जिरीबाम जिलों में तनाव बढ़ने के बाद से राज्य के अधिकांश हिस्सों में असहज शांति बनी हुई है.

लेकिन मणिपुर सामान्य स्थिति में लौटने से बहुत दूर है. क्योंकि कोई सार्थक राजनीतिक संवाद नहीं हुआ है. दोनों समुदायों के सदस्य अभी भी घर नहीं लौट सकते हैं और बिना किसी डर या पूर्वाग्रह के रह सकते हैं.

राजमार्ग अवरुद्ध हैं और राज्यपाल अजय कुमार भल्ला द्वारा उग्रवादियों को राष्ट्रपति शासन के एक सप्ताह से भी कम समय में अपने हथियार सौंपने की चेतावनी के बावजूद, निरस्त्रीकरण और विसैन्यीकरण बहुत कम हुआ है.

मणिपुर में भी अन्य राज्यों की तरह ही एक चुनी हुई लोकप्रिय सरकार ज़रूरी है. लेकिन जब तक मैतई-कुकी के बीच अविश्वास का जो माहौल है उसमें सरकार बहाली के प्रयास स्थिति को और जटिल बना सकते हैं.

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