HomeAdivasi Dailyआदिवासी स्वायत्त परिषदों को सशक्त बनाने की तैयारी में केंद्र

आदिवासी स्वायत्त परिषदों को सशक्त बनाने की तैयारी में केंद्र

गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में त्रिपुरा की सांसद कीर्ति देवी के सवाल के जवाब में जानकारी साझा की है कि गृह मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति की 223वीं रिपोर्ट में जो सिफारिशें दी गई थीं, उन पर संबंधित राज्यों से विस्तृत चर्चा हो चुकी है.

केंद्र सरकार संविधान में 125वां संशोधन लाने की दिशा में सक्रिय हो गई है. इसका मकसद छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाली आदिवासी स्वायत्त परिषदों को अधिक अधिकार देना है.

यह जानकारी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने त्रिपुरा से लोकसभा सांसद कृति देवी देबबर्मन को पत्र लिखकर दी है.

यह मुद्दा सांसद कृति देवी ने 16 दिसंबर 2024 को लोकसभा में उठाया था.

उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की थी कि यह संशोधन जल्द पारित किया जाए ताकि पूर्वोत्तर राज्यों समेत अन्य छठी अनुसूची वाले क्षेत्रों में स्वायत्त ज़िला परिषदों को और सशक्त बनाया जा सके.

गृह राज्य मंत्री ने अपने जवाब में कहा कि गृह मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति की 223वीं रिपोर्ट में जो सिफारिशें दी गई थीं, उन पर संबंधित राज्यों से विस्तृत चर्चा हो चुकी है.

इन चर्चाओं के आधार पर अब संविधान के 125वां संशोधन विधेयक, 2019 को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया चल रही है.

क्या है 125वां संविधान संशोधन विधेयक?

संविधान का 125वां संशोधन विधेयक, 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया था और बाद में इसे गृह मामलों की स्थायी समिति को भेजा गया.

यह विधेयक विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत के चार राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में स्थित स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) को अधिक अधिकार देने के लिए लाया गया था.

स्वायत्त ज़िला परिषदें (ADCs) छोटे राज्यों जैसे प्रशासनिक इकाइयों की तरह काम करती हैं. वर्तमान में भारत में के उत्तरपूर्व राज्यों में 10 स्वायत्त परिषदें हैं. असम, मेघालय और मिजोरम में तीन-तीन और त्रिपुरा में एक स्वायत्त जिला परिषद हैं.

इनका उद्देश्य स्वायत्त परिषदों को अधिक वित्तीय, प्रशासनिक और कार्यकारी शक्तियाँ देना है ताकि वे अपने क्षेत्रों का बेहतर विकास कर सकें.

प्रस्तावित बदलाव क्या थे?

विधेयक में सुझाव दिया गया था कि हर जिले के अंतर्गत ग्राम परिषदों और नगर परिषदों की स्थापना की जा सकती है जो ग्रामीण और शहरी स्तर पर स्थानीय शासन का काम करेंगी.

इन परिषदों की संरचना, अधिकार और आर्थिक विकास योजनाएं बनाने, भूमि सुधार लागू करने, शहरी नियोजन करना और ज़मीन के उपयोग को नियंत्रित करने जैसे विषयों को लेकर राज्यपाल को नियम बनाने का अधिकार दिए जाने का प्रस्ताव था.

वित्तीय पक्ष को मज़बूत करने के लिए इसमें यह भी प्रस्ताव रखा गया था कि राज्य सरकारें एक वित्त आयोग गठित करेंगी जो राज्य और परिषदों के बीच करों के बंटवारे और अनुदानों को लेकर सिफारिशें देगा.

इसके अलावा सभी प्रकार की परिषदों के चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी राज्य चुनाव आयोग को सौंपे जाने की बात भी इस विधेयक में की गई थी.

हालांकि ये सभी प्रावधान अभी विधेयक के प्रारूप का हिस्सा थे और संसद द्वारा पारित नहीं किए गए हैं. इसका अर्थ यह है कि इन प्रस्तावों में से अंतिम रूप में क्या शामिल किया जाएगा यह संसद की आगामी कार्यवाही और संभावित संशोधनों पर निर्भर करेगा.

छठी अनुसूची क्या है?

छठी अनुसूची, संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के तहत पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों को विशेष स्वशासन और सांस्कृतिक संरक्षण देने का प्रावधान करती है.

इसके अंतर्गत गठित स्वायत्त जिला परिषदें (ADCs) सीमित विधायी, कार्यकारी और न्यायिक अधिकारों के साथ काम करती हैं.

125वें संशोधन विधेयक को लेकर सरकार की हालिया सक्रियता यह संकेत देती है कि वह इसे फिर से संसद में प्रस्तुत कर सकती है. लेकिन जब तक विधेयक पारित नहीं होता तब तक यह स्पष्ट नहीं है कि उसमें क्या-क्या प्रावधान अंतिम रूप से शामिल होंगे.

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