राजस्थान के बांसवाड़ा के सांसद राजकुमार रोत (Rajkumar Roat) ने बुधवार को राज्य के आदिवासी उपयोजना (TSP) क्षेत्रों से आदिवासी युवकों के पलायन पर चिंता जताते हुए इसे राज्य और केंद्र सरकार की आदिवासी कल्याण नीतियों की ‘गंभीर निंदा’ बताया.
उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस की पूर्व संध्या पर जारी एक बयान में इस मुद्दे को उठाया.
बाद में टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया कि आदिवासी पुरुष, जिनमें किशोर से लेकर मध्यम आयु वर्ग के लोग शामिल हैं. वो बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और आसपास के इलाकों में अपने घरों को छोड़कर गुजरात के औद्योगिक क्षेत्रों, महाराष्ट्र के निर्माण स्थलों और मध्य प्रदेश के खेतों में काम करने के लिए जा रहे हैं. जहां उन्हें अक्सर शोषणकारी और कम वेतन वाली परिस्थितियों में काम करना पड़ता है.
रोत ने आदिवासी जिलों में आर्थिक संकट के मूल कारणों को संबोधित करने में प्रणालीगत विफलता की चेतावनी देते हुए कहा, “यह अवसर से प्रेरित प्रवास नहीं है बल्कि हताशा से उपजा पलायन है.”
उन्होंने जोर देकर कहा कि हर साल 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस पर केंद्र और राज्य सरकारें बड़े-बड़े वादे करती हैं फिर भी आदिवासी युवा वर्कफोर्स के सबसे शोषित और उपेक्षित वर्गों में से हैं.
पीएम-जनमन, मनरेगा और राज्य द्वारा संचालित रोजगार पहल जैसी प्रमुख जनजातीय योजनाओं के कार्यान्वयन में गंभीर खामियों और अंतर की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “योजनाएं आधिकारिक प्रस्तुतियों में प्रभावशाली दिखती हैं लेकिन उन्हें शायद ही कभी स्थानीय जनजातीय वास्तविकताओं के अनुरूप बनाया जाता है.”
सांसद रोत ने कहा कि आदिवासी युवाओं के लिए पलायन हमेशा आखिरी विकल्प होता है, क्योंकि उनके गांवों में रोजगार के अवसर, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और बुनियादी आजीविका सहायता का अभाव होता है.
उन्होंने इस तरह के पलायन के होने वाले लॉन्ग-टर्म नुकसानों पर चिंता व्यक्त की. जिनमें परिवारों का विघटन, बाल श्रम, स्वास्थ्य जोखिम, तस्करी और शोषण की आशंका शामिल है.
उन्होंने कहा, “हमारे आदिवासी युवा सिर्फ़ अपने घर ही नहीं छोड़ रहे हैं. वे अपनी पहचान, अपनी संस्कृति और अक्सर अपनी उम्मीदें भी छोड़ रहे हैं.”
तत्काल सुधारों की मांग करते हुए रोत ने टीएसपी जिलों के लिए एक व्यापक, क्षेत्र-विशिष्ट रोजगार खाका तैयार करने की मांग की. जो घर-आधारित आजीविका सृजन, वन-आधारित उद्योग, पारंपरिक शिल्प, स्किल डेवलपमेंट और टिकाऊ कृषि पर केंद्रित हो.
रोत ने कहा, “अगर हम वास्तव में श्रम दिवस का सम्मान करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत के सबसे कमजोर श्रमिक, हमारे आदिवासी युवा, अपने गांवों में सम्मान के साथ रह सकें और काम कर सकें.”