HomeIdentity & Lifeआदिवासी बस्ती ने आईआईटी बॉम्बे द्वारा जारी बेदखली नोटिस को दी चुनौती

आदिवासी बस्ती ने आईआईटी बॉम्बे द्वारा जारी बेदखली नोटिस को दी चुनौती

भंगसिला ग्रामसभा और IIT बॉम्बे के बीच ज़मीन को लेकर संघर्ष अब गहरा हाने लगा है. आदिवासियों ने संस्थान के बेदखली नोटिस का सख़्त कानूनी जवाब देते हुए दावा किया है कि वे छह पीढ़ियों से इस ज़मीन पर रह रहे हैं और यह उनकी पारंपरिक व सांस्कृतिक भूमि है. ग्रामसभा का आरोप है कि बिना किसी सलाह-मशविरे के ज़मीन अधिग्रहण किया गया जो सीधे-सीधे आदिवासी अधिकारों और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है.

महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले के शाहपुर तालुका स्थित भंगसिला ग्रामसभा ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (IIT Bombay) द्वारा भेजे गए ‘बेदखली नोटिस’ को कानूनी जवाब दिया है.

यह नोटिस जनवरी 2025 में IIT Bombay द्वारा भेजे गए ज़मीन खाली करने के नोटिस (जमीन खाली करने हेतु भेजा गया आदेश) के जवाब में भेजा गया है.

IIT बॉम्बे ने अपने नोटिस में 2 जनवरी 2025 के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा था कि गांव के लोग जिस ज़मीन पर बसे हैं सर्वे नंबर 22 और CTS नंबर 67 के अनुसार वह ज़मीन संस्थान की है. आदिवासी वहां अवैध कब्ज़ा करके रह रहे हैं.

IIT बॉम्बे ने यह भी कहा था कि अगर ज़मीन नहीं खाली की गई तो कानूनी तरीके से जबरन हटाया जाएगा.

भंगसिला ग्रामसभा की कानूनी दलील

ग्राम सभा ने अपने नोटिस में आईआईटी बॉम्बे के दावे को कानूनन गलत करार दिया है और कहा है कि कोर्ट का आदेश उन पर लागू नहीं होता.

साथ ही आईआईटी बॉम्बे से मांग की गई है कि वह अपना खाली कराने का आदेश वापस ले.

ग्रामसभा ने इसे संविधान, पर्यावरण कानूनों और आदिवासी अधिकारों का उल्लंघन बताया है.

भंगसिला ग्रामसभा ने IIT बॉम्बे को जवाबी पत्र भेजते हुए यह दावा किया है कि जिस भूमि पर संस्थान दावा कर रहा है, वह ग्राम समुदाय की पारंपरिक और सामूहिक संपत्ति है.

ग्रामसभा के मुताबिक वे इस ज़मीन का उपयोग लंबे समय से खेती, जंगल उत्पाद और जीविका के उद्देश्य से करते आ रहे हैं.

ग्रामसभा ने अपने जवाब में साफ शब्दों में लिखा है कि “यह ज़मीन हमने किसी को नहीं दी और कोई भी संस्था हमारी अनुमति के बिना इसका उपयोग नहीं कर सकती.”

खतरे में 90 आदिवासी परिवारों की ज़मीन

भंगसिला पाड़ा में करीब 90 आदिवासी घर हैं. यह ज़मीन आरे कॉलोनी का हिस्सा है और विहार झील के पास स्थित है.

गांव की सरपंच मीना रावते ने बताया कि वहां रहने वाले लोग छ पीढ़ियों से वहीं रह रहे हैं. ट

उन्होंने कहा कि उनके पास पूर्वजों के स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र, BMC स्कूलों के रिकॉर्ड और BMC में नौकरी करने वाले कई लोगों के पहचान पत्र हैं.

राजश्री पारब नाम की महिला बताती हैं कि ज़मीन विवाद के चलते अब उनके शौचालय तोड़ दिए गए हैं और लोग खुले में या रात में शौच के लिए मजबूर हैं. उन्होंने बताया कि इलाके में तेज़ी से बढ़ते तेंदुओं का डर भी बना रहता है.

गांव में रहने वाले एक किसन का कहना है, “हमें मीरा रोड में SRA फ्लैट दिए जा रहे हैं, लेकिन यह हमारा घर है. हम झुग्गी में नहीं रहते, हमें अतिक्रमी क्यों कहा जा रहा है?”

2011 से जारी है ज़मीन पर विवाद

मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) ने 2011 में इस ज़मीन को आईआईटी बॉम्बे को सौंपा था.

उस समय आईआईटी बॉम्बे ने जोगेश्वरी-विक्रोली लिंक रोड (जेवीएलआर) के चौड़ीकरण के लिए अपनी ज़मीन एमएमआरडीए को दी थी. इसके बदले में एमएमआरडीए ने उन्हें यह ज़मीन आवंटित की.

यह ज़मीन विवाद उसी समय शुरू हो गया था क्योंकि इस ज़मीन पर पहले से ही भंगसिला गांव के आदिवासी रह रहे थे. गांव वालों का दावा है कि वे ब्रिटिश काल से इस ज़मीन पर बसे हुए हैं.

गांव के लोग कहते हैं कि 2011 से अब तक उन्हें बार-बार ज़मीन खाली करने के नोटिस भेजे जा चुके हैं.

उन्होंने कई बार सरकारी दफ्तरों में अपनी बात रखी लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं हुआ है.

IIT बॉम्बे ने क्यों भेजा था ‘बेदखली नोटिस’?

IIT बॉम्बे को ठाणे जिले के शाहपुर तालुका में एक नया परिसर विकसित करने के लिए ज़मीन आवंटित की गई थी.

इसके लिए प्रशासन ने गांव की लगभग 60 हेक्टेयर से अधिक भूमि संस्थान के नाम कर दी थी. लेकिन जब ग्रामसभा ने इस पर आपत्ति जताई और ज़मीन पर अपने अधिकारों का दावा करते हुए विरोध किया तब IIT बॉम्बे ने ग्रामसभा को जनवरी में ज़मीन खाली करने के लिए एक नोटिस भेजा. इस नोटिस में ग्रामवासियों से तुरंत यह भूमि खाली करने के लिए कहा गया.

IIT बॉम्बे के प्रवक्ता ने कहा, “हम कोर्ट के आदेश के अनुसार काम कर रहे हैं और पुनर्वास के लिए लोगों को घर उपलब्ध कराने की पेशकश कर रहे हैं.”

ग्रामसभा ने अपने जवाब में कहा है कि उन्हें भेजा गया नोटिस पूरी तरह से गैरकानूनी है.

भंगसिला ग्रामसभा ने कहा कि ना तो भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में ग्रामसभा से सलाह ली गई और ना ही किसी प्रकार की सहमति प्राप्त की गई.

जवाबी नोटिस में कहा गया है कि यह सीधा-सीधा पेसा कानून,1996 और वन अधिकार अधिनियम, 2006 और अनुसूचित जनजाति व अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम का उल्लंघन है.

ग्रामसभा का कहना है कि वह अपनी ज़मीन और अधिकारों की रक्षा के लिए हर कानूनी और लोकतांत्रिक रास्ता अपनाएगी.

वे पहले ही स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन दे चुके हैं और अब IIT बॉम्बे को भी लिखित जवाब भेजकर चेताया है कि जबरदस्ती जमीन हड़पने की कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

ग्रामसभा ने महाराष्ट्र सरकार, ज़िला प्रशासन और पर्यावरण मंत्रालय से मांग की है कि इस ज़मीन पर कोई भी निर्माण कार्य की कोशिश को तुरंत रोका जाए और ग्रामसभा के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता दी जाए.

ग्रामसभा ने सीधे – सीधे कहा है कि अगर उनकी मांगों को अनसुना किया गया तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे.

(Image is for representation purpose only) 

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