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महाराष्ट्र सरकार ने एक बार फिर लाडकी बहिन योजना के लिए आदिवासी विभाग के फंड में की कटौती

महाराष्ट्र सरकार ने सामाजिक न्याय और आदिवासी विकास विभागों से अपनी प्रमुख लाडकी बहिन योजना में 746 करोड़ रुपये को ट्रांसफर किया है. जिससे वित्तीय तनाव के बीच कानूनी चिंताएं पैदा हो गईं.

महाराष्ट्र सरकार द्वारा चलाई जा रही लाडकी बहन योजना (Ladki Bahin Scheme) के लिए वित्तीय व्यवस्था करते हुए सरकार ने दो प्रमुख विभागों – आदिवासी विकास विभाग और सामाजिक न्याय विभाग की निधियों से बड़ी राशि डाइवर्ट कर दी है.

इस कदम ने सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन के भीतर तनाव को बढ़ा दिया है. साथ ही सरकार के इस कदम ने एक बार फिर से लाडकी बहिन योजना के कारण राज्य के वित्त पर पड़ने वाले बोझ को उजागर किया है.

यह पुनर्आवंटन 2025-26 के राज्य बजट में योजना के लिए पहले से निर्धारित 36 हज़ार करोड़ रुपये का पूरक है, जो कुल 7.20 लाख करोड़ रुपये के बजट का लगभग 5 फीसदी है.

शुक्रवार को घोषित इस निर्णय में सामाजिक न्याय विभाग के आवंटित 3,960 करोड़ रुपये से 410.30 करोड़ रुपये और आदिवासी विकास विभाग के आवंटित 3,240 करोड़ रुपये से 335.70 करोड़ रुपये इस योजना में ट्रांसफर किया गया है.

यह पहली बार नहीं है जब इन विभागों के फंड में कटौती की गई है. इस कदम को लेकर सवाल उठने लगे हैं कि क्या सामाजिक रूप से पिछड़े और आदिवासी समुदायों के कल्याण की कीमत पर सरकार जनहित योजनाओं का खर्च निकाल रही है.

इन विभागों की कई योजनाएं हैं, जैसे आदिवासी छात्रावास, छात्रवृत्ति, सामाजिक सुरक्षा पेंशन और शैक्षणिक सहायता पहले से ही सीमित संसाधनों के चलते प्रभावित हो रही हैं.

हालांकि, सरकार का दावा है कि डायवर्टेड फंड से सिर्फ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लाडकी बहन योजना के लाभार्थियों को लाभ मिलेगा.

लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इसके लिए दूसरे कल्याणकारी विभागों के बजट में कटौती की जाती रही, तो यह लंबे समय में सामाजिक असंतुलन को जन्म दे सकता है.

लाडकी बहिन योजना पर विवाद

दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले महायुति सरकार ने मुख्यमंत्री लाडकी बहिन योजना शुरू की. तब सरकार ने लाडली बहनों को हर माह 1500 रुपये देने का निर्णय लिया. वहीं चुनाव प्रचार के दौरान यह रकम बढ़ाकर 2100 करने का वादा इस सरकार ने किया था.

यह योजना महायुति गठबंधन की सत्ता में वापसी सुनिश्चित करने में सहायक रही. हालांकि, इसके वित्तीय बोझ ने राज्य की राजनीति पर हावी हो गया और महाराष्ट्र के खजाने पर दबाव डाला.

इस योजना के लिए शुरू में 46,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. हालांकि, इस साल के बजट में योजना के आवंटन को घटाकर 36 हज़ार करोड़ रुपये कर दिया गया. सरकार ने दावा किया कि उसने कार्यक्रम को बनाए रखने के लिए राजकोषीय अनुशासन हासिल कर लिया है.

लेकिन हाल ही में फंड का डायवर्जन एक अलग कहानी बयां करता है, जो राज्य की वित्तीय प्राथमिकताओं के बारे में चिंता पैदा करता है.

महायुति के कई मंत्रियों ने पहले कहा था कि योजना की मांगों के कारण अन्य विभागों को महत्वपूर्ण फंडिंग नहीं मिल पा रही है. फंड के पुनर्आवंटन ने सत्तारूढ़ महायुति भागीदारों के बीच कलह को जन्म दिया है.

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश अबितकर ने कहा कि योजना की शुरुआत से ही अन्य विभागों को नुकसान हो रहा है.

वहीं शिवसेना नेता और सामाजिक न्याय मंत्री संजय शिरसाट ने सरकार की कड़ी आलोचना की और राज्य के वित्त मंत्री अजित पवार पर इस धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया.

उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि, ‘अगर सरकार को समाज कल्याण विभाग की जरूरत नहीं है, तो उसे इसे बंद कर देना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि इस तरह से धन का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता.

आदिवासी विभाग की निधि में कटौती

लाडकी बहिन योजना की करीबन 2 करोड़ 34 महिलाए लाभार्थी हैं. हर महीने की किस्त देने में सरकार की कई सारी योजनाओं पर असर पड़ रहा है. हाल ही हुए बजट सत्र में आदिवासी विभाग की निधि में 4,000 करोड़ रुपये और सामाजिक न्याय विभाग की निधि में 3,000 करोड़ रुपये की कटौती की गई.

यह विवाद लाडकी बहिन योजना को जारी रखने की चुनौती और इस योजना के कारण राज्य के खजाने पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ को रेखांकित करता है. दूसरी ओर इस योजना के जनक एकनाथ शिंदे कह रहे हैं कि लाडकी बहिन योजना बंद नहीं होने देंगे, पर शिंदे की सरकार लाडली बहनों को समय पर पैसा नहीं दे पा रही है.

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