तेलंगाना के कोथागुडेम जिला के आदिवासी किसान एक बड़ी समस्या से जूझ रहे हैं. दरअसल एजेंसी मंडलों में अलग-अलग नामों से नकली जैव कीटनाशकों ( Bio-pesticides) की उपलब्धता और बिक्री आदिवासी किसानों के लिए आर्थिक दुःस्वप्न में बदल रही है.
करीब सभी उर्वरक दुकानें जैव-कीटनाशक बेचती हैं और उनमें से ज्यादातर नकली उत्पाद हैं क्योंकि वे नीम के तेल फॉर्मूलेशन और बैसिलस थुरिंगिनेसिस गैलेरिया से बने होते हैं.
लेकिन आदिवासी किसान उन नकली उत्पादों को असली समझकर लाखों रुपये खर्च कर रहे हैं. वहीं कीटनाशकों में भारी लाभ मार्जिन को देखते हुए दूर-दराज के गांवों में भी उर्वरक की दुकानें खुल गई हैं. भद्राद्री जिले के पिनापका, गुंडाला, अल्लापल्ली, तेकुलापल्ली और मुलकालापल्ली मंडलों में ऐसा अधिक है.
दरअसल डीलर आदिवासी किसानों के बीच तकनीकी ज्ञान की कमी का फायदा उठा रहे हैं. क्योंकि किसान नकली और गुणवत्ता वाले जैव कीटनाशकों की पहचान नहीं कर सकते हैं. वो सिर्फ डीलरों पर भरोसा करते हैं.
हालांकि इस तरह के नकली कीटनाशकों की जांच करना कृषि अधिकारियों का काम है. लेकिन क्षेत्रिय स्तर पर ऐसी कोई कोशिश नहीं की जाती है. बायोपेस्टिसाइड, कैनोला ऑयल और बेकिंग सोडा सभी अलग-अलग फर्जी नामों से उपलब्ध हैं.
पिनापाका में एक किसान नेता, सदुम वीरैया ने कहा कि हमें सूचित किया गया था कि कीड़ों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाले जैव-कीटनाशकों से अच्छे परिणाम नहीं मिल रहे हैं. सरकार को बाजार में प्रवेश करने से पहले ही जैव कीटनाशकों की अच्छी तरह से जांच करनी चाहिए. आरोप हैं कि कुछ कंपनियां कई तरह के तेलों को मिलाकर नकली उत्पाद तैयार कर रही हैं.
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि ये उत्पाद छोटे शेड से काम करने वाली लाइसेंस प्राप्त कंपनियों से आ रहे हैं या नहीं. बागवानी अधिकारी संदीप कुमार ने कहा, “बाजार में आने से पहले रासायनिक कीटनाशक या जैव-कीटनाशक उत्पाद के बीजाणुओं की संख्या, प्रभावकारिता और दक्षता की जाँच की जानी चाहिए. किसान सिर्फ डीलर पर भरोसा करते हैं.”