भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समुदायों का योगदान अक्सर इतिहास में उतनी प्रमुखता से नहीं दर्ज हुआ जितना होना चाहिए था.
इतिहास में वायनाड के कुरिच्या जनजातियों का योगदान अद्वितीय और अविस्मरणीय रहा है, लेकिन इस जनजाति के योगदान को उचित स्थान नहीं मिला.
इसी तरह इस जनजाति के एक महान योद्धा तलक्कल चंदू को भी इतिहास में वह स्थान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था.
तलक्कल चंदू केरल के वायनाड जिले के तोषूरनाड में जन्मे थे और कुर्चिया जनजाति से संबंध रखते थे.
उन्होंने अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचारों का विरोध किया और अपने समुदाय की रक्षा के लिए संघर्ष करते रहे.
अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत
वायनाड के कणियाम्बेट्टा नामक स्थान को चन्दू ने क्रांति-केंद्र बनाया था.
वे मातृभूमि के लिये संपूर्ण रूप से वचनबद्ध थे. अंग्रेजों ने पनमरम किले को केंद्र बनाकर वहां अपनी सैनिक छावनी स्थापित की थी.
अंग्रेज़ स्थानीय लोगों से जोर-जबरदस्ती लगान और धान वसूलते थे.
जब एक दिन सिपाहियों ने कुरिच्या गांव में जाकर ज़ोर – ज़बरदस्ती लोगों को धमकाकर धान एकत्रित करना शुरू किया तब सिपाही और कुरिच्यों के बीच झगड़ा होने लगा.
क्रांतिकारियों ने कंपनी के एक सिपाही को वहीं मार डाला और फिर तलक्कल चंदू के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने पनमराम किले पर हमला किया.
योजना के अनुसार इस किले से आठ किलोमीटर दूरी पर मुलिंजाल नामक स्थान पर रहने वाली छावनी के तीन सौ साठ अंग्रेज सिपाही भी पनमरम किले पर क्रांतिकारियों के आक्रमण को रोक न सके.
क्रांतिकारियों ने तलक्कल चंदू के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों को पराजित करके, ब्रिटिश शासन को हिला दिया.
कुर्चिया जनजाति का योगदान और संग्राम की रणनीति
तलक्कल चंदू ने कुर्चिया जनजाति के योद्धाओं को संगठित किया और उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार किया.
उनकी युद्ध रणनीति गुरिल्ला युद्ध पर आधारित थी जिसमें जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों का लाभ उठाकर अंग्रेजी सेना को कमजोर करना शामिल था.
तलवार, धनुष-बाण और पारंपरिक हथियारों से लैस हजारों क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की सेना को चुनौती दी और लंबे समय तक उन्हें वायनाड में प्रवेश करने से रोके रखा.
अंग्रेजों की साजिश और तलक्कल चंदू की शहादत
लंबे संघर्ष के बावजूद अंग्रेज सीधे युद्ध में तलक्कल चंदू और उनके साथियों को हरा नहीं पाए.
उन्होंने एक साजिश रचकर तलक्कल चंदू के एक संबंधी कारक्कोट घराने के केलप्पन को अपनी तरफ कर लिया और धोखे से तलक्कल चंदू को गिरफ्तार कर लिया. 15 नवंबर 1805 को, अंग्रेजों ने उन्हें पनमराम किले में फाँसी दे दी.
इतिहास में तलक्कल चंदू का योगदान
आज तलक्कल चंदू का नाम केरल और वायनाड की जनजातीय बहादुरी का प्रतीक है.
उनका संघर्ष यह दर्शाता है कि जनजातीय समुदायों ने भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसे उचित सम्मान दिया जाना चाहिए.