माओवादी गतिविधियों के कारण बीस साल से भी ज़्यादा वक्त तक विस्थापन के बाद करीब 25 आदिवासी परिवार छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में अपने मूल गांव में लौटने की तैयारी कर रहे हैं.
2003 में इन परिवारों के करीब 100 लोगों को नक्सली धमकियों के कारण अबूझमाड़ में स्थित गारपा गांव में अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था. इसके बाद वे नारायणपुर शहर के पास सरकारी ज़मीन पर बस गए, जहां उन्होंने खेती-किसानी की.
अपने पैतृक गांव की हाल ही में यात्रा करने और सुरक्षा सुनिश्चित करने और विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए एक पुलिस शिविर की स्थापना के बाद ये परिवार अब 21 साल की अनुपस्थिति के बाद अपनी वापसी की योजना बना रहे हैं.
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के साथ सीमा साझा करने वाला अबूझमाड़ पहले नक्सलियों का गढ़ था. लेकिन 4 अक्टूबर को सुरक्षा बलों ने क्षेत्र में एक ऑपरेशन के दौरान 31 नक्सलियों को बेअसर करके एक महत्वपूर्ण जीत हासिल की.
60 वर्षीय सुक्कुरम नुरेटी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा, “पैतृक भूमि छोड़ना कभी आसान नहीं था. हमारे पास अपनी जान बचाने के लिए भागने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.”
नुरेटी, जो असुरक्षित अबूझमाड़िया आदिवासी समूह से हैं, अप्रैल 2003 में गारपा छोड़ने वाले 25 परिवारों में से एक थे. उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने ‘गायत्री परिवार’ प्रथाओं का पालन करते हुए परिवारों को धमकाया था.
पिछले आठ महीनों में गारपा, कस्तूरमेटा, मस्तूर, इरकभट्टी, मोहंती और होराडी गांवों में पुलिस शिविरों की स्थापना ने अबूझमाड़ में सुरक्षा को मजबूत किया है. गारपा शिविर 22 अक्टूबर को स्थापित किया गया था.
सरकार की नियाद नेल्लनार योजना सुरक्षा शिविरों के 5 किलोमीटर के भीतर विकास परियोजनाओं को लागू कर रही है.
नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार के मुताबिक, ग्रामीण अब सड़क, मोबाइल टावर, स्वास्थ्य सुविधाओं और स्कूलों जैसी बुनियादी सुविधाओं का अनुरोध कर रहे हैं.
हाल के घटनाक्रमों में प्रमुख सचिव निहारिका बारिका का अबूझमाड़ के पांच गांवों का दौरा शामिल है, जहां उन्होंने विभिन्न विकास परियोजनाओं का निरीक्षण किया.
करीब 4,000 वर्ग किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र में सुरक्षा की बढ़ती मौजूदगी और चल रही विकास पहलों के कारण माओवादी गतिविधि में कमी आई है.
अधिकारियों की रिपोर्ट के मुताबिक सुरक्षा और विकास पर संयुक्त ध्यान के परिणामस्वरूप अबूझमाड़ के करीब आधे हिस्से तक सड़क पहुंच संभव हो गई है और 18 महीने के भीतर नारायणपुर को गढ़चिरौली और छोटेबेठिया से जोड़ने की योजना है.