छत्तीसगढ़ के बस्तर के अंतर्गत बीजापुर जिले के जंगल में माओवादियों ने दो आदिवासियों को पुलिस के लिए जासूसी करने के आरोप में सरेआम फांसी पर लटका दिया. यह बर्बरता स्थानीय आबादी में दहशत पैदा करने के इरादे से की गई.
उनकी शर्ट पर लगे पर्चे में उन पर पुलिस मुखबिर के तौर पर काम करने का आरोप लगाया गया है.
हालांकि, जिले के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने इस बात से इनकार किया कि मारे गए दोनों आदिवासियों का पुलिस से कोई लेना-देना था.
पुलिस के मुताबिक, मंगलवार को बीजापुर जिले के मिरतुर पुलिस थाने के अंतर्गत जप्पेमरका गांव से माओवादियों ने एक छात्र समेत तीन लोगों का अपहरण कर लिया था.
गांव के पास जंगल में माओवादियों की ‘जन अदालत’ (कंगारू कोर्ट) में उन्हें पेश किया गया, जहां आसपास के गांवों के सैकड़ों आदिवासी मौजूद थे.
उनमें से दो, माधवी सुजा और पोडियम कोसा को अदालत ने पुलिस मुखबिर घोषित किया और फिर स्थानीय आदिवासियों की मौजूदगी में उन्हें पेड़ पर लटका दिया.
हालांकि, माओवादियों ने छात्र को पुलिस के लिए जासूसी न करने की चेतावनी देने के बाद छोड़ दिया.
बाद में माओवादियों ने मारे गए दोनों आदिवासियों के शव उनके परिजनों को सौंप दिए और उन्हें चेतावनी दी कि वे घटना के बारे में पुलिस को न बताएं.
जिस गांव में घटना हुई है वो घने जंगल में 15 किलोमीटर अंदर है. यह इलाका उग्रवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित है.
एक वरिष्ठ जिला पुलिस अधिकारी ने कहा, “हमें घटना की जानकारी मिली है. हम इसकी जांच कर रहे हैं.”
माओवादी आमतौर पर आसपास के इलाकों के ग्रामीणों को जंगल में एक खास जगह पर इकट्ठा होने के लिए मजबूर करते हैं, जहां वे अपने निशाने पर आए लोगों को मौत के घाट उतारने के लिए कंगारू अदालत शुरू करते हैं.
माओवादियों की भैरमगढ़ एरिया कमेटी ने दोनों आदिवासियों की हत्या की जिम्मेदारी ली है.
दरअसल, सुरक्षा बलों द्वारा घेर लिए जाने के बाद माओवादी ग्रामीणों पर लगातार हमला कर रहे हैं. माओवादियों ने पीड़ितों की भयावह तस्वीरें भी जारी कीं, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं.
माओवादी आमतौर पर स्कूली बच्चों या नाबालिगों को निशाना नहीं बनाते हैं लेकिन इस साल उन्होंने सुकमा जिले में एक हफ्ते के अंतराल पर दो किशोर भाइयों की बेरहमी से हत्या कर दी.
स्थानीय लोगों का कहना है कि माओवादियों ने उन बच्चों के प्रति गहरा अविश्वास विकसित कर लिया है जो पढ़ाई के लिए छात्रावासों में रहते हैं. उन्हें संदेह है कि सुरक्षा बलों ने उन्हें अपने-अपने गांवों में माओवादी गतिविधियों के बारे में इनपुट और अपडेट भेजने के लिए मोबाइल फोन दिए हैं.
जब भी माओवादियों को किसी बच्चे के पास मोबाइल फोन मिलता है तो वे आमतौर पर मैसेज की जांच करते हैं और अगर कोई संदिग्ध लगता है तो वे उनके साथ बर्बरता करते हैं.
पुलिस का कहना है कि बस्तर में माओवादी गहन सुरक्षा हमलों के कारण बैकफुट पर हैं और हताशा में निर्दोष ग्रामीणों को निशाना बना रहे हैं. सुरक्षा बलों ने इस साल 201 माओवादियों को मार गिराया है.