छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के दूरदराज के इलाके में बसे महुआपानी गांव को आज़ादी के बाद पहली बार बिजली कनेक्शन मिला है.
जिला मुख्यालय से करीब 85 किलोमीटर दूर पहाड़ी इलाके में घने जंगल में बसा यह गांव पहाड़ी कोरवा जनजाति के 100 से ज्यादा परिवारों का घर है. पहाड़ी कोरवा, विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (PVTG) है.
इस परियोजना को प्रधानमंत्री जनमन योजना के तहत क्रियान्वित किया गया है, जो 14 नवंबर को PVTG बस्तियों के समग्र विकास के लिए शुरू की गई योजना है.
इसके अलावा, इस योजना के तहत उत्तर छत्तीसगढ़ में पहाड़ी कोरवा समुदाय की कुल 54 बस्तियों को सड़कों से जोड़ा जाएगा.
दरअसल, 2018 में महुआपानी के करीब 45 परिवारों को सौर ऊर्जा मिली थी. लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण ग्रामीण निर्बाध बिजली आपूर्ति की मांग कर रहे थे.
बिजली कनेक्शन से सरकार समुदाय के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, संचार और रोजगार में बेहतर सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम होगी.
जिला प्रशासन को उम्मीद है कि निकट भविष्य में इंटरनेट सेवाएं इस जनजाति को दुनिया से जुड़ने में मदद करेंगी.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए आदिवासी, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक विकास विभागों के प्रमुख सचिव सोनमनी बोरा ने कहा, “छत्तीसगढ़ के 18 जिलों में पांच पीवीटीजी – बैगा, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, अभुजमरिया और कमार के लिए पीएम जनमन को लागू किया जा रहा है. पहचान की गई 11 महत्वपूर्ण योजनाओं में से ज्यादातर हम अनुमोदन में संतृप्ति के करीब हैं और गांवों में कार्यान्वयन में पूरी सरकारी दृष्टिकोण अपनाया जाता है ताकि कोई भी नागरिक पीछे न छूटे.”
पहाड़ी कोरवा जनजाति
पहाड़ी कोरवा (Pahari korwa), कोरवा आदिवासी की उपजनजाति मानी जाती है. पहाड़ी कोरवा आदिवासी अक्सर पहाड़ों के उपर घर बनाते थे. शायद इसलिए इन्हें पहाड़ी कोरवा कहा गया है.
पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ की सबसे पुरानी और मूल जनजातियों में से एक है. उनकी जीवनशैली जंगलों और पहाड़ों पर निर्भर करती है. गांव के लोग शिकार, औषधीय जड़ी-बूटियां इकट्ठा करने और पारंपरिक कृषि करके अपनी आजीविका चलाते हैं.
पहाड़ी कोरवा आदिवासी छत्तीसगढ़ (Tribes of chattisgarh) के सरगुजा, बलरामपुर, जशपुर और कोरबा के पहाड़ियों और जंगलों में रहते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक इनकी कुल जनसंख्या 44 हज़ार 26 हैं.
पहाड़ी कोरवा की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से जंगलों से मिलने वाले उत्पादन पर निर्भर है. यह आदिवासी वन उपज जैसे महुआ, तेन्दुपत्ता, शहद और लाख, हर्रा, बेहड़ा आदि का संग्रहण करते हैं.