तमिलनाडु के तिरुवल्लूर ज़िले की कडंबत्तूर पंचायत के पास एक आदिवासी बस्ती में छह साल के लंबे इंतज़ार के बाद पीने का साफ़ पानी पहुंच गया है. इस बस्ती में 23 इरुला आदिवासी परिवार रहते हैं.
ज़िला कलेक्टर डॉ एल्बी जॉन ने बस्ती के निवासियों के लिए एक टंकी बनवाई है, जिसमें टैंकर के माध्यम से पानी की आपूर्ति की जाएगी. इसके अलावा एक बोरवेल की सुविधा भी की गई है.
इलाक़े के मुख्य गांवों से कई किलोमीटर दूर यह इरुला आदिवासी नदी के किनारे रहते हैं. यह लोग पानी के लिए एक झरने पर निर्भर हैं. लेकिन यह झरना काफ़ी प्रदूषित है, और जानवर भी इसका इस्तेमाल करते हैं.
इस झरने में कीड़े और मच्छर होते हैं. इसलिए आदिवासी पहले पानी को एक कपड़े से छानते हैं, और उसके बाद इसे इस्तेमाल करते हैं.
राज्य आदिवासी एसोसिएशन के तिरुवल्लूर ज़िला सचिव एम तमिलरासन, जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से भी जुड़े हैं, ने कहा कि वह पिछले तीन सालों से इस मुद्दे को उठा रहे हैं.
ज़िले के अलग-अलग हिस्सों से पलायन करने वाले इरुला आदिवासी फूस के घरों में रहते हैं, और उनके इलाक़े तक कोई पक्की सड़क भी नहीं है. न ही उनके पास बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल की कोई सुविधा है.
अब ज़िले के नए कलेक्टर की मदद से पानी यहां तक पहुंचा है. 24 घंटे पानी की आपूर्ति के लिए बोरवेल भी बनाया जा रहा है. इसके अलावा एक जल्द ही बिजली की आपूर्ति के लिए सोलर पैनल और शिक्षा के लिए एक ट्यूशन सेंटर की उम्मीद है.
इस बस्ती में पक्के घरों की भी ज़रूरत है. फ़िलहाल ज़्यादातर घर तिरपाल से ढके हैं.
एक अखबार से बात करते हुए कलेक्टर ने कहा कि आदिवासियों के लिए बेहतर आवास और दूसरी सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए जाएंगे.
उनका कहना है कि चूंकि यह आदिवासी नदी के किनारे की जमीन पर रहते हैं, उस पर घर नहीं बन सकते. लेकिन उनके लिए एक उपयुक्त जगह की पहचान कर, उनके घरों के निर्माण के लिए ज़मीन का पट्टा और ज़रूरी मदद दी जाएगी.