मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की वरिष्ठ नेता बृंदा करात (Brinda Karat) ने रविवार को आरोप लगाया कि खनिज भंडारों पर नजर रखने वाली घरेलू और विदेशी कंपनियां स्थानीय दलालों की मिलीभगत से झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासियों की जमीन लूट रही हैं.
बृंदा करात ने दावा किया कि यह संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम का उल्लंघन है. जो आदिवासी भूमि की सुरक्षा के लिए बनाया गया था. उन्होंने कहा कि यहां ग्राम सभाओं की अनदेखी कर रहा है.
माकपा के पोलित ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने यह बात दुमका में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही.
उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने नीलामी के जरिए सरकारी और निजी क्षेत्रों को कोयला ‘ब्लॉक’ आवंटित किए हैं.
उन्होंने आरोप लगाया कि दलालों का आतंक इतना है कि पचुआड़ा कोयला ब्लॉक के आसपास रहने वाले आदिवासी कम्पनियों के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते.
वहीं दूसरी ओर ईसीएल ने कोयला खनन का काम कई कंपनियों को आउटसोर्स कर दिया, जिन्हें न तो मजदूरों के हितों की परवाह है और न ही निजी भूस्वामियों के अधिकारों की.
उन्होंने आरोप लगाया कि ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ECL) ने किसानों की जमीन अधिग्रहित कर ली लेकिन मुआवजा, पुनर्वास और नौकरी देने का वादा पूरा नहीं किया.
पूर्व सांसद ने कहा कि ऐसे सैकड़ों मामले अभी भी लंबित हैं.
करात ने कहा कि बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा यहां के आदिवासियों की जमीन लूटी जा रही है. इसी संथाल परगना के गोड्डा में पावर प्लांट लगा है लेकिन यहीं के लोग बिजली के लिए तरस रहे हैं.
इस साल के आखिर में होने वाले झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा नेता संथाल परगना में आदिवासियों की घटती जनसंख्या और लुटती जमीन का मुद्दा जोर-शोर से उठा रही है.
वो चाहे गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे हो, पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा हो, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी हो या फिर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा हो.. ये सभी इस मुद्दे पर हेमंत सोरेन सरकार को घेरने में लगे हैं.
अभी हाल ही में बीजेपी ने इस मुद्दे के विरोध में अनुसूचित जनजाति मोर्चा की प्रखंड कमेटी के अध्यक्ष सिमोन बेसरा के नेतृत्व में जनाक्रोश महारैली निकाली थी.