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पातालकोट घाटी के भारिया आदिवासी किस हाल में हैं

पातालकोट के भारिया आदिवासी की जीवनशैली में काफ़ी बदलाव आया है. लेकिन क्या यह बदलाव सकारात्मक कहा जा सकता है?

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में स्थित पातालकोट एक गहरी और घने जंगलों से घिरी घाटी है. जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और वहां बसे जनजातीय समुदाय भारिया है.  पातालकोट की गहराई और दुर्गमता के कारण इस जनजाति का बाहर के लोगों के साथ लंबे समय तक सीमित संपर्क ही रहा था. 

लेकिन अब इस जनजाति का मुख्यधारा के साथ स्थाई संपर्क बन चुका है.भारिया जनजाति की जनसंख्या लगभग 3,000 से 5,000 के बीच है. ये लोग छोटे-छोटे गाँवों में बसे हुए हैं, जिन्हें ‘माल’ कहा जाता है. 

पातालकोट के  भारिया आदिवासियों के 12 मालों  यानि गांवों में रहते हैं. 

भारिया आदिवासी वन उत्पादों और परंपरागत फ़सलों पर निर्भर हैं. इस आदिवासी समुदाय के लोग मुख्यत मक्का, कोदो, कुटकी, और अन्य स्थानीय फसलें उगाई जाती हैं.  

इसके अलावा, ये लोग वन उत्पादों जैसे शहद, औषधीय जड़ी-बूटियाँ, और लकड़ी पर निर्भर रहते हैं. इस समुदाय के लोग जंगल से मिलने वाले उत्पादों को बाज़ार में बेचते भी हैं.

जंगल के बारे में पारंपरिक ज्ञान और औषधीय जड़ी-बूटियों का उपयोग भारिया जनजाति में व्यापक है. वे स्थानीय जड़ी-बूटियों और पौधों का उपयोग विभिन्न बीमारियों के उपचार में करते हैं. 

पातालकोट एक दुर्गम इलाका रहा है इसलिए यहां पर संपर्क और संचार के साधन ना के बराबर रहे हैं. यह भी एक बड़ा कारण रहा है कि भारिया समुदाय मुख्यधारा से दूर बना रहा है. इसके साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में भी यह इलाका पिछड़ा रहा है.

हाल ही में मध्य प्रदेश के जनजातीय मंत्री विजय शाह ने दावा किया कि अब पातालकोट के ज़्यादातर गांवों को सड़क मार्ग से जोड़ दिया है. उन्होंने यह दावा भी किया कि पातालकोट में भारिया आदिवासी समुदाय की ज़मीन की उत्पादकता बढ़ाने पर काम किया जा रहा है.

मध्य प्रदेश सरकार ने भारिया आदिवासी समुदाय के लोगों को परंपरागत खेती के साथ साथ पशुपालन के लिए प्रेरित करने की योजनाएं भी चलाई हैं. कुछ भारिया लोग अब पारंपरिक खेती के अलावा सरकारी नौकरियों, छोटे व्यापार, और अन्य व्यवसायों में भी जुड़ रहे हैं.

पातालकोट की भारिया जनजाति के विकास के बारे में मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार की कई योजनाओं का दावा किया जाता है. लेकिन भारिया समुदाय पर काम करने वाले कहते हैं कि इस जनजाति का भविष्य बहुत सुरक्षित नज़र नहीं आता है.

मसलन साल 2021 में शहडोल कॉलेज की प्रोफेसर दीप्ती सिंह ने अपने शोधपत्र में कहा है कि पातालकोट के भारिया समुदाय की हालत बेहद ख़राब है. इसके अलावा यहां के दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है.

इस समुदाय के शिक्षा स्तर के बारे में भी उनका शोधपत्र यह दावा करता है कि मुख्यधारा ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के अन्य आदिवासी समूहों की तुलना में भी भारिया जनजाति की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है.

भारिया जनजाति को मध्य प्रदेश में आदिम जनजाति यानि पीवीटीजी की सूचि में रखा गया है. इस लिहाज़ से पीएम – जनमन से लेकर कई अन्य विशेष योजनाओं के लभा के लिए भारिया पात्र हैं. लेकिन इन योजनाओं का ज़मीन पर कितना फ़ायदा हो रहा है इसका आकलन और निगरानी शायद नहीं है. 

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