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छत्तीसगढ़ आदिवासी कोटा बिल पर सरकार से सवाल पूछ रही थीं राज्यपाल, अब मंज़ूरी नहीं दे रही हैं

राज्य विधानसभा ने पिछले शुक्रवार को सर्वसम्मति से छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण) संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया था, जिससे राज्य में कुल आरक्षण कोटा 76 प्रतिशत हो गया है.

सभी की निगाहें छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके पर टिकी हैं, जिन्होंने पिछले शुक्रवार को विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित किए गए आरक्षण बिल पर अभी तक सहमति नहीं दी है. इसकी वजह से सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने देरी पर चिंता व्यक्त की है.

राज्य के पांच कैबिनेट मंत्रियों ने उसी दिन राज्यपाल को विधेयक सौंपा था, जिसके बाद उन्होंने राजभवन द्वारा कानूनी विशेषज्ञों की राय लेने के बाद निर्णय लेने का आश्वासन दिया था.

राजभवन के सूत्रों के अनुसार राज्यपाल ने सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव कमलप्रीत सिंह व को तलब किया था और ‘अगर विधेयक के अधिनियमन को न्यायालय में चुनौती दी जाती है  तो राज्य सरकार इसका सामना करने के लिए कैसे तैयार है इस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए चर्चा की’.

कैबिनेट मंत्री और राज्य सरकार के प्रवक्ता, रवींद्र चौबे ने कहा, “जब हमारे कैबिनेट सहयोगी पिछले शुक्रवार को राज्यपाल से मिले तो उन्होंने हमें बताया कि कानून अधिकारी छुट्टी पर हैं और इसलिए अगले सोमवार को अपनी सहमति देंगे. हम सिर्फ कानूनी राय लेने के आधार पर देरी को लेकर वास्तव में चिंतित हैं.”

राज्य विधानसभा ने पिछले शुक्रवार को सर्वसम्मति से छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण) संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया था, जिससे राज्य में कुल आरक्षण कोटा 76 प्रतिशत हो गया और आदिवासी कोटा 32 प्रतिशत हो गया.

संशोधन विधेयक में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) के लिए 32 फीसदी, अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes) के लिए 27 फीसदी, अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) के लिए 13 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 4 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया.

विपक्षी बीजेपी ने कहा कि कानूनी प्रावधानों के हर पहलू को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल निर्णय लेंगे. पार्टी ने कहा, “संविधान, नियम और कानून कांग्रेस पार्टी का विशेषाधिकार नहीं है.” बीजेपी के वरिष्ठ विधायक और प्रवक्ता बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि राज्यपाल राज्य में संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करता है और उसके अनुसार उचित निर्णय लेगा.

दरअसल, राज्य में आरक्षण का मुद्दा तब उठा, जब छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने गत सितंबर महीने में साल 2012 में जारी राज्य सरकार के सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण को 58 प्रतिशत तक बढ़ाने के आदेश को खारिज कर दिया. साथ ही कहा कि 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है. इस फैसले के बाद राज्य में जनजातियों के लिए आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है. राज्य में लगभग 32 प्रतिशत जनसंख्या जनजातियों की है.

इस मामले में यह स्पष्ट है कि आदिवासी आरक्षण बिल पर छत्तीसगढ़ी की राज्यपाल राजनीति से उपर उठ कर काम नहीं कर रही हैं. क्योंकि उन्होंने आदिवासी आरक्षण पर सरकार से सवाल पूछे थे.

उन्होंने मुख्यमंत्री से पूछा था कि आदिवासियों के आरक्षण की रक्षा के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है. लेकिन अब वो इस बिल को मंज़ूरी देने में देरी कर रही हैं.

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