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गुजरात के चुनाव परिणाम एक आदिवासी पार्टी के अंत की कहानी तो साबित नहीं होंगे

गुजरात के चुनाव परिणामों में यह स्पष्ट हो रहा है कि बीजेपी की बड़ी जीत में आदिवासी वोटर की बड़ी भूमिका है. इस परिणाम से भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) के अस्तित्व को ही ख़तरा पैदा हो गया है.

गुजरात चुनाव में बीजेपी एक ऐतिहासिक जीत की तरफ़ बढ़ रही है. राज्य की 182 में से बीजेपी फ़िलहाल 150 से ज़्यादा सीटों पर जीत हासिल करती नज़र आ रही है. कांग्रेस पार्टी को गुजरात में आज़ादी के बाद सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ रहा है. 

बीजेपी की जीत पर किसी को अचरज नहीं हो रहा है. गुजरात चुनाव से जुड़े सभी एग्ज़िट पोल यही बता रहे थे कि बीजेपी को राज्य विधान सभा चुनाव में आसान और बड़ी जीत मिल रही है. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी की जो सबसे बड़ी उपलब्धि आदिवासी इलाक़ों में मिल रही जीत कही जा सकती है.

1950 से लेकर 2017 के चुनाव तक कांग्रेस पार्टी की आदिवासी इलाक़ों में ज़बरदस्त पकड़ बनी रही थी. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी ने आदिवासी इलाक़ों में भी कांग्रेस को पराजित कर दिया है. कांग्रेस पार्टी के अलावा भारतीय ट्राइबल पार्टी(BTP) का वजूद भी ख़तरे में पड़ा हुआ नज़र आ रहा है.

भारतीय ट्राइबल पार्टी के नेता छोटुभाई से एक मुलाक़ात के दौरान ली गई तस्वीर

2017 के विधान सभा चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी से दो विधायक चुने गए थे. उसके बाद राजस्थान में भी भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायक जीतने में सफल रहे थे. इस जीत के बाद यह लग रहा था कि भारतीय ट्राइबल पार्टी गुजरात के अलावा अन्य राज्यों में भी अपना आधार बना सकती है.

इसी गुजरात चुनाव से पहले प्रोफ़ेसर बद्रीनारायण ने एक लेख में भारतीय ट्राइबल पार्टी का ज़िक्र करते हुए यह लिखा था कि अब आदिवासी आधार वाले राजनीतिक दलों का समय आ गया है. लेकिन लगता है उन्हें भी गुजरात के चुनाव परिणामों के बाद अपना आकलन सुधारना पड़ सकता है.

क्योंकि गुजरात के आदिवासियों ने बीजेपी को वोट दे कर एक राष्ट्रीय दल में ज़्यादा आस्था दिखाई है. भारतीय ट्राइबल पार्टी को जीत की बहुत उम्मीद रही भी नहीं होगी. क्योंकि विधान सभा चुनाव से तुरंत पहले हुए पंचायत के चुनावों में पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा था.

शायद यही कारण था कि 2017 में जीत हासिल करने वाले डेडियापाड़ा के विधायक और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश भाई वसावा ने अपनी सीट से चुनाव ही नहीं लड़ा था. उसके अलावा जिस तरह से पहले आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन की कोशिशें और बाद में उससे पीछे हट जाने से भारतीय ट्राइबल पार्टी की छवि काफ़ी कमज़ोर हुई.

भारतीय ट्राइबल पार्टी के ज़्यादातर कार्यकर्ता पार्टी छोड़ कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे. भारतीय ट्राइबल पार्टी के लिए सबसे अफ़सोस की बात ये है कि उनके सबसे बड़े नेता और 7 बार विधायक बन चुके छोटु भाई वसावा भी चुनाव हार गए हैं. 

छोटु भाई वसावा को गुजरात का सबसे बड़ा आदिवासी नेता माना जाता है. 2017 के चुनाव में छोटु भाई वसावा ने बीजेपी के उम्मीदवार को 48 हज़ार वोट से हराया था. 1990 में पहली बार वो जनता दल के टिकट पर विधायक चुने गए थे.

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