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धर्मांतरण के विरोध में उतरे आदिवासी, अपने लोगों से घर वापसी की अपील

आदिवासी समाज ने धर्मांतरण किए हुए लोगों से अपने धर्म में वापस आने को कहा है. बैठक में कहा गया कि अगर ये लोग समाज में वापस नहीं आते हैं, तो उन सभी का पूर्ण रूप से आरक्षण समाप्त करने की मांग की जाएगी.

देश के कई राज्यों में धर्मांतरण को आदिवासी बहुल इलाक़ों में मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात समेत कई राज्यों में इसे लेकर राजनीति भी गरमाई हुई है.

छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के संवेदनशील क्षेत्रों में सर्व आदिवासी समाज नाम का एक संगठन धर्मांतरण को बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहा है.

इस सिलसिले में इस संगठन ने फरसगांव ब्लॉक के ग्राम पंचायत भोंगापाल में दर्जनों गांव के ग्रामीणों के साथ एक बैठक आयोजित की है.

बैठक में मुख्य रुप से धर्मांतरण को लेकर आदिवासी समाज के गांयता, पटेल पुजारी और सरपंच समेत ग्रामीणजन ने गांव के देवी-देवताओं और समाज की संस्कृति को बनाए रखने के लिए, धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने की बात कही.

इस बैठक में आरोप लगाया गया कि आदिवासी इलाक़ों में लोभ दे कर धर्मांतरण कराया जा रहा है.

चिंगनार परगना के अध्यक्ष सुकलू राम कोमरा ने कहा ,”ये लगातार अंदरूनी लालच देकर भोले-भाले आदिवासियों को तेजी से धर्मांतरण करवा रहे हैं. इसके करण हमारे देवी-देवताओं का अपमान हो रहा है. इसे बचाए रखने के लिए अब हम सब एकजुट होकर धर्मांतरण के खिलाफ खड़े हुए हैं”.

उन्होंने बताया कि वे पहले धर्मांतरण किए हुए लोगों से अपने धर्म में वापस आने को लेकर पहल कर रहे हैं. यदि वे समाज में वापस नहीं आते हैं, तो उन सभी का पूर्ण रूप से आरक्षण समाप्त करने के लिए कोंडागांव कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया है.

समाज के पदाधिकारियों ने बैठक में शामिल होने के लिए जिला कलेक्टर को आमंत्रित किया था. फरसगांव एसडीएम तहसीलदार भी पहुंचे थे, लेकिन ग्राम पंचायत भवन में ही समाज के कुछ पदाधिकारियों से मिलकर वो वापस लौट गए.

हाल ही में जबरन धर्म परिवर्तन की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे देश की सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा बताया था.

दरअसल जबरन धर्मांतरण के खिलाफ देश के 8 राज्यों ने तो कानून बना रखा है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इससे निपटने के लिए अभी तक कोई कानून नहीं है.

इसलिए शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा है कि इस बारे में उसका रुख क्या है और वह कानून बनाने को लेकर क्या कर रही है.

वहीं पिछले महीने ही मालवा के झाबुआ इलाक़े में विश्व हिंदू परिषद का तीन दिनों का अधिवेशन हुआ था जिसमें ‘धर्मांतरण मुक्त मालवा का संकल्प’ लिया गया. इस दौरान संगठन ने ‘हित चिंतक आभियान’ की शुरुआत की घोषणा भी की.

अगले साल यानी 2023 में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत देश के कई राज्यों में विधानसभ चुनाव होने है. इसलिए चुनाव से पहले ही इन राज्यों में धर्मांतरण का मुद्दा ज़ोर शोर से उठाया जा रहा है.

इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी एकाएक एक्टिव हो गया है. संघ के मुताबिक वो ईसाई मिशनरियों के साथ एक लड़ाई लड़ रहा है. यह लड़ाई धर्मांतरण को रोकने और जो कथित तौर पर ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुके हैं, उन आदिवासियों की ‘घर वापसी’ की है.

ऐसा लग रहा है कि संघ परिवार और बीजेपी ने आदिवासी इलाक़ों में एक बड़ा अभियान चला दिया है. इस अभियान में एक तरफ़ केंद्र और राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं और दूसरी तरफ़ संघ परिवार से जुड़े संगठन.

सरकारें आदिवासी नायकों को सम्मान और आदिवासी इलाक़ों में विकास के दावे कर रही हैं. जबकि संघ परिवार के संगठन धर्म परिवर्तन को मुद्दा बना रहे हैं.

इस अभियान का लक्ष्य सिर्फ़ राज्यों के चुनावों या लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोट हासिल करना नहीं लगता है. बल्कि आदिवासी इलाक़ों में संघ के वैचारिक एजेंडा को भी बढ़ाया जा रहा है.

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