बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि वह आदिवासियों के सर्वोत्तम हित को बढावा देने में कोई कसर न छोड़े और इसके लिए हर संभव पहल करे और कदम उठाए.
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मकरंद कार्णिक की खंडपीठ ने ने गुरुवार को मेलघाट और आसपास के आदिवासी इलाकों में गर्भवति महिलाओं और बच्चों की कुपोषण से होने वाली मौतों पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया.
खंडपीठ ने कहा कि आदिवासियों के हित के लिए जरुरी है कि राज्य सरकार के संबंधित विभाग आपस में समन्वय बना कर काम करें. इसके साथ ही राज्य सरकार आदिवासी इलाकों में रहने वाले लोगों के हितों को बढावा देने में कोई कसर न छोड़े.
खंडपीठ ने कहा कि आदिवासी इलाकों में सुधार को लेकर राज्य सरकार के पास जो सुझाव आए हैं, वह उन पर खुले मन से विचार करे और यह सुनिश्चित करे कि जहां तक संभव हो वह आदिवासियों के हितों को सुरक्षित करने वाले सुझावों को लागू करे.
यह सुझाव डाक्टरों,समाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों की ओर से पिछले दिनों दो दिनों तक चली बैठक के दौरान दिए गए. खंडपीठ ने कहा कि हमे अगली सुनवाई के दौरान बताया जाए कि सरकार को आदिवासी इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने को लेकर मिले कितने सुझावों को लागू किया गया है. इसकी जानकारी हमे हलफनामें स्वरुप रिपोर्ट में दी जाए.
रिपोर्ट में स्पष्ट किया जाए की कौन से सुझावों को लागू कर पाना संभव नहीं है. खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार सुझावों को लागू करते समय मेलघाट के मुद्दे को लेकर आईपीएस अधिकारी छेरिंग दोरजे की ओर से दी गई रिपोर्ट पर भी विचार किया जाए.
मेलघाट में बच्चों की मौत के कारणों का पता लगाने के लिए हाईकोर्ट ने छोरिंग दोरजे को विशेष अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया था. इसके बाद दोरजे ने मेलघाट और अन्य आदिवासी इलाकों का दौरा कर रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट को सौपी थी. खंडपीठ ने 11 अगस्त को इस मामले की सुनवाई रखी है.